क्या भारत में विदेशी खाने का दबदबा? रेस्तरां-होटलों में चाइनीज, इटैलियन मेन्यू की भरमार

0 47
Wp Channel Join Now

नई दिल्ली: भारत के शहरों में रेस्तरां और होटलों के मेन्यू अब पहले जैसे नहीं रहे. जहां कभी दाल-रोटी, छोले-भटूरे और बिरयानी की खुशबू हर गली में फैलती थी, वहां अब चाइनीज नूडल्स, इटैलियन पास्ता और थाई करी ने अपनी जगह बना ली है. विदेशी व्यंजनों की यह बाढ़ क्या हमें ‘आधुनिक’ और ‘शिक्षित’ दिखाने की कोशिश है, या फिर यह वैश्वीकरण का नतीजा? यह सवाल अब हर खाने के शौकीन की जुबान पर है.

मेट्रो शहरों से लेकर छोटे कस्बों तक, रेस्तरां में चाइनीज, कॉन्टिनेंटल, जापानी और मैक्सिकन डिशेज की लंबी फेहरिस्त आम हो गई है. दिल्ली के कनॉट प्लेस से लेकर मुंबई के बांद्रा तक, नए कैफे और रेस्तरां में देसी खाने का जिक्र मेन्यू के आखिरी पन्नों तक सिमट गया है. एक ताजा सर्वे के मुताबिक, भारत में 60% से ज्यादा रेस्तरां अब विदेशी व्यंजनों को प्रमुखता दे रहे हैं, जबकि पारंपरिक भारतीय खाना सिर्फ 30% मेन्यू में जगह पाता है.

क्या है इस बदलाव की वजह? खाद्य विशेषज्ञ मानते हैं कि यह सिर्फ स्वाद की बात नहीं है. युवा पीढ़ी में विदेशी संस्कृति के प्रति आकर्षण, सोशल मीडिया पर विदेशी डिशेज की चमक-दमक और वैश्विक यात्रा का बढ़ता चलन इसके पीछे हैं. दिल्ली के एक रेस्तरां मालिक रवि शर्मा कहते हैं, “लोग अब पिज्जा और सुशी खाकर इंस्टाग्राम पर तस्वीरें डालना चाहते हैं. यह उनके लिए स्टेटस सिंबल है.” लेकिन वे यह भी मानते हैं कि कई बार यह दिखावा ‘शिक्षित’ और ‘वर्ल्डली’ दिखने की चाहत से जुड़ा है.

हालांकि, इस ट्रेंड से हर कोई खुश नहीं है. खाने के शौकीन और ब्लॉगर अनीता मेहता कहती हैं, “हमारी थाली में जो विविधता है, वह दुनिया में कहीं नहीं. फिर भी लोग चाइनीज हक्का नूडल्स को ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं. यह हमारी खानपान की विरासत को कमजोर कर रहा है.” सोशल मीडिया पर भी यह बहस छिड़ी है. एक यूजर ने एक्स पर लिखा, “हर गली में चाइनीज फूड क्यों? हमारी रसोई की खुशबू को कौन बचाएगा?”

दूसरी तरफ, कुछ लोग इसे सकारात्मक बदलाव मानते हैं. बेंगलुरु की फूड क्रिटिक रिया कपूर कहती हैं, “खाना सीमाओं को तोड़ता है. विदेशी व्यंजनों का आना हमारी संस्कृति को समृद्ध करता है, बशर्ते हम अपनी जड़ों को न भूलें.” रेस्तरां चेन के मालिकों का कहना है कि विदेशी खाना बेचने से मुनाफा ज्यादा है, क्योंकि लोग इसके लिए ज्यादा पैसे खर्च करने को तैयार हैं.

लेकिन सवाल यह है कि क्या यह बदलाव हमें अपनी खानपान की पहचान से दूर कर रहा है? क्या हम विदेशी खाने को अपनाकर अपनी संस्कृति को पीछे छोड़ रहे हैं, या यह सिर्फ एक नया स्वाद है जो समय के साथ संतुलन बना लेगा? इस बहस में एक बात साफ है—भारत की थाली अब सिर्फ देसी नहीं, बल्कि वैश्विक हो चली है, और इसका स्वाद हर किसी को अपनी तरह से रास आ रहा है.

Leave A Reply

Your email address will not be published.