उपकार: जहां चिंतन की वाणी मौन

उपकार ही एक ऐसा भाव है जहां चिंतन की वाणी मौन हो जाती है तथा अन्तस व मानस समवेत स्वर में स्वीकारने लगता है कि उपकार व्याख्या का नहीं अपितु अनुभूति का विषय है।

उपकार  ही एक ऐसा भाव है जहां चिंतन की वाणी मौन हो जाती है तथा अन्तस व मानस समवेत स्वर में स्वीकारने लगता है कि उपकार व्याख्या का नहीं अपितु अनुभूति का विषय है।

उपकार: यदि व्यक्तित्व का सर्वाधिक आकर्षक पक्ष व्यक्ति का उपकार भाव है, कहा जाये तो तनिक भी अतिश्योक्ति नहीं होगी। जिस प्रकार विवाहिता सौंदर्यमयी नारी के लिए मांग का सिंदूर सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, वैसे ही पुरूष में उपकार का गुण उसे आम से खास बना देता है।

वैसे तो सात्विक गुणों यथा दया, क्षमा, धार्मिकता, नैतिकता तथा चरित्र को धर्मग्रंथों में पर्याप्त रूप से सराहा गया है किन्तु उपकार को तो सर्वश्रेष्ठ आसन प्रदान किया गया है क्योंकि समस्त सात्विक गुणों में उपकार की अनिवार्यता को सर्वश्रेष्ठ निरुपित किया गया है क्योंकि समस्त सात्विक गुणों में उपकार की भावना पर्याप्त रूप से विद्यमान है, तो यह स्वयमेव प्रमाणित हो जाता है कि उसने मानसिक विकारों पर जय प्राप्त कर लिया है। वैसे भी ऐसे व्यक्तियों पर रजो व तमो गुण प्रभाव नहीं डाल पाते।

उपकार का भाव अत्यन्त पावन होता है तथा मानव मूल्यों को सार्थक करता है उसे अस्तित्व ज्ञान कराता है, साथ ही व्यक्ति को पूर्णता प्रदान करता है। यह भाव इतना प्रभावी होता है कि बड़े भी छोटे के प्रति कृतज्ञता अनुभव करने की बाध्य हो जाते हैं अर्थात् उपकृत उपकार कर्त्ता के समक्ष विनीत भाव से साधुवाद देता उसका गुणगान करने लगता है। साक्षात ब्रम्ह भी जीव के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने को बाध्य हो जाता है।

तात्विक भाव चिंतन को समझा या समझाया जा सकता है किंतु संभवतया ‘उपकार’ ही एक ऐसा भाव है जहां चिंतन की वाणी मौन हो जाती है तथा अन्तस व मानस समवेत स्वर में स्वीकारने लगता है कि उपकार व्याख्या का नहीं अपितु अनुभूति का विषय है। तर्कों   या मंधन द्वारा इसे क्लिष्ट नहीं बनाया जा सकता। अभी ही विदुर नीति का उल्लेख करते कहा गया है कि दुर्दात पशु भी उपकार की भाषा को समझते हैं।

इसकी पुष्टि के लिए एक बोध-कथा का दृष्टांत का उल्लेख करना प्रासंगिक होगा। किसी वन में एक अति भयानक सिंह था। उसके आतंक से पूरा वनांचल भय ग्रस्त था। एक दिन एक नवयुवक राहगीर वन में भटक गया। तभी उसने किसी हिंसक पशु की कराह की आवाज सुनी। नवयुवक अत्यंत भयभीत हो उठा किंतु उसने उस कराह की ध्वनि से अनुमान लगाया कि निश्चित ही वह पशु किसी गंभीर संकट में था।

युवक में सात्विक गुण भरपूर थे। वह पर दुख कातर था। उसे अपने जीवन की चिंता नहीं थी। वह उस कराह की ध्वनि की दिशा की ओर चल पड़ा। सामने एक सिंह निरीह भाव से कराह रहा था। युवक सिंह के समीप पहुंचा। उसने देखा कि सिंह के पंज़े में एक बड़ा सा कांटा चूभा था तथा वहां से मवाद भी बह रहा था। युवक के हृदय में सिंह के प्रति करूणा जाग उठी। उसने साहस कर पहले तो मवाद को साफ किया फिर कांटे को निकाल दिया। सिंह की कराह भी क्रमशः कम होती जा रही थी। युवक आगे बढ़ गया था।

यह भी अजीब संयोग था कि किसी नाराजगी के चलते कालान्तर में युवक को राजा ने कारावास में डलवा दिया था तथा भूखे सिंह के पिंजरे में उसे डाल देने की सजा दी गई। युवक की मृत्यु निश्चित थी। किंतु आश्चर्यजनक रूप से भूखा सिंह स्नेह से युवक को सूंघ रहा था। वस्तुत: वह सिंह वही था जिसके पंजे से कांटा निकाल कर युवक ने उस पर उपकार किया था। भला सिंह उस उपकार का बदला युवक का अहित कर कैसे दे सकता था?

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उपकार, अत्यंत शाश्वत भाव है। इससे व्यक्ति में दया, क्षमा, सहिष्णुता सभी धर्मों के प्रति आदर, शिष्टाचार जैसे गुणों का विकास होता है। यह व्यक्ति के विवेक को परिष्कृत तथा हृदय को कोमल भावनाओं से भर देता है जिससे व्यक्ति, व्यक्ति, समाज व राष्ट्र के प्रति मानवीय संवेदनाओं से युक्त होकर मूल्यों का परिचय देता है। इससे उसके व्यक्तित्व में पूर्णता आती है। संकीर्णता अर्थात मानसिक विकार उसे स्पर्श भी नहीं कर पाता क्योंकि उसका मानस एवं अन्तस दोनों ही दृढ़ होते हैं

…उपकार अत्यंत भाव प्रबल होता है। पर दुख-कातरता, उपकार का वह पक्ष है जिससे इसकी मान्यता व प्रभुत्व को प्रणम्य कहा जा सकता है। उपकारी व्यक्ति किसी के भी दुख को नहीं देख सकता क्योंकि वह अत्यंत संवेदनशील होता है तथा पर दुख हरण का कोई भी अवसर वह नहीं गंवा सकता।

उपकार और अनुग्रह भले ही समानार्थी से प्रतीत हों किंतु दोनों में मौलिक अन्तर है। उपकार एक सात्विक भाव है जिसमें अनुग्रह तो हो सकता है किंतु अनुग्रह की पवित्रता हो यह आवश्यक नहीं है। कुत्सित, मंशा से किया गया अनुग्रह, या की गई कृपा, उपकार नहीं हो सकता।

वाल्टेयर का मत है उपकार व्यक्ति के हृदय व मस्तिष्क के जितना निकट होगा, उसकी पवित्रता की तीव्रता उतनी ही अधिक होगी। इस स्थिति में वह व्यक्ति के द्वारा व्यक्ति के मंगल हेतु स्व-स्फूर्त भावना होगी। इसका अर्थ स्पष्ट है कि उपकार की भावना को व्यक्ति पर थोपा नहीं जा सकता, भले ही उसमें करुणा अथवादया का भाव क्यों न हो।

विचारक रसेल ने ठीक ही अभिव्यक्त किया है “व्यक्ति के लिए व्यक्ति के अन्तस से उठने वाली सात्विक हुक, उपकार को जन्म देती है।’ ऐसा उपकार पूर्णतया मानव-मूल्यों पर आधारित होकर कल्याणकारी होगा जिसमें छद्म या ढोंग के लिए कोई स्थान नहीं होगा तथा किसी को वश में करने या अपने स्वार्थ सिद्धि करने का घृणित षडयंत्र नहीं होगा। विपरीत इसके सर्वहिताय तथा सर्वसुख के लिए त्याग की भावना होगी।

देखें  ( यह वीडियो chhattisgarh के आईएएस @AwanishSharan ने twiter पर पोस्ट किया है और लिखा है -किसी के लिए अच्छा करो, बदले में अच्छा ही मिलेगा.)

उपकार कभी भी निरर्थक नहीं जाता। यह उपकृत व्यक्ति को अन्तस से अनुप्राणित करता है तथा सदैव के लिए कृतज्ञता का अनुभव करता है। अपराध शास्त्र में लिखा है ‘कभी-कभी छोटा सा उपकार व्यक्ति को अपराध करने से रोक देता है तथा सख्त से सख्त दंड भी जी प्रभाव अपराधी पर नहीं डाल पाता वह छोटा सा उपकार, उसके मानस को झकझोर देता है। उसका विवेक जाग उठता है तथा अपराध से वह घृणा करने लगता है।

अनुग्रह भी उपकार की श्रेणी में आता है, वैसे अनुग्रह को कृपा के रूप में लिया जाता है। वैसे भी किसी पर कृपा करना उपकार ही होता है। उपकार का मूल्य आंका नहीं जा सकता | उपकार कर्त्ता के लिए यदि प्राणोत्सर्ग सामान्य है तो उपकृत के लिए भी जीवन का अर्थ नहीं होता। वस्तुत: उपकार, अत्यंत कोमल भावना है जिसका सीधा व सटीक प्रभाव हृदय पर पड़ता है।

 

छत्तीसगढ़ के पिथौरा जैसे कस्बे  में पले-बढ़े ,रह रहे लेखक शिव शंकर पटनायक मूलतःउड़ियाभासी होते हुए भी हिन्दी की बहुमूल्य सेवा कर रहे हैं। कहानी, उपन्यास के अलावा  निबंध  लेखन में आपने कीर्तिमान स्थापित किया है। आपके कथा साहित्य पर अनेक अनुसंधान हो चुके हैं तथा अनेक अध्येता अनुसंधानरत हैं। ‘ निबंध संग्रह भाव चिंतन  के  निबंधों का अंश  deshdigital  उनकी अनुमति से प्रकाशित कर रहा है |

 

 

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