केन्द्रीय बजट 2022-23 : जनमानस की अपेक्षाएं खत्म

बजट 2022-23: बजट की सबसे अच्छी बात यह है कि बजट के बारे में सोशल मीडिया से लेकर आम जनमानस में जो एक तरह की उत्सुकता, एक उत्साह, एक उम्मीद, राहत की एक आश होती थी; बजट को लेकर एक भ्रम, एक तिलिस्म होता था, कि बजट से किसको क्या मिलेगा ? क्या-क्या सस्ता-महंगा होगा ? वह इस बार से टूट गया।  यानि बजट को लेकर जनमानस की अपेक्षाएं खत्म होती जा रही हैं।

 

बजट 2022-23: बजट की सबसे अच्छी बात यह है कि बजट के बारे में सोशल मीडिया से लेकर आम जनमानस में जो एक तरह की उत्सुकता, एक उत्साह, एक उम्मीद, राहत की एक आश होती थी; बजट को लेकर एक भ्रम, एक तिलिस्म होता था, कि बजट से किसको क्या मिलेगा ? क्या-क्या सस्ता-महंगा होगा ? वह इस बार से टूट गया।  यानि बजट को लेकर जनमानस की अपेक्षाएं खत्म होती जा रही हैं। यह एक अच्छी बात है।

 

-डॉ. लखन चौधरी

त्वरित टिप्पणी

बजट की सबसे अच्छी बात यह है कि बजट के बारे में सोशल मीडिया से लेकर आम जनमानस में जो एक तरह की उत्सुकता, एक उत्साह, एक उम्मीद, राहत की एक आश होती थी; बजट को लेकर एक भ्रम, एक तिलिस्म होता था, कि बजट से किसको क्या मिलेगा ? क्या-क्या सस्ता-महंगा होगा ? वह इस बार से टूट गया।  यानि बजट को लेकर जनमानस की अपेक्षाएं खत्म होती जा रही हैं। यह एक अच्छी बात है।

वास्तव में आम बजट आम आदमी के लिए होता ही नहीं है। आम बजट उन खास आदमियों के लिए होता है जो यह जानते एवं समझते हैं कि आने वाले साल में कैसे पैसा बना सकते हैं ? कितना पैसा बना सकते हैं ? कहां-कहां पैसा लगा सकते हैं ? क्या-क्या खरीद-बेच सकते हैं ? सरकारी योजनाओं एवं घोषणाओं का किस तरह फायदा उठा सकते हैं ?

यदि विश्वास नहीं है तो देख लीजिए। इस बार भी यही हुआ है। बजट को लेकर पूंजीपतियों, उद्योगपयिों, कार्पोरेट घरानों, रियल स्टेट मालिकों, बड़े कारोबारियों, शेयर बाजार में पैसा लगाने वालों की प्रतिक्रियाएं देख, समझ सकते हैं। डिजिटल करेंसी, क्रिफ्टोकरेंसी, शेयर बाजारों एवं म्यूचुअल फंडों में देश के कितने फीसदी लोग निवेश करते हैं ?

बजट में कोरोना कालखण्ड में बेरोजगार हुए करोड़ों युवाओं एवं कोरोना महामारी से उपजी बेकारी झेल रहे कितने फीसदी लोगों के लिए क्या प्रावधान हैं ?  कोरोना की आड़ में बाकायदा सरकारी संरक्षण में पनपी एवं बढ़ी महंगाई से निजात पाने के लिए राहत के क्या उपाय हैं ?

शिक्षा, स्वास्थ्य को लेकर क्या नीतिगत घोषणाएं हैं ? किसान आंदोलन को वापस लेते समय न्यूनतम समर्थन मूल्य की चिंता की गई थी, इसके लिए क्या उपाय किये गये हैं ? इस साल एयर इंडिया के बिकने के बाद सरकार अगले साल एलआईसी की आईपीओ बाजार में ला रही है। और क्या चाहिए ?

वित्त मंत्री के अनुसार ’इस बजट से भारत को अगले 25 साल की बुनियाद मिलेगी। बजट में अगले वित्त वर्ष में आर्थिक ग्रोथ 9.2 फीसदी रहने की उम्मीद जताई गई है। वित्त मंत्री ने कहा कि मौजूदा वर्ष में भारत की आर्थिक ग्रोथ 9.2 फीसदी रहने का अनुमान है, ये बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे ज्यादा है। राजकोषीय घाटा इस साल के 6.8 फीसदी के मुकाबले आगामी साल में 6.9 फीसदी रहने के अनुमान हैं।

वित्त मंत्री सीतारमण ने बताया कि एयर इंडिया का विनिवेश पूरा हो गया है और एलआईसी का आपीओ अब जल्द ही आएगा। कोरोना काल में पढ़ाई का काफी नुकसान हुआ। वह बोलीं कि ‘वन क्लास, वन टीवी चैनल’ को 12 से बढ़ाकर 200 टीवी चैनल किया जाएगा। इसके अलावा डिजिटल विश्वविद्यालय की स्थापना होगी। ।’

 


2022-23 के आम बजट को जिस तरह से प्रतिक्रियाएं आ रहीं हैं, उससे लगता है कि भारी भरकम आंकड़ों की हेराफेरी वाला बजट दरअसल में एक विकसित, उन्नत एवं संवृद्ध भारत की आकांक्षाओं को प्रस्तुत करने वाला बजट है, जिसमें सरकारी नौकरी पेशा, मध्यमवर्ग, किसानों एवं युवाओं के लिए चुप रहने या ख्याली तौर पर खुश होने के सिवाय कुछ नहीं है।

2022-23 का आम बजट आंकड़ों की कलाबाजी में गुम हो गया। आम आदमी के लिए आम बजट में कुछ भी नहीं है। वैसे तो यह बजट आगामी 25 सालों के विकास के लिए ब्लूप्रिंट की तरह बताया, दिखाया जा रहा है, लेकिन इस बजट में आम आदमी का मन बहलाने के सिवाय कुछ खास नहीं है। कुल मिलाकर यह घोर निराशावादी, महंगाई बढ़ाने वाला और बेरोजगारी फैलाने वाला बजट साबित होगा।

सरकारी नौकरी पेशा  को आयकर स्लैब में कोई छूट या राहत नहीं मिली है। यानि कर मुक्त आय की सीमा नहीं बढ़ाई गई। 80सी के अंतर्गत निवेश एवं खर्चों की सीमा भी नहीं बढ़ाई गई है। आयकर विवरणी सुधारने के लिए मौका मिलने से सरकारी नौकरी पेशे वालों को क्या खास फायदा होगा ? समझ से परे है। आखिर आयकर रिर्टन में  गड़बड़ी कौन करता है ? यह प्रावधान किसके लिए है ? सब जानते हैं। इसलिए इससे सरकारी नौकरी पेशे वालों को घोर निराशा  हुई है।

बजट में ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं खेतिहर समाज के लिए कुछ नहीं है। किसानों को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री किसान निधि की राशि  6000 से बढ़ाकर दोगुनी की जायेगी। एमएसपी के लिए कोई ठोस प्रावधान किये जायेंगे। यहां भी किसानों को निराशा  हाथ लगी है। आने वाले 25 सालों में मेक इन इंडिया के तहत 60 लाख नई नौकरियां पैदा होने की बात कही गई है। इसके अतिरिक्त अगले 10 सालों में 30 लाख नई नौकरियां देने की बात है। बेरोजगारी दूर करने के तात्कालिक उपाय बजट में नहीं हैं। यानि युवाओं को इससे कुछ मिलने वाली नहीं है।

सारे सरकारी एवं नीजि बैंकों के इतने सारे एटीएम हो चुकी हैं, ऐसे में पोस्ट ऑफिसों में एटीएम लगाने का क्या खास फायदा होगा ? ‘वन क्लास, वन टीवी चैनल’ को 12 से बढ़ाकर 200 टीवी चैनल करने से बुनियादि शिक्षा में किस तरह के सुधार होंगे ? कोरोना की वजह से बुनियादि शिक्षा जिस तरह से बर्बाद हुई है, उसकी भरपाई कैसे होगी ?  आम आदमी को लगातार बढ़ती महंगाई से कैसे निजात मिलेगी ? युवाओं के लिए रोजगार के अवसर कैसे बढ़ेंगे ? सार्वजनिक क्षेत्र में निवेश के बजाय सरकार लगातार सार्वजनिक उपक्रमों का विनिवेशीकरण करती जा रही है, इससे रोजगार के नये अवसर कैसे पैदा होंगे ? इन सब बातों पर बजट मौन है।

पिछले साल संसद में प्रस्तुत बजट पूर्व आर्थिक समीक्षा में ’वी’ शेप रिकवरी के साथ 2021-22 के लिए 11 फीसदी जीडीपी बढ़ने के दावे किये गये थे। गांव, गरीब, किसान, मध्यमवर्ग, व्यापारी वर्ग सभी को उम्मीदें थीं कि कोरोना के कारण पिछले सुस्त एवं मंद पड़ी अर्थव्यवस्था की सुधार की प्रक्रिया में तेजी एवं गति आयेगी। बजट में रोजगार के नये अवसर बढ़ाने के प्रावधान होंगे, जिससे बाजार में मांग पैदा होगी। करोड़ो लोगों को रोजगार देने वाली असंगठित क्षेत्र में नये उत्साह का संचार होगा। 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का वादा दोहराया गया था। क्या हुआ ?

महामारी में सरकारी खजाना खाली होने की वजह से पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस पर टैक्स बढ़ा दिया गया, जिसका भार आम आदमी पर डाल दिया गया। उम्मीद थी कि कोरोना महामारी में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए अमीरों पर वेल्थ टैक्स लगाये जायें।

ऑक्सफैम की रिपोर्ट कहती है कि इसी कोरोना काल के दौरान धनी लोग और धनी हुए जबकि गरीब लोग और गरीब हुए। इस दौरान करोड़ों लोग बेरोजगार हुए हैं। यही नहीं 97 फीसदी परिवारों की आमदनी घट गई है। 2020 में करीब 4.6 करोड़ भारतीय गरीब हुए हैं। जब यह सब हो रहा था, तभी देश के अरबपति अपनी संपत्ति को तेजी से बढ़ा रहे थे। भारत में कोरोना वैक्सीन बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक के इनकम में भी 2000 से 4000 फीसदी की वृद्धि हुई है। यानि गरीबी, असमानता दूर करने के संबंध में बजट में कोई संकेत नहीं हैं।

दरअसल बजट महज आंकड़ों का पिटारा नहीं होता है, और यह कभी भी नहीं होना चाहिए। आने वाले वित्तीय साल में अर्थव्यवस्था के किन-किन विभागों से कितनी राजस्व या आमदनी की प्राप्ति होगी। बजट आगामी वित्तीय सालों के लिए अर्थव्यवस्था के विभिन्न विभागों के लिए किये-होने खर्चों का हिसाब-किताब होता है। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार अपने राजस्व को किन-किन मदों पर किस तरह खर्च करना चाहती है। इससे किन-किन लोगों को क्या-क्या फायदा होगा। समाज के किस वर्ग को इसका अधिक लाभ मिलगा। आखिरकार बजट का मकसद क्या होगा ? किस वर्ग को तात्कालिक तौर पर और किस वर्ग को दूरगामी तौर पर फायदा होगा। यानि बजट वित्त साल के आमदनी एवं खर्चों  के हिसाब-किताब का लेखा-जोखा होता है।

अंत में ’हमको मालूम है बजट की हकीकत, मगर मन बहलाने के लिए कि 2022-23 का बजट अच्छा है।’ लेकिन यह बजट किसके लिए, कैसे, कितना अच्छा है ? यह तय करना आपको है। यह जनमानस को तय करना है। बहरहाल सार यह है कि जब तक सरकार को वोट मिलते रहेंगे, बजट अच्छा है। जिस दिन सरकार जाने लगेगी, तय हो सकता है कि बजट कितना अच्छा था ?

(लेखक; प्राध्यापक, अर्थशास्त्री, मीडिया पेनलिस्ट, सामाजिक-आर्थिक विश्लेषक एवं विमर्शकार हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति .deshdigital.in उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार  deshdigital.in  के नहीं हैं, तथा उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

People's expectations are overUnion Budget 2022-23केन्द्रीय बजट 2022-23जनमानस की अपेक्षाएं खत्म
Comments (0)
Add Comment