दुनिया के इकलौते इस जगन्नाथ मंदिर में स्थापित हैं 22 प्रतिमाएं, होती है पूजा और निकलती है रथयात्रा

 बस्तर का गोंचा पर्व देश-दुनिया में अपना अलग स्थान रखता है| क्या आप जानते हैं बस्तर  के जगदलपुर के जगन्नाथ मंदिर में 22 प्रतिमाएं स्थापित हैं और इनकी पूजा की जाती है|  दुनिया के किसी भी जगन्नाथ मंदिर में एक साथ 22 प्रतिमाओं के रखे जाने की बात आपने शायद सुनी हो और हाँ उनकी पूजा होती हो |

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जगदलपुर ।  बस्तर का गोंचा पर्व देश-दुनिया में अपना अलग स्थान रखता है| क्या आप जानते हैं बस्तर  के जगदलपुर के जगन्नाथ मंदिर में 22 प्रतिमाएं स्थापित हैं और इनकी पूजा की जाती है|  दुनिया के किसी भी जगन्नाथ मंदिर में एक साथ 22 प्रतिमाओं के रखे जाने की बात आपने शायद सुनी हो और हाँ उनकी पूजा होती हो |

360 घर आश्यक ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष ईश्वर खंबारी के मुताबिक मंदिर में 7 खंड हैं, जिसे जगन्नाथ जी की बड़े गुड़ी, मलकानाथ, अमायत मंदिर, मरेठिया, भरतदेव तथा कालिकानाथ के नाम से जाना जाता है। जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा जी के साथ-साथ श्रीराम मंदिर के साथ सात खंडों में स्थापित हैं। इन खण्डों में रखे गए 22 प्रतिमाओं की एक साथ रथयात्रा  देश-दुनिया में कहीं नहीं निकलती, न ही  किसी भी जगन्नाथ मंदिर में एक साथ  इतनी प्रतिमाएं देखी गई हैं ।

ईश्वर खंबारी के मुताबिक  चंदन जात्रा पूजा विधान के पश्चात जगन्नाथ स्वामी के अस्वस्थता कालावधि अर्थात अनसर काल के दौरान भगवान जगन्नाथ के दर्शन वर्जित अवधि में श्री जगन्नाथ मंदिर में स्थित मुक्तिमंडप में स्थापित भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा एवं बलभद्र स्वामी के विग्रहों की श्रीमंदिर के गर्भगृह के सामने भक्तों के दर्शनार्थ स्थापित किये  जाने के बाद नेत्रोत्सव पूजा विधान संपन्न किया गया।

बस्तर अंचल में रथयात्रा उत्सव श्रीगणेश चालुक्य राजवंश के महाराजा पुरुषोत्तम देव की जगन्नाथपुरी यात्रा के पश्चात् 1408 में हुआ।

पौराणिक कथानुसार ओडिसा के जगन्नाथ पुरी में सर्वप्रथम राजा इन्द्रधनुष ने रथयात्रा प्रारंभ की थी, ओडिश में गुण्डिचा कहा जाने वाला यह पर्व कालान्तर में परिवर्तन के साथ बस्तर में गौंचा कहलाया। लगभग 613 वर्ष पूर्व प्रारंभ की गयी रथयात्रा की यह परंपरा आज भी निर्बाध रूप से स्थापित है।

बस्तर गोंचा रथयात्रा पर्व में एक अलग ही परंपरा, विशेषता एवं छटा देखने को मिलती है।  यहाँ  विशाल रथों को परंपरागत तरीकों से फूलों तथा कपड़ों से सजाया जाता है| भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा एवं बलभद्र के विग्रहों को आरूढ़ कर  गौंचा रथयात्रा निकलती  है | भगवान के सम्मान में तुपकी चलाने की परम्परा  बस्तर के अलावा देश  में कहीं और प्रचलित नहीं है।

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