बस्तर: बोधघाट परियोजना का एक बार फिर विरोध, आदिवासी लामबंद  

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बस्तर| छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में बोधघाट परियोजना का एक बार फिर विरोध शुरू हो गया है। दंतेवाड़ा की सीमा से लगे गांव में रविवार से ही हजारों ग्रामीण परियोजना के विरोध में लामबंद हो रहे है| 7 फरवरी से 9 फरवरी तक विरोध जताते परिचर्चा करेंगे उसमें जो निष्कर्ष निकलेगा फिर आगामी कदम उठाएंगे।

मिली जानकारी के मुताबिक   5 जिलों के 56 गांवों केआदिवासियों का कहना है कि हम जान दे देंगे, लेकिन जमीन नहीं देंगे। यह बांध हमारे खेत और घर को बर्बाद कर देगा।

जगदलपुर से करीब 100 किमी दूर इंद्रावती नदी पर बांध बनाया जाना है। हालांकि 8 साल पहले निर्माण कार्य बंद करना पड़ा था।

बता दें इंद्रावती बस्तर की सबसे प्रमुख नदी है। यह ओडिशा में करीब 174 किमी बहने के बाद छत्तीसगढ़ पहुंचती है। बस्तर में यह 234 किमी बहती है। सर्वे के मुताबिक, इंद्रावती नदी सालाना 290 टीएमसी पानी गोदावरी नदी में छोड़ती है। इस पानी का कोई उपयोग न तो कृषि के लिए हो रहा है और न बिजली उत्पादन के लिए। पानी को रोकने के लिए बांध सिर्फ आधा दर्जन जगहों पर छोटे-छोटे एनीकट हैं। इस प्रोजेक्ट से इंद्रावती नदी के व्यर्थ बह रहे पानी का उपयोग होगा और 500 मेगावॉट बिजली का उत्पादन भी।

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मां दंतेश्वरी जनजाति हित रक्षा समिति के नेतृत्व में ग्रामीण बीजापुर के हितलकूडूम गांव में चर्चा कर रहे हैं।  इसमें दंतेवाड़ा सहित बस्तर, कोंडागांव, नारायणपुर और बीजापुर जिले के हजारों ग्रामीण शामिल हो रहे हैं। पहले दिन ही करीब 1 हजार ग्रामीण परियोजना का विरोध करने परिचर्चा में शामिल हुए हैं।

समिति के अध्यक्ष सुखमन कश्यप कहते हैं बांध के विरोध में हम राज्यपाल, मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष सब से मिले थे। दंतेवाड़ा में आकर सीएम ने  कहा है, बोधघाट बांध किसी के विरोध में नहीं रुकेगा। हम मुआवजा नहीं देंगे, जमीन देंगे।

सुखमन कहते हैं, पर इससे 56 गांवों के खेती को नुकसान होगा। वैसी जमीन नहीं मिलेगी। इसलिए हम जाना नहीं चाहते। यहां बोर नहीं है, बारिश से ही खेती होती है। 12 साल में होने वाला देवी-देवता पूजन भी करेंगे।

पूर्व में हुए सर्वे के अनुसार, प्रोजेक्ट से 5407 हेक्टेयर वन भूमि, 5010 हेक्टेयर निजी भूमि और 3068 हेक्टेयर राजस्व भूमि मिलाकर 13783 हेक्टेयर भूमि प्रभावित हो रही है। 56 गांव पूरी तरह प्रभावित होंगे। इस प्रोजेक्ट की सबसे बड़ी दिक्कत यह भी है कि डूबान क्षेत्र और बांध को मिलाकर 50 लाख से ज्यादा पेड़ खत्म होंगे। इनमें साल, सागौन, साजा, बीजा, शीशम सहित दुर्लभ जड़ी-बूटियां शामिल हैं। हालांकि इसकी भरपाई के लिए अलग से प्रोजेक्ट बनाकर काम करने की भी बात कही गई है। 

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