एनईपी की तीन-भाषा नीति पर विवाद: विपक्ष ने केंद्र सरकार को घेरा
हालांकि, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के तीन-भाषा फॉर्मूले को विशेष रूप से तमिलनाडु में विपक्षी नेताओं ने कड़ी आलोचना की है, जहां दो-भाषा फॉर्मूला लंबे समय से लागू है.
नई दिल्ली: राज्यसभा सांसद सुधा मूर्ति ने बहुभाषी शिक्षा का समर्थन किया, कहा कि जितनी भाषाएं सीखना संभव हो उतनी सीखना फायदेमंद है. उन्होंने कहा, “मैं हमेशा मानती रही हूं कि एक व्यक्ति कई भाषाएं सीख सकता है, और मैं खुद 7-8 भाषाएं जानती हूं. मुझे हमेशा सीखने में आनंद आता है, और बच्चे बहुत कुछ सीख सकते हैं.”
हालांकि, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के तीन-भाषा फॉर्मूले को विशेष रूप से तमिलनाडु में विपक्षी नेताओं ने कड़ी आलोचना की है, जहां दो-भाषा फॉर्मूला लंबे समय से लागू है. कांग्रेस सांसद और तमिलनाडु के शिवगंगा से कार्ति चिदंबरम ने तीसरी भाषा को अनिवार्य बनाने का विरोध किया, तर्क दिया कि तमिलनाडु को अपने वर्तमान प्रणाली से लाभ होता है, जिसमें अंग्रेजी और तमिल शामिल हैं. उन्होंने कहा, “तमिलनाडु दो-भाषा फॉर्मूले से बहुत स्पष्ट और अच्छी तरह से सेवा कर रहा है – अंग्रेजी और तमिल. अंग्रेजी हमें व्यापार और विज्ञान की दुनिया से जोड़ती है, और तमिल हमारी संस्कृति और पहचान को संरक्षित करती है. यदि कोई तीसरी भाषा सीखना चाहता है, तो यह उनकी मर्जी है. इसे अनिवार्य बनाने का कोई कारण नहीं है. हम पर तीसरी भाषा थोपना पूरी तरह से अस्वीकार्य होगा, और केंद्र सरकार को अपनी नीतियों को लागू करने में लचीला होना चाहिए.”
केरल से कांग्रेस सांसद जेबी माथेर ने भी इस कदम की आलोचना की, आरोप लगाया कि भाजपा समाज को बांटने की कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा, “भाजपा को यह समझना चाहिए कि भाषा का मुद्दा एक संवेदनशील भावनात्मक मामला है. जो लोगों की भावनाओं को चोट पहुंचाता है, उसे बढ़ावा नहीं देना चाहिए. धर्मेंद्र प्रधान अनावश्यक रूप से समाज में विभाजन पैदा कर रहे हैं. हम विपक्ष में एकता के लिए खड़े हैं, और इसीलिए हम कल संसद से बहिर्गमन कर गए. भाजपा के एनईपी में छिपे हुए एजेंडे हैं.”
इससे पहले, राज्यसभा में बोलते हुए केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने विपक्ष के दावों का जवाब दिया कि सरकार भाषा को विभाजन का औजार बना रही है. उन्होंने जोर देकर कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार कभी भी ऐसा “पाप” नहीं करेगी.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी तमिलनाडु की सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) की तीन-भाषा नीति के विरोध पर निशाना साधा. उन्होंने स्टालिन के नेतृत्व वाली सरकार पर राज्य में “राजनीतिक गड़बड़ी” पैदा करने और बच्चों को “सीखने का अधिकार” देने से इनकार करने का आरोप लगाया.