क्या भारत की शिक्षा प्रणाली को स्कूल स्तर से देशभक्ति और सेना में भर्ती के लिए प्रशिक्षण देना चाहिए?

0 9
Wp Channel Join Now

नई दिल्ली: जब बात सीमा विवाद या आतंकी हमलों की आती है, तो हर भारतीय के दिल में देशभक्ति की लहर दौड़ पड़ती है. हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले, जिसमें 26 नागरिकों की जान गई, और इसके जवाब में भारत के ऑपरेशन सिंदूर ने देश की संप्रभुता और एकता की रक्षा के लिए हमारे सशस्त्र बलों के साहस को फिर से उजागर किया. इस ऑपरेशन में भारतीय वायुसेना ने 23 मिनट में पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में नौ आतंकी ठिकानों को नष्ट कर दिया. लेकिन सवाल उठता है कि क्या हमारी शिक्षा प्रणाली युवाओं में देशभक्ति और सेना में शामिल होने की भावना को स्कूल स्तर से ही जगा सकती है?

भारत में सेना, वायुसेना, नौसेना, पुलिस और अन्य सुरक्षा बलों में शामिल होने वालों की संख्या सीमित है. कई युवा वेतन और नौकरी की स्थिरता के चलते इन क्षेत्रों को करियर के रूप में नहीं चुनते. विशेषज्ञों का मानना है कि स्कूल स्तर पर देशभक्ति और राष्ट्रीय सेवा की भावना को बढ़ावा देने से युवाओं में सशस्त्र बलों के प्रति रुचि बढ़ सकती है. वर्तमान में, राष्ट्रीय कैडेट कोर (NCC) और स्काउट्स एंड गाइड्स जैसे कार्यक्रम स्कूलों में मौजूद हैं, जो अनुशासन और नेतृत्व सिखाते हैं, लेकिन ये सभी छात्रों के लिए अनिवार्य नहीं हैं.

शिक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 में मूल्य-आधारित शिक्षा पर जोर दिया गया है, जिसमें देशभक्ति और सामाजिक जिम्मेदारी शामिल हैं. कुछ स्कूलों में सैन्य इतिहास, स्वतंत्रता संग्राम और हाल के ऑपरेशन जैसे सिंदूर की कहानियों को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है. उदाहरण के लिए, ऑपरेशन सिंदूर, जिसमें भारतीय राफेल जेट्स और स्वदेशी ड्रोन ने पाकिस्तान की वायु रक्षा को निष्क्रिय कर आतंकी ठिकानों को ध्वस्त किया, को इतिहास और सामाजिक अध्ययन की कक्षाओं में पढ़ाया जा सकता है. इससे छात्रों में गर्व और प्रेरणा जागृत हो सकती है.

दिल्ली के एक सरकारी स्कूल के शिक्षक अजय शर्मा ने कहा, “बच्चों को सैनिकों की वीरता की कहानियां सुनाने से उनमें देश सेवा की भावना जागती है. अगर स्कूलों में NCC को अनिवार्य करें और सैन्य प्रशिक्षण के छोटे-छोटे मॉड्यूल शुरू करें, तो ज्यादा बच्चे सेना की ओर आकर्षित होंगे.” हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि ऐसे प्रशिक्षण को जबरदस्ती नहीं थोपा जाना चाहिए, बल्कि इसे प्रेरणादायक बनाया जाए.

सैन्य विशेषज्ञ मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) रवि अरोड़ा का कहना है कि सेना में भर्ती के लिए शारीरिक और मानसिक तैयारी जरूरी है, जिसकी नींव स्कूलों में रखी जा सकती है. “ऑपरेशन सिंदूर जैसे अभियानों से पता चलता है कि हमारी सेना कितनी सक्षम है. अगर बच्चों को स्कूल में ही सैन्य जीवन की चुनौतियों और गौरव के बारे में बताया जाए, तो वे इसे सम्मानजनक करियर के रूप में देखेंगे,” उन्होंने कहा.

हालांकि, कुछ अभिभावकों का मानना है कि हर बच्चे को सेना में जाने के लिए प्रेरित करना उचित नहीं है. नोएडा की एक अभिभावक रीमा गुप्ता ने कहा, “देशभक्ति सिखाना जरूरी है, लेकिन करियर का फैसला बच्चे की रुचि पर छोड़ना चाहिए. स्कूलों को बच्चों को सभी क्षेत्रों में अवसरों के बारे में बताना चाहिए.”

सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षाविद् प्रीति मेहरा ने सुझाव दिया कि स्कूलों में वार्षिक ‘रक्षा सप्ताह’ जैसे आयोजन किए जा सकते हैं, जहां सैनिकों, पुलिस और अन्य सुरक्षा बलों के जवानों को आमंत्रित कर उनके अनुभव साझा किए जाएं. “ऑपरेशन सिंदूर जैसे अभियानों की कहानियां बच्चों को प्रेरित कर सकती हैं. यह उन्हें न केवल देशभक्ति, बल्कि अनुशासन और नेतृत्व भी सिखाएगा,” उन्होंने कहा.

भारत की संप्रभुता की रक्षा के लिए ऑपरेशन सिंदूर जैसे अभियानों ने सशस्त्र बलों के प्रति सम्मान बढ़ाया है. यदि शिक्षा प्रणाली स्कूल स्तर पर देशभक्ति और सेवा की भावना को मजबूत करे, तो भविष्य में ज्यादा युवा सेना, पुलिस और सुरक्षा बलों में शामिल होने के लिए प्रेरित हो सकते हैं. यह न केवल देश की सुरक्षा को मजबूत करेगा, बल्कि युवाओं में राष्ट्रीय गर्व की भावना को भी गहरा करेगा.

Leave A Reply

Your email address will not be published.