महासमुंद के नदी-नालों में बिखरी खुश्बू बटोरते ग्रामीण

महासमुंद जिले के नदी-नालों में खुश्बू बिखरी पड़ी है | पानी कम होते ही ग्रामीण अब इस खुश्बू को बटोरकर शहरों तक पहुँचाने में लग गये हैं | छोटे किसानों और मजदूरों के लिए यह अतिरिक्त आय का जरिया है |

डॉ . निर्मल कुमार साहू 

महासमुंद जिले के नदी-नालों में खुश्बू बिखरी पड़ी है | पानी कम होते ही ग्रामीण अब इस खुश्बू को बटोरकर शहरों तक पहुँचाने में लग गये हैं | छोटे किसानों और मजदूरों के लिए यह अतिरिक्त आय का जरिया है |

महासमुंद जिले के पिथौरा तहसील के बिन्धंनखोल गाँव से गुजरते सड़क के दोनों ओर हर घर के सामने इस खुश्बू को महाजन के हाथो पहुँचने से पहले रखा देखा |

यहाँ के ग्रामीण ओड़िया (संबलपुरी) और छत्तीसगढ़ी दोनों बोलते हैं|

अपने घर के सामने  मौजूद एक महिला ने बताया उड़िया में इसे मैसना कांदा और छत्तीसगढ़ी में इसे गेंगरवा कांदा या शंकर जटा कहा जाना बताया |

वे इसे पास के एक नाले से इकट्टा कर ला रहे हैं | इसे सुखाकर फिर इसके बालों को हटाने पुआल  (पैरा) से जला दिया जाता है |

एक दिन गाँव आकर व्यापारी सारा खरीद कर ले जाता है| 15 से 20 रूपये किलो तक बिक जाता है |

महिला के मुताबिक व्यापारी बताता है कि इस कांदा से अगरबत्ती बनाया जाता है | एक अन्य बुजुर्ग ग्रामीण जो इसे जला रहा था का कहना था इससे दवाई बनाई जाती है |

जब इसके बारे में जानकारी जुटाई  गई तो हिंदी में इसे जटामांसी कहा जाना पाया | संस्कृत में इसका नाम जटामांसी,   भूतजटा, जटिला, तपस्विनी, मांसी, सुलोमशा, नलदा नाम मिला  | यह भी कि देश के अलग-अलग इलाकों में इसके अलग-अलग नाम हैं |

चूँकि इसकी जड़ों में जटा या बाल जैसे रेशे होते हैं लिहाजा जटामांसी कहा जाता है |

विकिपिडिया के मुताबिक इसका वैज्ञानिक नाम  Nardostachys jatamansi  है |

आयुर्वेद में कई बीमारियों के लिए इसका औषधि के रुप में प्रयोग किया जाता है। चरक-संहिता में धूपन द्रव्यों में जटामांसी का उल्लेख है | सुश्रुत-संहिता में व्रणितोपसनीय जटामांसी का उल्लेख है।

बाजार में इसका तेल, जड़ और पावडर मिलता है | इसका उपयोग तीखे महक वाला इत्र बनाने में किया जाता है।

जानकारों के मुताबिक यह प्रकृति से कड़वा, मधुर, शीत, लघु, स्निग्ध,  वात, पित्त और कफ तीनों दोषों को हरने वाला, शक्तिवर्द्धक, त्वचा को कांती प्रदान करने वाला तथा सुगन्धित होता है। यह जलन, कुष्ठ, नाक-कान खून बहना, विष, बुखार,अल्सर, दर्द, गठिया या जोड़ो में दर्द में फायदेमंद होता है। इसका  तेल  अवसाद (डिप्रेशन) पर प्रभावकारी होती है।

खांसी, विष संबंधी बीमारी,  उन्माद या पागलपन,  मिर्गी, वातरक्त  , शोथ या सूजन आदि रोगों में जिस धूपन का इस्तेमाल होता है उसमें अन्य द्रव्यों के साथ जटामांसी का प्रयोग होता है। सिर दर्द के लिए तो यह  एक उत्कृष्ट औषधि है।

भले ही यह छोटे किसानों और मजदूरों के लिए यह अतिरिक्त आय का जरिया है | लेकिन जिस तरह से दोहन किया जा रहा है | गेंगरवा या शंकर जटा ही नहीं, नदी-नालों के अस्तित्व पर भी संकट दिखाई दे रहा है | गेंगरवा कहीं विलुप्त श्रेणी में न आ जाये |

दरअसल  गेंगरवा या शंकर जटा का पौधा जलसंरक्षण करता है| यह मिट्टी के कटाव को रोकता है | नदी -नालों में ये पानी का रिसाव कम करते हैं | इसके बने रहने से आसपास नमी बनी रहती है और वन्य जीव –प्राणियों को हरा चारा मिलता है |

किसानों के लिए बनाई गई  छत्तीसगढ़ सरकार की महत्वाकांक्षी योजना नरुआ, घुरुआ, बाड़ी पर इसका सीधा असर पड़ता दिखाई दे रहा है |

वैसे देश में जटामांसी की खेती भी की जाती है |  ऐसे  किसानों को राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड की ओर से 75 प्रतिशत अनुदान मिलता है|

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