नई दिल्ली: एप्पल के सह-संस्थापक और टेक्नोलॉजी जगत के दिग्गज स्टीव जॉब्स ने न केवल अपनी नवाचार क्षमता से दुनिया को बदल दिया, बल्कि उनकी आध्यात्मिक यात्रा ने भी कई लोगों को प्रेरित किया. 1974 में, मात्र 19 वर्ष की आयु में, जॉब्स ने भारत की यात्रा की, जहाँ उनकी मुलाकात नीम करौली बाबा के आश्रम से हुई. हालाँकि, उस समय नीम करौली बाबा का देहांत हो चुका था, लेकिन उनके उपदेशों और कैंची धाम की शांति ने जॉब्स के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला.
नीम करौली बाबा, जिन्हें 20वीं सदी के महान संतों में से एक माना जाता है, अपनी सादगी, प्रेम और निःस्वार्थ सेवा के उपदेशों के लिए प्रसिद्ध थे. जॉब्स, जो उस समय अपने जीवन और करियर में दिशा की तलाश में थे, कैंची धाम पहुँचे. वहाँ उन्होंने सात महीने बिताए, जहाँ उन्होंने भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता को गहराई से आत्मसात किया. इस दौरान, जॉब्स ने जेन बौद्ध धर्म और नीम करौली बाबा के उपदेशों से प्रेरणा ली, जो बाद में उनकी डिज़ाइन दर्शन और नेतृत्व शैली में झलके.
जॉब्स ने अपनी भारत यात्रा के दौरान लिखे एक पत्र में, जो हाल ही में 4.32 करोड़ रुपये में नीलाम हुआ, अपनी इच्छा व्यक्त की थी कि वे कुंभ मेले में भाग लेना चाहते हैं. इस पत्र में उन्होंने “शांति” शब्द के साथ हस्ताक्षर किए, जो उनकी आध्यात्मिक झलक को दर्शाता है. कई जानकारों का मानना है कि कैंची धाम में बिताए समय ने जॉब्स को सादगी और रचनात्मकता के बीच संतुलन स्थापित करने की प्रेरणा दी, जो बाद में एप्पल के उत्पादों जैसे आईफोन और मैकबुक के डिज़ाइन में दिखाई दी.
नीम करौली बाबा का प्रभाव केवल जॉब्स तक सीमित नहीं रहा. फेसबुक के संस्थापक मार्क ज़करबर्ग और ट्विटर के सह-संस्थापक जैक डोर्सी ने भी बाबा के उपदेशों से प्रेरणा ली. ज़करबर्ग ने 2015 में कैंची धाम की यात्रा की और इसे अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ बताया.
आज, नीम करौली बाबा का आश्रम न केवल आध्यात्मिक साधकों के लिए, बल्कि उन लोगों के लिए भी एक तीर्थस्थल है, जो जीवन में शांति और उद्देश्य की तलाश में हैं. स्टीव जॉब्स की कहानी हमें सिखाती है कि टेक्नोलॉजी और आध्यात्मिकता का मेल जीवन को नई दिशा दे सकता है.