हाईकोर्ट: समाज में साथ रहते हैं तो गोपनीयता कैसे भंग हुई?
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सोमवार को 23 वर्षीय जय त्रिपाठी की उस याचिका पर कड़ा रुख अपनाया, जिसमें राज्य के समान नागरिक संहिता (UCC) के तहत लिव-इन रिलेशनशिप की अनिवार्य पंजीकरण प्रक्रिया को उनके निजता अधिकार का उल्लंघन बताया गया था.
नई दिल्ली। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने सोमवार को एक 23 वर्षीय याचिकाकर्ता की दलील पर सख्त प्रतिक्रिया दी, जिसमें उसने राज्य के समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड या UCC) को अपनी निजता के अधिकार का उल्लंघन बताया था. याचिकाकर्ता, जय त्रिपाठी, ने नवीनतम UCC के तहत लिव-इन रिलेशनशिप के अनिवार्य पंजीकरण को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी.
सुनवाई के दौरान, मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति अलोक महरा ने याचिकाकर्ता के निजता संबंधी तर्क पर सवाल उठाते हुए पूछा, “आप जिस गोपनीयता की बात कर रहे हैं, वह क्या है?”
अदालत ने मौखिक टिप्पणी में कहा, “गोपनीयता क्या है? आप दोनों साथ रह रहे हैं; आपका पड़ोसी जानता है, समाज जानता है और दुनिया जानती है. फिर वह गोपनीयता कहां है, जिसकी आप बात कर रहे हैं? किस बात की चुगली? क्या आप किसी गुफा में छिपकर रह रहे हैं? आप सभ्य समाज के बीच रह रहे हैं. आप बिना शादी के खुलेआम साथ रह रहे हैं. फिर गोपनीयता क्या है? निजता का क्या उल्लंघन हुआ है?”
अदालत की यह तीखी टिप्पणी याचिकाकर्ता के इस दावे को चुनौती देती है कि पंजीकरण की अनिवार्यता से उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता का हनन हो रहा है. बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि UCC के प्रावधान, जो लिव-इन रिलेशनशिप को 30 दिनों के भीतर पंजीकृत करने की बात करते हैं, अनचाही चुगली और निजता के उल्लंघन का कारण बन सकते हैं.
इस पर अदालत ने स्पष्ट किया कि राज्य लिव-इन रिलेशनशिप पर प्रतिबंध नहीं लगा रहा है, बल्कि केवल उनके पंजीकरण को विनियमित कर रहा है. याचिकाकर्ता के वकील ने निजता के संभावित उल्लंघन की आशंका जताई, लेकिन अदालत ने जोर देकर कहा कि निजता के दावे विशिष्ट होने चाहिए, न कि सामान्य आरोपों पर आधारित.
अदालत ने कहा, “कौन बीच में आ रहा है? आपको समझना होगा कि आप यह आरोप लगा रहे हैं कि वे आपकी निजता का उल्लंघन कर रहे हैं और आपके विवरण सार्वजनिक कर रहे हैं. अगर ऐसा कोई सबूत है, तो कृपया उसे प्रस्तुत करें. सामान्य दावे नहीं चलेंगे. अगर आरोप लगा रहे हैं, तो विशिष्ट होकर लगाएं.”
मामले की अगली सुनवाई 1 अप्रैल के लिए स्थगित कर दी गई है. यह मामला एक अन्य समान याचिका के साथ जुड़ा हुआ है, जिसमें अदालत ने पहले ही राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है.
उत्तराखंड 27 जनवरी को स्वतंत्र भारत में UCC लागू करने वाला पहला राज्य बन गया. यह भाजपा सरकार का एक बड़ा वादा था, जिसे 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले पूरा किया गया. इस चुनाव में भाजपा ने जबरदस्त जनादेश हासिल किया था.
अदालत की यह टिप्पणी साफ संकेत देती है कि लिव-इन रिलेशनशिप के पंजीकरण को लेकर निजता के दावे को सामाजिक संदर्भ में देखा जाना चाहिए, न कि केवल व्यक्तिगत आरोपों के आधार पर.