शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार बनाम कांक्रीट जंगल का खेल : परिचर्चा एवं विमर्श की दरकार

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छत्तीसगढ़ के वर्तमान एवं पूर्व मुख्यमंत्री द्वय का तीखा कटाक्ष एवं व्यंग्यात्मक संवाद वैसे तो अक्सर चर्चाओं एवं सुर्खियों में रहता है, लेकिन इस बार इसमें एक बहुत बड़ा संदेश भी छुपा हुआ है जिस पर परिचर्चा एवं विमर्श की दरकार है और इसका सम्यक विश्लेषण भी होना चाहिए। परिचर्चा एवं विमर्श इसलिए क्योंकि यह शिक्षा, स्वास्थ्य एवं रोजगार जैसे जनसरोकार एवं जनकल्याण से जुड़ा एक अति महत्वपूर्णं मसला है।-
डाॅ. लखन चौधरी
पिछली रमन-भाजपा सरकार के पन्द्रह साल के कार्यकाल 2003-2018 के विकास संबंधी मुद्दे पर वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना कि ’सिर्फ कांक्रीट जंगल खड़ा करना उनका मकसद नहीं है। उनका मानना है कि उनकी सरकार स्वास्थ्य, शिक्षा एवं रोजगार के क्षेत्र में काम करते हुए लोगों के जीवन में वास्तविक बदलाव एवं परिवर्तन के जरिये विकास लाना चाहती है। उनकी सरकार अब गैर-जरूरी निर्माण कार्यों की राशि को जनसरोकार एवं जनकल्याण के इन्हीं कामों पर खर्च करना चाहती है, और कर रही है।’
यह बेहद महत्वपूर्णं टिप्पणी एवं कथन है, जिसका समग्रता में व्यापक विश्लेषण होना चाहिए। इसकी सच्चाई, तथ्यात्मकता की जांच भी होनी चाहिए और इसकी महत्ता पर जोरदार बहस एवं विमर्श भी होनी चाहिए, क्योंकि यह मुद्दा सीधा-सीधा छत्तीसगढ़ के तीन करोड़ लोगों से जुड़ा विषय है। जोरदार बहस एवं विमर्श इसलिए भी क्योंकि पिछली रमन-भाजपा सरकार का कार्यकाल तीन टर्म, 15 वर्ष का रहा है जो किसी भी राज्य के सम्पूर्णं एवं समग्र विकास संबंधी किन्हीं भी दीर्घकालिक नीतियों, योजनाओं एवं कार्यक्रमों के ठोस निर्माण एवं क्रियान्वयन के लिए एक पर्याप्त समयावधि मानी जाती है या होती है।
तो क्या यह सही है एवं कितना सही है कि पिछली रमन-भाजपा सरकार के पन्द्रह साल के कार्यकाल 2003-2018 में राज्य में शिक्षा, स्वास्थ्य एवं रोजगार जैसे जन सरोकारकारी एवं जन कल्याणकारी कार्यों की अनदेखी की गई या इनकी उपेक्षा हुई है ? क्या वास्तव में भाजपा सरकार के कार्यकाल में विकास के नीतिगत बुनियादि मसलों की तुलना में गैर-जरूरी निर्माण कार्यों को अधिक तवज्जो दिया गया ? क्या सचमुच पिछली रमन सरकार ने खेतिहर ग्रामीण समाज के बुनियादि ढ़ांचागत विकास की संकल्पना की ओर कम ध्यान दिया ? क्या यह हकीकत है कि रमन-भाजपा कार्यकाल में विकास का सारा फोकस शहरी क्षेत्रों तक सीमित रह गया था ?
यहां पर यह देखने की भी जरूरत है कि क्या इस सरकार द्वारा दो साल के कार्यकाल में खेतिहर ग्रामीण समाज के बुनियादि ढ़ांचागत विकास पर ध्यान केन्द्रित किया गया है ? किसी भी राज्य के सम्पूर्णं एवं समग्र विकास संबंधी किन्हीं भी दीर्घकालिक नीतियों, योजनाओं एवं कार्यक्रमों के ठोस निर्माण एवं क्रियान्वयन पर वर्तमान सरकार कितनी गंभीर है ? स्वास्थ्य, शिक्षा एवं रोजगार जैसे मसलों पर सरकार कितनी सजग है ?
शिक्षा, स्वास्थ्य एवं रोजगार बनाम कांक्रीट जंगल निर्माण के बोल में राज्य के युवाओं का कितना भला हो रहा है ? क्या अब राज्य की युवापीढ़ी के सपने पूरे होते दिख रहे हैं ? क्या वर्तमान सरकार समय पर जरूरी नई भर्तियों के लिए सजग है ?
वर्तमान सरकार ने अपने दो साल के कार्यकाल में खेतिहर ग्रामीण समाज के विकास की दिशा में ठोस काम किया है, इसमें कोई दो राय नहीं है। किसानों की कर्ज-ऋण माफी से लेकर धान खरीदी, बिजली बिलों पर छूट, जमीन-प्राॅपर्टी पंजीयन शुल्क पर 30 प्रतिशत की छूट जैसे बेहद महत्वपूर्णं निर्णय सरकार की लोकप्रियता को बरकरार रखने में कामयाब हुए हैं, लेकिन युवाओं के मामले में सरकार के कामकाज से राज्य के युवा संतुष्ट नजर नहीं आते हैं।
शिक्षा एवं स्वास्थ्य विभागों में ही नियुक्ति, क्रमोन्नति एवं पदोन्नति को लेकर सरकार की नीतियां लचर दिखती हैं। नई भर्तियों एवं नियुक्तियों को लेकर विज्ञापन निकाले गये हैं एवं प्रक्रियाएं जारी हैं, लेकिन इनमें इतना विलम्ब हो रहा है कि युवाओं में निराशा, हताशा एवं कुण्ठा बढ़ती जा रही है।
सरकारी विभागों में लालफीताशाही, अफसरशाही, नौकरशाही पर लगाम लगाने में सरकार असफल सिद्ध हुई है। नई नियुक्तियां, नई पदस्थापना, क्रमोन्नति एवं पदोन्नति जैसे मामलों पर रिश्वतखोरी एवं भष्ट्राचार का खेल बदस्तूर जारी है। स्कूली एवं उच्चशिक्षा विभाग तथा स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में वर्षों से संविदा पर कार्यरत हजारों काबिल, योग्य एवं जरूरी डिग्री-योग्याताधारी युवा रास्ता देख रहे हैं कि सरकार कब उन्हें उचित न्याय एवं अवसर दिलायेगी ?
विपक्ष में रहते हुए इस सरकार के जनप्रतिनिधियों ने राज्य के इन्हीं युवाओं को सरकार में आने पर नियमित करने का आश्वासन दिया था, लेकिन सरकार में आते ही सब चुप हो गये हैं। इससे जहां एक ओर राज्य की युवापीढ़ी में सरकार के प्रति असंतोष एवं क्षोभ गहराता दिखता है, वहीं इससे शिक्षा विभाग की गुणात्मकता भी दिनोंदिन फिसलती एवं पिछड़ती दिखती है। सरकार को इस पर गंभीरतापूर्वक सोचने एवं ठोस काम करते हुए तत्काल निर्णय लेनी चाहिए।
विशेषकर शिक्षा एवं स्वास्थ्य विभाग में सारे खाली-रिक्त पड़े पदों के विरूद्ध वर्षों से कार्यरत आवश्यक योग्यताधारी युवाओं को सरकार नीतिगत निर्णय लेकर नियमित क्यों नहीं करती है ? राज्य के महाविद्यालयों में इस समय प्रोफेसर के सैकड़ों पद रिक्त हैं, राज्य बनने के बाद से प्रोफेसर के पद पर भर्ती नहीं हुई है।
खबरें तो यह भी है कि इस समय राज्य के ढ़ाई सौ से अधिक शासकीय महाविद्यालयों में एक भी प्रोफेसर नहीं हैं, इसके बावजूद इनकी भर्ती की प्रक्रिया की दिशा में सरकार का उच्चशिक्षा विभाग निष्क्रिय बैठा है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग बार-बार हिदायत एवं अनुदान रोकने की धमकी देता रहता है, मगर किसी को इसकी चिंता नहीं है। ऐसी स्थिति में वर्तमान मुख्यमंत्री की टिप्पणी विपक्ष के लिए सवाल तो पैदा करता है।
वैसे शिक्षा, स्वास्थ्य एवं रोजगार बनाम कांक्रीट जंगल खड़ा करने के वक्तव्य एवं मंतव्य के पीछे का भाव भले ही सियासत एवं कटाक्ष है, लेकिन इसमें हकीकत यह है कि यही तीन मुद्दे किसी राज्य के युवाओं एवं नागरिकों के वास्तविक विकास की संकल्पना को साकार करते हैं। इन्हीं विभागों से नागरिकों के मानव संसाधन बनने की राह निकलती है जो कालान्तर में किसी राज्य के समग्र विकास की दशा एवं दिशा को निर्धारित करते हैं। इसलिए उम्मीद बनती है कि इन मुद्दों पर सरकार वास्तव में कोई ठोस काम करे।

(लेखक; प्राध्यापक, अर्थशास्त्री, मीडिया पेनलिस्ट, सामाजिक-आर्थिक विश्लेषक एवं विमर्शकार हैं, यह उनका निजी विचार है )

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