नई दिल्ली: ईरान और इज़राइल के बीच बढ़ता टकराव जॉर्डन और सऊदी अरब जैसे प्रमुख खाड़ी देशों के लिए एक जटिल चुनौती बन गया है. ये देश सार्वजनिक रूप से इज़राइल की कार्रवाइयों की आलोचना करते हैं, लेकिन निजी तौर पर उसकी रक्षा में सहायता करते हैं. 22 जून 2025 को आई रिपोर्ट्स के अनुसार, यह दोहरी नीति भू-राजनीतिक रुझानों और घरेलू जनमत की संवेदनशीलता से प्रभावित है.
21 जून को संघर्ष तब और गहरा गया, जब ईरान ने फोर्डो, नतांज और इस्फहान में अपने परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी और इज़राइली हमलों के जवाब में इज़राइल पर 40 बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं. जॉर्डन की रॉयल एयर फोर्स ने आत्मरक्षा के आधार पर कई मिसाइलों को बीच में ही रोक लिया, ताकि आबादी वाले क्षेत्रों को खतरे से बचाया जा सके. वहीं, वॉल स्ट्रीट जर्नल के हवाले से सूत्रों ने दावा किया कि सऊदी अरब ने अपने उत्तरी हवाई क्षेत्र में इज़राइली युद्धक विमानों को उड़ान भरने की अनुमति दी. हालांकि, दोनों देशों ने 21 अन्य मुस्लिम-बहुल देशों के साथ एक संयुक्त बयान जारी कर इज़राइल के हमलों को ईरान की संप्रभुता का उल्लंघन बताते हुए इसकी कड़ी निंदा की.
जॉर्डन सरकार ने अपनी कार्रवाइयों को राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा के रूप में उचित ठहराया. विदेश मंत्री अयमान साफादी ने अल-ममलका टीवी पर कहा, “हमने मिसाइलों को अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए रोका, न कि इज़राइल की रक्षा के लिए.” इज़राइल के साथ सहयोग के लिए जॉर्डन की आलोचना हो रही है. जर्मन विश्लेषक स्टीफन लुकास ने डीडब्ल्यू को बताया कि अमेरिका से प्रति वर्ष 1.5 अरब डॉलर की सहायता प्राप्त करने वाला जॉर्डन इज़राइल के खिलाफ पूरी तरह खड़ा होने में सीमित है. यह स्थिति देश की 20 प्रतिशत फलस्तीनी आबादी को संतुष्ट करने के लिए एक छिपी हुई रणनीति को दर्शाती है.
रॉयटर्स के अनुसार, सऊदी अरब ने ईरानी मिसाइलों पर नजर रखने के लिए रडार जानकारी और निगरानी प्रदान की, लेकिन अपनी निंदा में ईरान को “भाई देश” कहा. लुकास ने उल्लेख किया कि रियाद का अमेरिका के साथ दशकों पुराना सुरक्षा गठजोड़ और ईरान के साथ उसकी प्रतिस्पर्धा इस गुप्त सहयोग का मुख्य कारण है. उन्होंने कहा कि सऊदी अरब अमेरिका का समर्थन खोने का जोखिम नहीं उठा सकता, लेकिन देश में इज़राइल-विरोधी भावना प्रबल है. 2019 में ईरानी समर्थित ताकतों द्वारा किए गए अबकैक-खुरैस ड्रोन हमले, जिसने प्रतिदिन 57 लाख बैरल कच्चे तेल के उत्पादन को प्रभावित किया, सऊदी अरब के तेहरान के खिलाफ हितों को रेखांकित करता है.
खाड़ी देशों की यह दोहरी नीति एक क्षेत्रीय दुविधा को दर्शाती है. जॉर्डन सेंटर फॉर पॉलिटिकल स्टडीज के ओरैब अल रंतاوی ने कहा कि रणनीतिक आवश्यकताओं और जनता की मजबूत राय के बीच फंसे जॉर्डन और सऊदी अरब संतुलन बनाने की कोशिश कर रहे हैं. सोशल मीडिया मंच X पर प्रतिक्रियाएं मिली-जुली थीं. कुछ उपयोगकर्ताओं ने जॉर्डन के हवाई क्षेत्र की रक्षा को सराहनीय बताया, जबकि अन्य ने इसे मुस्लिम एकजुटता के साथ विश्वासघात करार दिया.