इजरायल की मिसाइल रक्षा प्रणाली पर दबाव: ईरानी हमलों के बीच इंटरसेप्टर्स की भारी कमी, अमेरिका से मदद की उम्मीद
तेल अवीव/वॉशिंगटन: ईरान की ओर से हो रहे लगातार बैलिस्टिक मिसाइल हमलों के बीच इजरायल की मिसाइल रक्षा प्रणाली पर गहरा संकट मंडरा रहा है. वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट में अमेरिकी खुफिया सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि इजरायल के पास लंबी दूरी के मिसाइल इंटरसेप्टर्स की सीमित संख्या बची है और मौजूदा दर पर ये केवल 10 से 12 दिनों तक ही टिक पाएंगे.
रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले शुक्रवार से इजरायल द्वारा शुरू किए गए “ऑपरेशन राइजिंग लायन” के बाद से अब तक ईरान ने करीब 400 बैलिस्टिक मिसाइलें दागी हैं. ये ईरान के कुल अनुमानित 2,000 मिसाइलों के भंडार का एक हिस्सा है, जिनकी मारक क्षमता इजरायल तक है. इजरायल की एरो मिसाइल रक्षा प्रणाली ने अधिकांश मिसाइलों को मार गिराया है, लेकिन हर इंटरसेप्टर की कीमत लगभग 3 मिलियन डॉलर (लगभग ₹25 करोड़) होने के कारण यह ऑपरेशन अत्यधिक महंगा साबित हो रहा है.
इजरायल के आर्थिक अखबार द मार्कर के अनुसार, मिसाइल रक्षा प्रणाली को सक्रिय रखने में हर रात लगभग 1 बिलियन शेकेल (₹850 करोड़) खर्च हो रहे हैं. इसमें आयरन डोम, डेविड्स स्लिंग, एरो सिस्टम, और अमेरिका से प्राप्त पैट्रियट व थाड सिस्टम शामिल हैं.
हालांकि, इजरायली अधिकारियों का दावा है कि उन्होंने ईरान के एक-तिहाई लॉन्च प्लेटफॉर्म तबाह कर दिए हैं और ईरानी हवाई क्षेत्र पर आंशिक नियंत्रण हासिल कर लिया है. लेकिन खुफिया सूत्रों का मानना है कि ईरान के पास अभी भी बड़ी संख्या में मिसाइलें सुरक्षित हैं, जिनमें से कई को भूमिगत ठिकानों में छिपा कर रखा गया है.
शुक्रवार रात को कुछ ईरानी मिसाइलें इजरायली रक्षा कवच को चकमा देने में सफल रहीं और तेल अवीव स्थित आईडीएफ मुख्यालय के पास धमाके हुए. रविवार को हाइफ़ा के एक प्रमुख तेल शोधन संयंत्र को निशाना बनाया गया, जिसके चलते वहां का संचालन बंद करना पड़ा. मंगलवार सुबह तेल अवीव के उत्तर में स्थित इजरायली खुफिया प्रतिष्ठान के पास भी मिसाइलें गिरीं, जिनके वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए.
इस संघर्ष में अब तक इजरायल में 24 लोगों की मौत हो चुकी है और 600 से अधिक लोग घायल हुए हैं. हालांकि, इजरायल के जवाबी हमलों से ईरान को भी भारी सैन्य व आर्थिक क्षति पहुंची है, जिनमें सैन्य अड्डे, तेल इंफ्रास्ट्रक्चर और परमाणु परियोजनाएं शामिल हैं.
जानकारों का कहना है कि अगर अमेरिका या अन्य सहयोगी देश तुरंत हथियार आपूर्ति नहीं करते हैं, तो इजरायल को अपनी सीमित मिसाइलों के उपयोग को प्राथमिकता देनी पड़ेगी. एक अमेरिकी अधिकारी ने WSJ को बताया, “सिस्टम पहले से ही थका हुआ है, जल्द ही उन्हें तय करना पड़ेगा कि किस मिसाइल को रोका जाए और किसे नहीं.”
ईरान के साथ यह संघर्ष केवल सैन्य ताकत का नहीं, बल्कि सप्लाई चेन, वित्तीय संसाधनों और रणनीतिक धैर्य का भी युद्ध बन गया है. इजरायल के लिए आने वाले दिन निर्णायक साबित हो सकते हैं — खासकर तब, जब दुश्मन के मिसाइल हमले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं और अपने रक्षा कवच की नींव दरकने लगी है.