दिल्ली चुनाव 2025: अरविंद केजरीवाल की हार के पीछे 5 बड़े कारण

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नई दिल्ली| दिल्ली की राजनीति में अरविंद केजरीवाल की सपनों से भरी यात्रा अचानक थम गई है. 2015 और 2020 में दो बार शानदार जीत दर्ज करने वाली आम आदमी पार्टी (AAP) 2025 के विधानसभा चुनाव में सत्ता से बाहर हो चुकी है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 27 वर्षों के अंतराल के बाद केजरीवाल के गढ़ को भेदकर दिल्ली में पुनः शासन स्थापित कर लिया है.

एक्साइज पॉलिसी मामले में जमानत पर रहते हुए, केजरीवाल ने BJP और कांग्रेस के खिलाफ आक्रामक प्रचार अभियान चलाया, लेकिन उनकी रणनीतियाँ सफल नहीं हो सकीं. आखिर केजरीवाल को हार का सामना क्यों करना पड़ा? आइये जानते हैं उन पाँच मुख्य कारणों का, जिनके चलते AAP प्रमुख को निराश होना पड़ा.

भ्रष्टाचार के आरोपों में ‘नैतिकता’ का दांव विफल अरविंद केजरीवाल ने सितंबर 2024 में चुनाव से कुछ महीने पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का निर्णय लिया. उन्होंने कहा,  मैं अग्निपरीक्षा के लिए तैयार हूँ. मैं दो दिन बाद मुख्यमंत्री पद छोड़ दूंगा. जब तक जनता फैसला नहीं सुनाएगी, मैं इस पद पर नहीं रहूँगा. हालाँकि, जेल में रहते हुए इस्तीफा देने से इनकार कर चुके केजरीवाल का यह कदम उनकी परेशानियों को समाप्त नहीं कर सका. एक्साइज पॉलिसी मामले में AAP के कई नेताओं पर शराब कंपनियों से घूस लेने के आरोप लगे, जिसके कारण उनमें से कई जेल भी गए.

BJP के खिलाफ नकारात्मक प्रचार अपने पहले दो कार्यकालों में केजरीवाल ने एक पारदर्शी और जनहित केंद्रित शासन मॉडल के बल पर अपनी पहचान बनाई. उन्होंने दिल्ली के सरकारी स्कूलों को परिवर्तित करने और मोहल्ला क्लीनिक के द्वारा गरीबों को सस्ती स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराने का श्रेय लिया. 2020 के चुनाव में AAP ने अपने कार्यों के आधार पर समर्थन मांगा था, लेकिन इस बार केजरीवाल ने BJP और कांग्रेस पर हमलों को अपने प्रचार का मुख्यत. मुद्दा बना लिया. भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे रहने के बावजूद, उन्होंने विकास और शासन के मुद्दों पर कम ध्यान केंद्रित किया. उन्होंने BJP को गली गलौज पार्टी भी कहा.

यमुना को जहरीला करने का आरोप चुनाव प्रचार के दौरान केजरीवाल ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए BJP सरकार पर आरोप लगाया कि वह यमुना के जल में जहर मिलाकर दिल्ली के निवासियों को नुकसान पहुँचा रही है. हालांकि, यह आरोप चुनावी माहौल को गर्मा तो गया, लेकिन परिणाम बताते हैं कि दिल्ली की जनता इस ‘चिंता’ से प्रभावित नहीं हुई.

मिडिल क्लास को आकर्षित करने की कोशिश असफल केजरीवाल ने मिडिल क्लास को लुभाने के लिए अपनी पार्टी का मेनिफेस्टो जारी किया. उन्होंने कहा कि मिडिल क्लास को पूर्व की सरकारों द्वारा नजरअंदाज किया गया है और उन्हें केवल ‘एटीएम’ समझा जाता रहा है. फिर भी, AAP के मेनिफेस्टो में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि सत्ता में आने पर मिडिल क्लास के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे, बल्कि उसमें केंद्र सरकार से सात मांगें पेश की गईं. नतीजतन, केंद्र सरकार द्वारा मिडिल क्लास को दी जाने वाली सुविधाओं ने दिल्ली के मतदाताओं को ज्यादा प्रभावित किया.

टकराव की राजनीति ने पलटी किस्मत अरविंद केजरीवाल की राजनीति में हमेशा से टकराव की प्रवृत्ति रही है. इस बार भी उन्होंने दिल्ली पुलिस और चुनाव आयोग पर तीखे आरोप लगाए. उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग और पुलिस, BJP के सहयोग से AAP के प्रचार को रोकने की कोशिश कर रहे हैं. केजरीवाल ने मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार पर भी हमला बोला और आरोप लगाया कि वह रिटायरमेंट के बाद नौकरी चाहते हैं. इसके अलावा, केजरीवाल ने कांग्रेस को भी निशाना बनाया, जिसके परिणामस्वरूप कई सीटों पर AAP की हार का अंतर कांग्रेस के उम्मीदवारों द्वारा प्राप्त मतों से कम रहा.

अरविंद केजरीवाल की रणनीतियाँ इस बार विफल रही. भ्रष्टाचार के आरोपों से लेकर नकारात्मक प्रचार तक, हर कदम पर AAP को क्षति उठानी पड़ी. BJP ने दिल्ली की जनता का विश्वास प्राप्त करके 27 वर्षों के बाद सत्ता में पुनः पदार्पण किया है. अब देखने वाली बात यह है कि केजरीवाल और AAP इस हार से कैसे उबरेंगे.

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