नई दिल्ली: सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवान पूर्णम कुमार शॉ को 23 अप्रैल को पंजाब के फिरोजपुर सेक्टर में अंतरराष्ट्रीय सीमा पार करने के बाद पाकिस्तानी रेंजर्स ने हिरासत में लिया था. 21 दिन की कठिन हिरासत के बाद बुधवार को उन्हें अटारी-वाघा सीमा पर भारतीय अधिकारियों को सौंप दिया गया. सूत्रों के अनुसार, इस दौरान शॉ को आंखों पर पट्टी बांधकर रखा गया, नींद से वंचित किया गया और मौखिक रूप से अपमानित किया गया.
शॉ, जो 24वीं बीएसएफ बटालियन से हैं, ड्यूटी के दौरान गलती से पाकिस्तानी क्षेत्र में चले गए थे. उनकी हिरासत के दौरान उन्हें पाकिस्तान में तीन गुप्त स्थानों पर ले जाया गया, जिनमें से एक हवाई अड्डे के पास था, जहां उन्हें विमानों की आवाज सुनाई दी. ज्यादातर समय उनकी आंखों पर पट्टी बंधी रही और एक स्थान पर उन्हें जेल की कोठरी में रखा गया. हालांकि, शॉ के साथ शारीरिक यातना नहीं की गई, लेकिन उन्हें दांत साफ करने की अनुमति तक नहीं दी गई.
सीमा पर बीएसएफ तैनाती को लेकर सवाल
सूत्रों ने बताया कि सादे कपड़ों में पाकिस्तानी अधिकारियों ने शॉ से अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बीएसएफ की तैनाती और वरिष्ठ अधिकारियों की जानकारी मांगी. उन्होंने संपर्क नंबर भी मांगने की कोशिश की, लेकिन बीएसएफ के प्रोटोकॉल के अनुसार शॉ अपने साथ मोबाइल फोन नहीं ले गए थे, इसलिए वह कोई नंबर नहीं दे सके.
भारत लौटने के बाद शॉ को अपने परिवार से बात करने की अनुमति दी गई. उनकी औपचारिक पूछताछ की गई और उनकी शारीरिक व मानसिक स्थिति स्थिर बताई जा रही है. प्रोटोकॉल के तहत, पाकिस्तानी हिरासत में पहने गए उनके कपड़ों की जांच की गई और उन्हें नष्ट कर दिया गया.
पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के रहने वाले शॉ बीएसएफ की ‘किसान गार्ड’ का हिस्सा थे, जो भारतीय किसानों की सुरक्षा के लिए तैनात की जाती है. उनकी रिहाई भारत और पाकिस्तान के बीच तीन दिन की सैन्य झड़पों के बाद हुए संघर्षविराम के कुछ दिनों बाद हुई है. यह झड़प भारत के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद शुरू हुई थी, जिसमें जैश-ए-मोहम्मद (JeM) और लश्कर-ए-तैयबा (LeT) से जुड़े नौ आतंकी शिविर नष्ट किए गए थे.
शॉ की रिहाई ने दोनों देशों के बीच तनाव के बीच एक सकारात्मक कदम को दर्शाया है, लेकिन उनकी हिरासत में हुए व्यवहार ने पाकिस्तानी अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए हैं.