मैड्रिड: डीएमके सांसद कनिमोझी करुणानिधि ने स्पेन में भारतीय प्रवासियों को संबोधित करते हुए भारत की राष्ट्रभाषा को लेकर पूछे गए सवाल पर जोरदार जवाब दिया. उन्होंने कहा, “भारत की राष्ट्रभाषा एकता और विविधता है. यही संदेश हमारी प्रतिनिधिमंडल दुनिया को दे रही है.” उनके इस बयान को खूब तालियां मिलीं और यह सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. यह बयान ऐसे समय में आया है, जब राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की त्रि-भाषा नीति को लेकर केंद्र और डीएमके के बीच तनाव चल रहा है.
कनिमोझी भारत की ओर से एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रही हैं, जो ऑपरेशन सिंदूर और पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत के कूटनीतिक प्रयासों के तहत 32 देशों की यात्रा कर रहा है. इस प्रतिनिधिमंडल में सपा के राजीव कुमार राय, बीजेपी के बृजेश चौटा, राजद के प्रेम चंद गुप्ता, आप के अशोक मित्तल और पूर्व राजदूत मंजीव सिंह पुरी शामिल हैं. मैड्रिड में उन्होंने स्पेन के विदेश मंत्री जोस मैनुअल अल्बारेस से भी मुलाकात की और आतंकवाद के खिलाफ भारत के रुख को स्पष्ट किया.
कनिमोझी का बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि डीएमके ने हाल के दिनों में केंद्र सरकार पर ‘हिंदी-हिंदुत्व एजेंडा’ थोपने का आरोप लगाया है. पार्टी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति में प्रस्तावित त्रि-भाषा नीति का विरोध किया है, जिसमें हिंदी को बढ़ावा देने की बात कही गई है. कनिमोझी ने अपने जवाब में भारत की बहुभाषी और सांस्कृतिक विविधता को रेखांकित किया, जो देश की ताकत है.
भारत में भाषा को लेकर बहस कोई नई बात नहीं है. संविधान के अनुच्छेद 343 के तहत हिंदी को केंद्र सरकार की आधिकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त है, लेकिन अंग्रेजी भी सह-आधिकारिक भाषा के रूप में प्रयोग होती है. 1963 के आधिकारिक भाषा अधिनियम ने अंग्रेजी के उपयोग को और मजबूत किया. कई दक्षिणी राज्य, विशेष रूप से तमिलनाडु, हिंदी को अनिवार्य करने के किसी भी प्रयास का विरोध करते रहे हैं. कनिमोझी का बयान इस बहस को और हवा दे सकता है.
कनिमोझी के इस बयान ने न केवल स्पेन में मौजूद भारतीय प्रवासियों का ध्यान खींचा, बल्कि भारत में भी इसकी खूब चर्चा हो रही है. सोशल मीडिया पर कुछ लोग उनके जवाब की तारीफ कर रहे हैं, तो कुछ इसे भाषाई विवाद को बढ़ाने वाला बता रहे हैं. आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह बयान भारत की भाषा नीति पर बहस को किस दिशा में ले जाता है.