‘पशु’ शब्द अनुचित, जानवर हैं ‘जीवन धन’: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू

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नई दिल्ली: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार को कहा कि जानवरों के लिए ‘पशु’ शब्द का उपयोग अनुचित है और उन्हें ‘जीवन धन’ कहना अधिक सही है.

राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक पशु चिकित्सा सम्मेलन में बोलते हुए, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जानवरों के प्रति भारतीय संस्कृति के दृष्टिकोण को रेखांकित किया. उन्होंने कहा कि जानवर जीवन के लिए महत्वपूर्ण हैं और विशेष रूप से किसानों के लिए पारंपरिक सहायक रहे हैं. उन्होंने जोर देकर कहा कि भारतीय संस्कृति में हर प्राणी में ईश्वर का रूप देखा जाता है.

राष्ट्रपति ने इस अवसर पर जानवरों के व्यापक टीकाकरण की आवश्यकता पर भी बल दिया. उन्होंने कहा कि पशु स्वास्थ्य को मजबूत करने से न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा, बल्कि पर्यावरण संतुलन भी बना रहेगा.

राष्ट्रपति मुर्मू ने ‘पशु’ शब्द को संबोधित करते हुए कहा, “यह शब्द हमारे समाज में जानवरों के महत्व को कम करता है. वे हमारे जीवन धन हैं, जो हमें भोजन, आजीविका और साथ देते हैं.” उन्होंने पशुपालकों और किसानों से आग्रह किया कि वे अपने पशुओं की देखभाल को प्राथमिकता दें और नियमित टीकाकरण सुनिश्चित करें.

उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि भारत में पशुधन की संख्या करीब 53.5 करोड़ है, जो देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है. राष्ट्रपति ने पशु चिकित्सा सेवाओं को ग्रामीण क्षेत्रों तक विस्तार देने की आवश्यकता पर जोर दिया, ताकि छोटे किसानों और पशुपालकों को बेहतर सुविधाएं मिल सकें.

राष्ट्रपति ने भारतीय दर्शन का हवाला देते हुए कहा कि हमारी परंपराएं सभी जीवों के प्रति करुणा और सम्मान सिखाती हैं. उन्होंने कहा, “हमारी संस्कृति में गाय को माता माना जाता है, और अन्य जानवर भी हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं.” उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए पशु संरक्षण को भी महत्वपूर्ण बताया.

राष्ट्रपति ने पशुओं में फैलने वाली बीमारियों, जैसे कि खुरपका-मुंहपका रोग, के खिलाफ सामूहिक टीकाकरण अभियानों की वकालत की. उन्होंने सरकार, वैज्ञानिकों और गैर-सरकारी संगठनों से इस दिशा में एकजुट होकर काम करने का आह्वान किया.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का यह बयान जानवरों के प्रति समाज के नजरिए को बदलने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. उनका ‘जीवन धन’ का संदेश न केवल सांस्कृतिक मूल्यों को मजबूत करता है, बल्कि पशु कल्याण और ग्रामीण विकास के लिए ठोस कदमों की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है. आने वाले समय में उनके इस आह्वान का असर पशु चिकित्सा और कृषि नीतियों पर दिखाई दे सकता है.

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