आर्थिक समीक्षा 2021-22 : न साफ संकेत, न खास उम्मीदें

आज संसद में जो 2021-22 की जो आर्थिक समीक्षा पेश की गई है, उससे भारतीय अर्थव्यवस्था की कोई साफ तस्वीर दिखाई नहीं देती है। अर्थव्यवस्था के बारे में कोई साफ संकेत नहीं हैं, न ही कोई उम्मीदें दिखती हैं। मसलन कहा जाना कि सब कुछ यानि महामारी, मानसून एवं वैष्विक हालात ठीकठाक रहेंगे तो अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत हैं। इसका तात्पर्य यह है कि 2022-23 के लिए अर्थव्यवस्था में सुधार की संभावनाएं बहुत सीमित हैं।

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आज संसद में जो 2021-22 की जो आर्थिक समीक्षा पेश की गई है, उससे भारतीय अर्थव्यवस्था की कोई साफ तस्वीर दिखाई नहीं देती है। अर्थव्यवस्था के बारे में कोई साफ संकेत नहीं हैं, न ही कोई उम्मीदें दिखती हैं। मसलन कहा जाना कि सब कुछ यानि महामारी, मानसून एवं वैष्विक हालात ठीकठाक रहेंगे तो अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत हैं। इसका तात्पर्य यह है कि 2022-23 के लिए अर्थव्यवस्था में सुधार की संभावनाएं बहुत सीमित हैं।
– डॉ. लखन चौधरी
त्वरित टिप्पणी 
संसद में प्रस्तुत 2021-22 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुमान के मुताबिक 2022-23 में भारतीय अर्थव्यवस्था 8-8.5 फीसदी की दर से बढ़ सकती है। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा पूर्व में 9.2 फीसदी जीडीपी विस्तार का अनुमान जताया गया था। आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक 2022-23 का जीडीपी वृद्धि अनुमान इस धारणा पर आधारित है कि आगे कोई महामारी संबंधी आर्थिक व्यवधान नहीं आएगा।
देश में मानसून सामान्य रहेगा। वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें 70-75 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में रहेंगी और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला के व्यवधान इस दौरान लगातार कम होंगे। इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था चालू वित्त वर्ष के दौरान 9.2 फीसदी की दर से बढ़ेगी, जो महामारी से पहले के स्तर के मुकाबले सुधार का संकेत है। यानि वास्तविक आर्थिक उत्पादन का स्तर 2019-20 के कोविड-पूर्व स्तर को पार कर जाएगा।
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ज्ञातव्य है कि वित्त वर्ष 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद में 7.3 प्रतिशत की गिरावट आई थी, जिसकी वजह से राजकोषीय घाटा और सरकारी ऋण बढ़ गया। हालांकि सरकार ने माना इस अवधि में सरकारी राजस्व में जोरदार उछाल देखने को मिला है। आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार सरकार के पास पूंजीगत व्यय बढ़ाने की वित्तीय क्षमता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था बेहतर स्थिति में है और यह 2022-23 की चुनौतियों से निपटने में सक्षम है। कुल मिलाकर वृहद-आर्थिक स्थिरता संकेतक बताते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था 2022-23 की चुनौतियों का सामना करने के लिए अच्छी तरह से तैयार है।
भारत नवंबर 2021 के अंत तक चीन, जापान और स्विटजरलैंड के बाद दुनिया में चौथा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार धारक था। वैश्विक महामारी के व्यवधानों के बावजूद पिछले दो वर्षाे में भारत का भुगतान संतुलन सरप्लस में रहा है।

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पिछले साल संसद में प्रस्तुत बजट पूर्व आर्थिक समीक्षा में ’वी’ शेप रिकवरी के साथ 2021-22 के लिए 11 फीसदी जीडीपी बढ़ने के दावे किये गये थे, जिसका इस बार कहीं जिक्र नहीं है। आर्थिक जानकारों का मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था असल में ’के’ शेप के साथ आगे बढ़ रही है, जो बहुत चिंताजनक है।
अर्थव्यवस्था की ’वी’ शेप रिकवरी का मतलब होता है कि अर्थव्यवस्था में सुधार तेजी से हो रहा है, या आने वाले दिनों में तेजी से होगा, जबकि ’के’ शेप रिकवरी का तात्पर्य यह है कि अर्थव्यवस्था में सुधार की दो दिशा एं हैं। एक दिशा  या एक वर्ग ऐसा है जिसमें या जिसकी स्थिति में तेज गति से सुधार हो रहा है, जबकि दूसरे वर्ग की स्थिति में सुधार के बजाय गिरावट होने लगता है।
इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था की यही स्थिति है। देश के एक वर्ग यानि कारपोरेट क्लास, उद्योगपति, राजनेता, सेलिब्रेटी, खिलाड़ी यानि सुपर रिच या एलिट क्लास की आमदनी में कोरोना कालखण्ड में भी भारी वृद्धि हुई है। महामारी की तमाम बाधाओं एवं व्यवधानों के बावजूद यह वर्ग तेजी के साथ विकास किया है। इधर इस कालखण्ड में देश के 90 फीसदी से अधिक मध्यम एवं निम्नवर्ग की आमदनी में भारी कमी या गिरावट देखी गई है।
तात्पर्य है कि भारतीय अर्थव्यवस्था ’वी’ शेप नहीं बल्कि ’के’ शेप रिकवरी की दिशा में आगे बढ़ रही है, जो आने वाले सामाजिक वर्ग संघर्ष की आहट है। समाज की बढ़ती आर्थिक असमानताएं, बेरोजगारी, महंगाई, भष्ट्राचार जैसी ज्वलंत समस्याएं इशारा कर रहीं हैं कि यदि सरकार इनके बारे ध्यान नहीं देगी तो आने वाले दिनों ये विकराल स्वरूप धारण कर सकते हैं, और कोहराम मच सकता है।

(लेखक; प्राध्यापक, अर्थशास्त्री, मीडिया पेनलिस्ट, सामाजिक-आर्थिक विश्लेषक एवं विमर्शकार हैं)

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