नई दिल्ली: मध्य पूर्व में ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव के बीच भारत अपनी तटस्थ नीति पर कायम है, जो ईरान के साथ ऐतिहासिक दोस्ती और इजरायल के साथ रक्षा व तकनीकी सहयोग के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहा है.
पिछले हफ्ते, ईरान ने विशेष इशारे के तौर पर भारत के नागरिकों को निकालने के लिए अपने हवाई क्षेत्र को खोला. इसके कुछ दिन बाद, जब अमेरिका ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर बमबारी की, तो तेहरान ने सबसे पहले नई दिल्ली से संपर्क किया. ये घटनाएं भारत और ईरान के गहरे रिश्तों को दर्शाती हैं, लेकिन भारत को अपनी संतुलन नीति में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
ईरान भारत का लंबे समय से मित्र रहा है, जिसके साथ सांस्कृतिक और सभ्यतागत रिश्ते सदियों पुराने हैं. वहीं, 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद इजरायल के साथ रक्षा और तकनीकी क्षेत्र में संबंध मजबूत हुए हैं. ऐसे में, जब ईरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ रहा है, भारत ने किसी एक पक्ष को चुनने से परहेज किया और “संवाद व कूटनीति” के अपने मंत्र पर टिका रहा.
ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने कभी-कभार कश्मीर मुद्दे और भारत में “अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार” को लेकर आलोचना की है, लेकिन ईरान ने कभी भारत के हितों के खिलाफ कदम नहीं उठाया. भारत के लिए ईरान में कई अहम हित हैं, खासकर चाबहार बंदरगाह परियोजना. अफगानिस्तान और पाकिस्तान से सटा ईरान क्षेत्रीय स्थिरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद भारत-ईरान संबंध अडिग रहे हैं, हालांकि भारत ने प्रतिबंधों के बाद ईरान से कच्चा तेल आयात बंद कर दिया और अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए रूस की ओर रुख किया. चाबहार बंदरगाह भारत की कनेक्टिविटी योजनाओं और मध्य एशिया में भू-राजनीतिक प्रभाव बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है. यह बंदरगाह पाकिस्तान को बायपास कर अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है और चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (बीआरआई) व पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के मुकाबले रणनीतिक जवाब है.
भारत ने चाबहार के विकास के लिए 10 साल का समझौता किया है, जिसे अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (एनएसटीसी) से जोड़ा जाएगा, जो भारत को यूरोप के करीब लाएगा. होर्मुज जलडमरूमध्य के नजदीक चाबहार की स्थिति, जहां से वैश्विक तेल व्यापार का 20% हिस्सा गुजरता है, इसकी रणनीतिक अहमियत को और बढ़ाती है.
भारत ने ईरान को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) और ब्रिक्स जैसे समूहों में शामिल करने में मदद की है. सांस्कृतिक संबंधों को गहरा करने के लिए भारत ने नई शिक्षा नीति के तहत फारसी को नौ शास्त्रीय भाषाओं में शामिल किया.
1994 में ईरान ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (यूएनसीएचआर) में कश्मीर मुद्दे पर भारत के खिलाफ एक प्रस्ताव को रोकने में मदद की थी, जिसे इस्लामिक देशों के संगठन (ओआईसी) और पश्चिमी देशों ने समर्थन दिया था. इस प्रस्ताव के पास होने पर भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लग सकते थे.
बदले में, भारत ने भी ईरान का साथ दिया. 2023 में भारत उन 30 देशों में शामिल था, जिन्होंने ईरान में मानवाधिकार स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के खिलाफ वोट किया. 2022 में भारत ने ईरान में महसा अमीनी की हिरासत में मौत के बाद प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कथित मानवाधिकार उल्लंघन की जांच के लिए यूएनएचआरसी प्रस्ताव पर मतदान से परहेज किया. 2011 में भारत ने एक अन्य प्रस्ताव पर भी तटस्थ रहा, जिसमें अमेरिका ने ईरान पर सऊदी राजदूत की हत्या की साजिश का आरोप लगाया था.
विदेश मंत्रालय ने अपने हालिया बयान में भारत-ईरान संबंधों को बखूबी बयां किया है: “भारत और ईरान हजारों साल पुराने संबंध साझा करते हैं. समकालीन रिश्ते इन ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों की ताकत पर आधारित हैं और उच्च-स्तरीय आदान-प्रदान, वाणिज्यिक व कनेक्टिविटी सहयोग, सांस्कृतिक और मजबूत जन-जन संपर्कों के साथ आगे बढ़ रहे हैं.”
भारत और ईरान तालिबान के सुन्नी उग्रवाद और अफगानिस्तान में पाकिस्तान की भूमिका को लेकर साझा चिंताएं रखते हैं. दोनों देशों ने 1950 में राजनयिक संबंध स्थापित किए थे, लेकिन 2001 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की ईरान यात्रा और तेहरान घोषणा ने सहयोग को बढ़ावा दिया.
मोदी के नेतृत्व में संबंधों ने नई ऊंचाइयां छुईं. 2016 में मोदी 15 साल में ईरान का दौरा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने और उन्होंने भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच व्यापार, परिवहन और पारगमन पर त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए.
मध्य पूर्व में बढ़ते संकट के बीच भारत की तटस्थ नीति उसकी रणनीतिक स्वायत्तता और क्षेत्रीय स्थिरता के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है. चाबहार बंदरगाह और ईरान के साथ ऐतिहासिक रिश्ते भारत के लिए महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इजरायल के साथ बढ़ते सहयोग ने भारत को एक नाजुक संतुलन बनाए रखने के लिए मजबूर किया है. जैसे-जैसे क्षेत्र में तनाव बढ़ रहा है, भारत की कूटनीति वैश्विक मंच पर उसकी स्थिति को और मजबूत कर सकती है.