किशोर कुमार , जिसका नाम बादलों पर
अंगरेजी के महान कवि जाॅन कीट्स ने अपनी समाधि के लिए यह पंक्ति लिखी थी ‘‘यहां वह लेटा है जिसका नाम पानी पर लिखा है।‘‘ लगता है कीट्स को मालूम रहा होगा कि कोई किशोर कुमार होगा जिसका नाम बादलों पर लिखा होगा। थिरकती हवाएं, बहता पानी और मिट्टी की सोंधी गंध अपनी कोख जाए बेटे के कंठ की ध्वनि बन जाए। तब उसका नाम किशोर कुमार गांगुली ही हो सकता है। धरती निमाड़ की, पानी नर्मदा कछार का और हवा निमाड़ और मालवा के संधि-बिन्दु पर ठहर गई थी। वह वक्त भारत के इतिहास, भूगोल और संस्कृति के नये अंदाज में ढलने का था।
किशोर कुमार की कहानी नसीब की नहीं पसीने की तरलता और नमक की कहानी है। शुरुआत में उसे बर्खास्त कर दिया गया था। किशोर आवाज की कशिश का औजार आत्मा में बिठाए मौसिकी के किताबी अनुशासन की रस्सियां ही काटते रहे। रागों की शास्त्रीयता, वाद्ययंत्रों का आग्रह, कण्ठ के उतार चढ़ाव के प्रचलित नुस्खे, परम्पराओं की अनुगूंजें भारतीय संगीत के नामचीन अवयव रहते हैं। कलाकार की दीर्घकालिकता के गवाह भी हैं।
भाषा को इस बात का गर्व नहीं होना चाहिए कि ध्वनि उसके सहारे ही श्रोताओं की आत्मा से संवाद कर पाती है। इस लिहाज से किशोर शास्त्रीय मौसिकी के मुगलिया दरबार के नवरत्नों में नहीं, दरअसल मध्यप्रदेश के दूसरे बैजूबावरा थे। उनकी प्रेयसी गौरी नहीं थी। बल्कि अपनी मां की याद में बनाये गये खण्डहर होते घर ‘गौरीकुंज‘ में किशोर कुमार आज भी यादों में बिना ढूंढ़े मिल जाते हैं। सहयोगी वाद्ययंत्रों को गुरूर हुआ कि उनसे आरोह अवरोह लिये बिना कण्ठ की कोई स्वायत्तता नहीं है। तब-तब इस गायक ने आर्केस्ट्रा की सिम्फनी पर ही खड़े होकर अनोखे अन्दाज में गायकी को शऊर दिए। वही तो किशोर कुमार होने का अहसास है।