भारत में नींद की कमी का संकट: बुजुर्गों और युवाओं में अनिद्रा की बढ़ती समस्या

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आरामदायक बेडरूम के बावजूद अनिद्रा एक गंभीर समस्या बन गई है, जो बुजुर्गों से लेकर स्कूल-कॉलेज जाने वाले युवाओं तक को प्रभावित कर रही है, जिसके पीछे तनाव, जीवनशैली और स्वास्थ्य समस्याएं प्रमुख कारण हैं.

भारत में अनिद्रा (इंसोम्निया) की समस्या तेजी से बढ़ रही है, जो सभी आयु वर्गों को प्रभावित कर रही है. एक हालिया अध्ययन के अनुसार, देश की शहरी आबादी का 64% सुबह 7 बजे से पहले उठता है और 61% लोग प्रतिदिन 7 घंटे से कम सोते हैं. यह आंकड़ा दर्शाता है कि भारतीय आबादी में नींद की कमी एक महामारी का रूप ले चुकी है.

युवाओं में, विशेष रूप से 16-30 आयु वर्ग में, 31.66% लोग पुरानी नींद की कमी से जूझ रहे हैं. स्कूल-कॉलेज के छात्रों में अनिद्रा का प्रमुख कारण अनियमित दिनचर्या, पढ़ाई का दबाव, सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग और तनाव है. इसके विपरीत, बुजुर्गों में अनिद्रा की शिकायत 30-48% तक देखी गई है, जो मुख्य रूप से स्वास्थ्य समस्याओं, दवाओं के दुष्प्रभाव और सामाजिक अलगाव से जुड़ी है.

पिट्सबर्ग स्लीप क्वालिटी इंडेक्स (पीएसक्यूआई) के एक अध्ययन में पाया गया कि पश्चिम बंगाल के पुरबा बर्धमान जिले में 60 वर्ष से अधिक आयु के 30.5% बुजुर्ग खराब नींद की गुणवत्ता से प्रभावित हैं. इसी तरह, युवाओं में खराब नींद का संबंध मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं, जैसे चिंता और अवसाद, से जोड़ा गया है.

अनिद्रा के कारणों में जीवनशैली में बदलाव प्रमुख है. युवाओं में देर रात तक मोबाइल फोन और लैपटॉप का उपयोग सर्कैडियन रिदम को बिगाड़ता है. डॉ. जेसी सुरी, एक नींद विशेषज्ञ, ने कहा, “भारत में नींद की कमी के बारे में जागरूकता की कमी है. लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते, जबकि यह स्वास्थ्य और उत्पादकता पर गहरा असर डालता है.”

बुजुर्गों में अनिद्रा के लिए मधुमेह, हृदय रोग, दर्द और अवसाद जैसी बीमारियां जिम्मेदार हैं. एक अध्ययन में पाया गया कि 82% बुजुर्गों में अनिद्रा की शिकायत थी, जिसमें महिलाओं और विधवाओं में जोखिम अधिक था. इसके अलावा, दवाएं जैसे एंटीहिस्टामाइन और बेंजोडायजेपाइन नींद के पैटर्न को और बिगाड़ सकती हैं.

नींद की कमी के परिणाम गंभीर हैं. युवाओं में यह जोखिम भरे व्यवहार, जैसे नशे की लत और आत्महत्या के विचार, को बढ़ाता है. बुजुर्गों में, यह गिरने का खतरा, संज्ञानात्मक हानि और अवसाद को बढ़ाता है. कोविड-19 महामारी के दौरान भारत में 57.2% वयस्कों ने खराब नींद की गुणवत्ता की शिकायत की, जिसने मानसिक स्वास्थ्य पर अतिरिक्त बोझ डाला.

निष्कर्ष: अनिद्रा भारत में एक बढ़ती स्वास्थ्य चुनौती है, जिसके लिए तत्काल जागरूकता और हस्तक्षेप की आवश्यकता है. नींद की स्वच्छता, संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी (सीबीटी-आई) और नियमित जीवनशैली को अपनाकर इस समस्या से निपटा जा सकता है. सरकार और स्वास्थ्य संगठनों को नींद की शिक्षा और सुलभ उपचार को बढ़ावा देना चाहिए ताकि युवा और बुजुर्ग दोनों स्वस्थ और उत्पादक जीवन जी सकें.

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