नई दिल्ली: भारत, जहां शादी को सात जन्मों का बंधन माना जाता है, वहां तलाक और संबंध विच्छेद के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. विश्व स्तर पर भारत की तलाक दर भले ही 1% के आसपास हो, लेकिन हाल के वर्षों में यह आंकड़ा चिंताजनक रूप से ऊपर जा रहा है. खास बात यह है कि देश में साक्षरता दर में सुधार के बावजूद वैवाहिक रिश्तों का टूटना बढ़ रहा है. आखिर क्या कारण हैं कि शिक्षित समाज में भी दांपत्य जीवन अस्थिर हो रहा है? सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक बदलावों के इस दौर में विशेषज्ञ कई कारकों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.
बदलता सामाजिक ढांचा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता
पारंपरिक संयुक्त परिवारों का विघटन और एकल परिवारों का उदय तलाक के बढ़ते मामलों का एक प्रमुख कारण है. पहले संयुक्त परिवारों में रिश्तों को बचाने के लिए सामूहिक प्रयास होते थे, लेकिन आज शहरीकरण और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की चाह ने जोड़ों को अपने फैसले लेने के लिए प्रेरित किया है. शिक्षित युवा, विशेष रूप से महिलाएं, अब रिश्तों में समझौता करने के बजाय अलग होने का रास्ता चुन रही हैं. “शिक्षा और जागरूकता ने लोगों को अपने अधिकारों और आत्म-सम्मान के प्रति सजग किया है. अगर रिश्ता बोझ बन जाए, तो उसे छोड़ने में हिचक कम हो रही है,” सामाजिक शास्त्री डॉ. रीमा चौधरी कहती हैं.
महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता
साक्षरता के साथ-साथ महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता ने भी तलाक के फैसलों को प्रभावित किया है. पहले वित्तीय निर्भरता के कारण कई महिलाएं अपमानजनक या असंतोषजनक रिश्तों में बंधी रहती थीं. आज, नौकरीपेशा और आत्मनिर्भर महिलाएं तलाक को एक व्यवहारिक विकल्प के रूप में देखती हैं. एक हालिया सर्वे के अनुसार, तलाक की अर्जी दाखिल करने में महिलाओं की हिस्सेदारी पुरुषों से कहीं अधिक है. “महिलाएं अब बच्चों की परवरिश और सामाजिक दबावों के बावजूद अपने लिए बेहतर जीवन चुन रही हैं,” परिवार परामर्शदाता अनीता शर्मा बताती हैं.
पश्चिमी संस्कृति और बदलती मानसिकता
पश्चिमी जीवनशैली और सोशल मीडिया का प्रभाव भी रिश्तों पर पड़ रहा है. वैवाहिक जीवन में अपेक्षाएं बदल रही हैं, और सहनशीलता की कमी देखी जा रही है. “पहले छोटी-मोटी असहमतियों को नजरअंदाज कर रिश्ते निभाए जाते थे, लेकिन अब लोग तुरंत अलग होने का फैसला ले लेते हैं. सोशल मीडिया पर दिखने वाली ‘परफेक्ट लाइफ’ की चाह ने भी असंतोष को बढ़ाया है,” मनोवैज्ञानिक डॉ. संजय मेहता कहते हैं. इसके अलावा, यौन शिक्षा और वैवाहिक जिम्मेदारियों पर खुली चर्चा की कमी भी रिश्तों में तनाव का कारण बन रही है.
कानूनी सुधार और तलाक की आसान प्रक्रिया
कानूनी ढांचे में बदलाव ने भी तलाक को आसान बनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में अनुच्छेद 142 के तहत यह फैसला सुनाया कि अगर विवाह अपरिवर्तनीय रूप से टूट गया है, तो कोर्ट उसे भंग कर सकता है. यह प्रक्रिया पारिवारिक अदालतों में 6-18 महीने की प्रतीक्षा से तेज है. हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 में भी तलाक के आधारों को स्पष्ट किया गया है, जिससे लोग कानूनी रास्ता अपनाने में हिचक नहीं रहे. “कानून ने लोगों को यह भरोसा दिया है कि वे बिना लंबी प्रक्रिया के रिश्ते से मुक्ति पा सकते हैं,” वकील सचिन नायक बताते हैं.
साक्षरता का दोहरा प्रभाव
उच्च साक्षरता दर ने जहां लोगों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया है, वहीं इसने वैवाहिक अपेक्षाओं को भी जटिल बनाया है. शिक्षित जोड़े एक-दूसरे से बराबरी और भावनात्मक समर्थन की उम्मीद करते हैं, और जब यह नहीं मिलता, तो रिशFTWARE
भारत में बढ़ती तलाक और संबंध विच्छेद की दर: साक्षरता के बावजूद क्यों टूट रहे रिश्ते?
नई दिल्ली, 6 मई 2025 – भारत, जहां शादी को सात जन्मों का बंधन माना जाता है, वहां तलाक और संबंध विच्छेद के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. विश्व स्तर पर भारत की तलाक दर भले ही 1% के आसपास हो, लेकिन हाल के वर्षों में यह आंकड़ा चिंताजनक रूप से ऊपर जा रहा है. खास बात यह है कि देश में साक्षरता दर में सुधार के बावजूद वैवाहिक रिश्तों का टूटना बढ़ रहा है. आखिर क्या कारण हैं कि शिक्षित समाज में भी दांपत्य जीवन अस्थिर हो रहा है? सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक बदलावों के इस दौर में विशेषज्ञ कई कारकों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.
बदलता सामाजिक ढांचा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता
पारंपरिक संयुक्त परिवारों का विघटन और एकल परिवारों का उदय तलाक के बढ़ते मामलों का एक प्रमुख कारण है. पहले संयुक्त परिवारों में रिश्तों को बचाने के लिए सामूहिक प्रयास होते थे, लेकिन आज शहरीकरण और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की चाह ने जोड़ों को अपने फैसले लेने के लिए प्रेरित किया है. शिक्षित युवा, विशेष रूप से महिलाएं, अब रिश्तों में समझौता करने के बजाय अलग होने का रास्ता चुन रही हैं. “शिक्षा और जागरूकता ने लोगों को अपने अधिकारों और आत्म-सम्मान के प्रति सजग किया है. अगर रिश्ता बोझ बन जाए, तो उसे छोड़ने में हिचक कम हो रही है,” सामाजिक शास्त्री डॉ. रीमा चौधरी कहती हैं.
महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता
साक्षरता के साथ-साथ महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता ने भी तलाक के फैसलों को प्रभावित किया है. पहले वित्तीय निर्भरता के कारण कई महिलाएं अपमानजनक या असंतोषजनक रिश्तों में बंधी रहती थीं. आज, नौकरीपेशा और आत्मनिर्भर महिलाएं तलाक को एक व्यवहारिक विकल्प के रूप में देखती हैं. एक हालिया सर्वे के अनुसार, तलाक की अर्जी दाखिल करने में महिलाओं की हिस्सेदारी पुरुषों से कहीं अधिक है. “महिलाएं अब बच्चों की परवरिश और सामाजिक दबावों के बावजूद अपने लिए बेहतर जीवन चुन रही हैं,” परिवार परामर्शदाता अनीता शर्मा बताती हैं.
पश्चिमी संस्कृति और बदलती मानसिकता
पश्चिमी जीवनशैली और सोशल मीडिया का प्रभाव भी रिश्तों पर पड़ रहा है. वैवाहिक जीवन में अपेक्षाएं बदल रही हैं, और सहनशीलता की कमी देखी जा रही है. “पहले छोटी-मोटी असहमतियों को नजरअंदाज कर रिश्ते निभाए जाते थे, लेकिन अब लोग तुरंत अलग होने का फैसला ले लेते हैं. सोशल मीडिया पर दिखने वाली ‘परफेक्ट लाइफ’ की चाह ने भी असंतोष को बढ़ाया है,” मनोवैज्ञानिक डॉ. संजय मेहता कहते हैं. इसके अलावा, यौन शिक्षा और वैवाहिक जिम्मेदारियों पर खुली चर्चा की कमी भी रिश्तों में तनाव का कारण बन रही है.
कानूनी सुधार और तलाक की आसान प्रक्रिया
कानूनी ढांचे में बदलाव ने भी तलाक को आसान बनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में अनुच्छेद 142 के तहत यह फैसला सुनाया कि अगर विवाह अपरिवर्तनीय रूप से टूट गया है, तो कोर्ट उसे भंग कर सकता है. यह प्रक्रिया पारिवारिक अदालतों में 6-18 महीने की प्रतीक्षा से तेज है. हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 में भी तलाक के आधारों को स्पष्ट किया गया है, जिससे लोग कानूनी रास्ता अपनाने में हिचक नहीं रहे. “कानून ने लोगों को यह भरोसा दिया है कि वे बिना लंबी प्रक्रिया के रिश्ते से मुक्ति पा सकते हैं,” वकील सचिन नायक बताते हैं.
साक्षरता का दोहरा प्रभाव
उच्च साक्षरता दर ने जहां लोगों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया है, वहीं इसने वैवाहिक अपेक्षाओं को भी जटिल बनाया है. शिक्षित जोड़े एक-दूसरे से बराबरी और भावनात्मक समर्थन की उम्मीद करते हैं, और जब यह नहीं मिलता, तो रिश्ते में दरार आ जाती है. इसके अलावा, शहरी क्षेत्रों में तलाक की दर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक है, क्योंकि शिक्षा और शहरीकरण ने व्यक्तिवादी सोच को बढ़ावा दिया है.
भारत में बढ़ती तलाक और संबंध विच्छेद की दर: साक्षरता के बावजूद क्यों टूट रहे रिश्ते?
नई दिल्ली, 6 मई 2025 – भारत, जहां शादी को सात जन्मों का बंधन माना जाता है, वहां तलाक और संबंध विच्छेद के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. विश्व स्तर पर भारत की तलाक दर भले ही 1% के आसपास हो, लेकिन हाल के वर्षों में यह आंकड़ा चिंताजनक रूप से ऊपर जा रहा है. खास बात यह है कि देश में साक्षरता दर में सुधार के बावजूद वैवाहिक रिश्तों का टूटना बढ़ रहा है. आखिर क्या कारण हैं कि शिक्षित समाज में भी दांपत्य जीवन अस्थिर हो रहा है? सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक बदलावों के इस दौर में विशेषज्ञ कई कारकों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.
बदलता सामाजिक ढांचा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता
पारंपरिक संयुक्त परिवारों का विघटन और एकल परिवारों का उदय तलाक के बढ़ते मामलों का एक प्रमुख कारण है. पहले संयुक्त परिवारों में रिश्तों को बचाने के लिए सामूहिक प्रयास होते थे, लेकिन आज शहरीकरण और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की चाह ने जोड़ों को अपने फैसले लेने के लिए प्रेरित किया है. शिक्षित युवा, विशेष रूप से महिलाएं, अब रिश्तों में समझौता करने के बजाय अलग होने का रास्ता चुन रही हैं. “शिक्षा और जागरूकता ने लोगों को अपने अधिकारों और आत्म-सम्मान के प्रति सजग किया है. अगर रिश्ता बोझ बन जाए, तो उसे छोड़ने में हिचक कम हो रही है,” सामाजिक शास्त्री डॉ. रीमा चौधरी कहती हैं.
महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता
साक्षरता के साथ-साथ महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता ने भी तलाक के फैसलों को प्रभावित किया है. पहले वित्तीय निर्भरता के कारण कई महिलाएं अपमानजनक या असंतोषजनक रिश्तों में बंधी रहती थीं. आज, नौकरीपेशा और आत्मनिर्भर महिलाएं तलाक को एक व्यवहारिक विकल्प के रूप में देखती हैं. एक हालिया सर्वे के अनुसार, तलाक की अर्जी दाखिल करने में महिलाओं की हिस्सेदारी पुरुषों से कहीं अधिक है. “महिलाएं अब बच्चों की परवरिश और सामाजिक दबावों के बावजूद अपने लिए बेहतर जीवन चुन रही हैं,” परिवार परामर्शदाता अनीता शर्मा बताती हैं.
पश्चिमी संस्कृति और बदलती मानसिकता
पश्चिमी जीवनशैली और सोशल मीडिया का प्रभाव भी रिश्तों पर पड़ रहा है. वैवाहिक जीवन में अपेक्षाएं बदल रही हैं, और सहनशीलता की कमी देखी जा रही है. “पहले छोटी-मोटी असहमतियों को नजरअंदाज कर रिश्ते निभाए जाते थे, लेकिन अब लोग तुरंत अलग होने का फैसला ले लेते हैं. सोशल मीडिया पर दिखने वाली ‘परफेक्ट लाइफ’ की चाह ने भी असंतोष को बढ़ाया है,” मनोवैज्ञानिक डॉ. संजय मेहता कहते हैं. इसके अलावा, यौन शिक्षा और वैवाहिक जिम्मेदारियों पर खुली चर्चा की कमी भी रिश्तों में तनाव का कारण बन रही है.
कानूनी सुधार और तलाक की आसान प्रक्रिया
कानूनी ढांचे में बदलाव ने भी तलाक को आसान बनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में अनुच्छेद 142 के तहत यह फैसला सुनाया कि अगर विवाह अपरिवर्तनीय रूप से टूट गया है, तो कोर्ट उसे भंग कर सकता है. यह प्रक्रिया पारिवारिक अदालतों में 6-18 महीने की प्रतीक्षा से तेज है. हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 में भी तलाक के आधारों को स्पष्ट किया गया है, जिससे लोग कानूनी रास्ता अपनाने में हिचक नहीं रहे. “कानून ने लोगों को यह भरोसा दिया है कि वे बिना लंबी प्रक्रिया के रिश्ते से मुक्ति पा सकते हैं,” वकील सचिन नायक बताते हैं.
साक्षरता का दोहरा प्रभाव
उच्च साक्षरता दर ने जहां लोगों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया है, वहीं इसने वैवाहिक अपेक्षाओं को भी जटिल बनाया है. शिक्षित जोड़े एक-दूसरे से बराबरी और भावनात्मक समर्थन की उम्मीद करते हैं, और जब यह नहीं मिलता, तो रिश्ते में दरार आ जाती है. इसके अलावा, शहरी क्षेत्रों में तलाक की दर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक है, क्योंकि शिक्षा और शहरीकरण ने व्यक्तिवादी सोच को बढ़ावा दिया है.
बच्चों और समाज पर असर
तलाक का सबसे गहरा प्रभाव बच्चों पर पड़ता है. शोध बताते हैं कि एकल परिवार में पलने वाले बच्चों में अवसाद, निष्क्रियता या अपराध की प्रवृत्ति बढ़ सकती है. सामाजिक स्तर पर, तलाक अभी भी कलंक का विषय है, खासकर महिलाओं के लिए, लेकिन शिक्षित समाज में इसकी स्वीकार्यता बढ़ रही है. फिर भी, तलाक के बाद महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे आय में कमी और एकल पालन-पोषण का बोझ.
विशेषज्ञों का मानना है कि तलाक की बढ़ती दर को रोकने के लिए वैवाहिक परामर्श, यौन और सामाजिक शिक्षा, और रिश्तों में संवाद को बढ़ावा देना जरूरी है. “शादी से पहले जोड़ों को एक-दूसरे की अपेक्षाओं और जिम्मेदारियों पर खुलकर बात करनी चाहिए. साथ ही, समाज को तलाक को एक व्यक्तिगत फैसले के रूप में स्वीकार करना होगा,” डॉ. चौधरी सुझाती हैं.
जैसे-जैसे भारत आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलन तलाश रहा है, तलाक की बढ़ती दर एक सामाजिक बदलाव की ओर इशारा करती है. साक्षरता ने लोगों को सशक्त तो किया है, लेकिन रिश्तों को बचाने के लिए भावनात्मक और सामाजिक बुद्धिमत्ता की भी जरूरत है. यह समय है कि समाज इस चुनौती को समझे और रिश्तों को मजबूत करने के लिए नए रास्ते तलाशे.