प्रभु श्रीराम से जुड़ा है कोलता समाज का इतिहास

रामचंडी सेवा समिति द्वारा श्रीराम के प्राण प्रतिष्ठा समारोह को यादगार बनाने के लिए अखंड रामायण पाठ एवं दीपोत्सव का आयोजन रखा गया है. इस अवसर पर 2100 दीप प्रज्वलित किये जायेंगे.

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रामचंडी सेवा समिति द्वारा श्रीराम के प्राण प्रतिष्ठा समारोह को यादगार बनाने के लिए अखंड रामायण पाठ एवं दीपोत्सव का आयोजन रखा गया है. इस अवसर पर 2100 दीप प्रज्वलित किये जायेंगे.

अयोध्या में 22 जनवरी को होने वाले प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पूरे देश में हर्षोल्लास का माहौल है. प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पूरी अयोध्यानगरी में जहां व्यापक तैयारी चल रही है तो वहीं प्रभु श्रीराम के ननिहाल दक्षिण कोसल यानी छत्तीसगढ़ के विभिन्न मंदिरों में भी व्यापक तैयारी चल रही है. हर कोई इस ऐतिहासिक पल से जुड़ना चाह रहा है. भगवान श्री राम के प्राण प्रतिष्ठा को लेकर छत्तीसगढ़ वासियों में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है.

फूलझर अंचल के प्रसिद्ध मंदिरों को भी आकर्षक रूप से सजाया जा रहा है. कोलता समाज की आराध्य देवी के रूप में विराजित माँ रामचंडी मंदिर को सजाया जा रहा है. इस दिन विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन रखा गया है. रामचंडी सेवा समिति द्वारा श्रीराम के प्राण प्रतिष्ठा समारोह को यादगार बनाने के लिए अखंड रामायण पाठ एवं दीपोत्सव का आयोजन रखा गया है. इस अवसर पर 2100 दीप प्रज्वलित किये जायेंगे.

प्रभु श्रीराम द्वारा लंका विजय हेतु पूजित रणेश्वर रामचंडी, कोलता समाज की कुलदेवी

प्रभु श्रीराम से जुड़ा है कोलता समाज का इतिहास

फुलझर अंचल में बड़ी संख्या में कोलता समाज के लोग निवासरत हैं. देवी के जिस रूप की उपासना कर श्रीराम लंका विजय प्राप्त की कोलता समाज के लोग उसी देवी को अपना इष्ट देवी मां रामचंडी के रूप में पूजा करते हैं. कोलता समाज के लोग रणेश्वर को देव, रामचंडी को देवी की रूप में सदियों से उपासना करते आ रहे हैं.

ऐसी मान्यता है कि जब श्रीराम लंका विजय के पश्चात अयोध्या लौटे तो उनके स्वागत में जनक राजा भी प्रजा के साथ पहुंचे थे. राजा जनक स्वयं कृषक होने के नाते कृषकों के प्रति बड़ा ही सम्मान एवं स्नेह रखते थे. सीता माता हल चलाते हुए भूमि से प्राप्त होने के कारण यहां के कृषक समाज सीता को अपनी बेटी मानते थे, इसलिए राम, लक्ष्मण एवं सीता जी के अयोध्या लौटने पर उनके स्वागत के लिए कृषक समाज भी उत्साहित था.  जनक राजा ने प्रभु श्रीराम एवं अपनी बेटी सीता के स्वागत के लिए अपनी प्रजा को भी साथ ले गए। कृषक समाज के स्वागत सत्कार से अभिभूत होकर श्रीराम ने शक्ति की देवी मां चंडी की पूजा की जिम्मेदारी जिस समाज को दी गई .वही समाज आगे चलकर कोलता समाज के रूप में जाना जाने लगा.

मान्यता तो यह है कि प्रभु श्रीराम की इच्छा से यह समाज मिथिलांचल से होते हुए दक्षिण कोसल की ओर अग्रसर हुए और संबलपुर क्षेत्र के महानदी के तट पर बस गए.बौद्ध जिले के सरसरा नामक गांव को कोलता जाति का मूल गांव माना जाता है.

गढ़ फुलझर स्थित मंदिर में विराजित है मां रामचंडी देवी

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इस कृषक समाज की बोली मैथिली रही है मगर अवधी, मागधी एवं उड़िया भाषा के सम्मिश्रण से जो एक नई भाषा के रूप में जन्म ली उसे आज संबलपुरी या कोसली भाषा कहा जाता है. महानदी के तट यानी ‘कुल’ पर निवास करने की वजह से इस जाति की पहचान कुलतिया के रूप में होने लगी जिसका अपभ्रंश रूप में आज कोलता या कुलता के रूप में प्रयोग किया जाता है.

कोलता जाति मूलत कृषक जाति है. उड़ीसा में इन्हें चासी कुलता के रूप में संज्ञायित

\किया गया है. कोलता शब्द कुलता का ही तद्भव रूप है.

जब फुलझर क्षेत्र से भैना राजवंश का पतन हुआ और यहां से कृषक समाज के रूप में ख्याति प्राप्त कुर्मी समाज का पलायन हुआ तो फुलझर की उपजाऊ मिट्टी कोलता जाति के लोगों को आकर्षित किया. गोंड़वाना शासकों के दौरान फुलझर रियासत संबलपुर राज्य के अठारह गढ़ जात समूह में शामिल था तथा संबलपुर मध्यप्रांत (कोसल प्रदेश) के अंतर्गत आता था. फूलझर के शासकों ने कोलता समाज को अपने क्षेत्र में बसने के लिए प्रेरित किया.

कालांतर में कोलता जाति के लोग फूलझर क्षेत्र में बसने लगे. फुलझर क्षेत्र में कृषि कार्य हेतु भूमि तो उपलब्ध हो गई मगर अपनी आराध्य देवी को पूजने के लिए पूजा स्थल के रूप में एक मंदिर की कमी हमेशा खलने लगी.

राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर मंदिर परिसर में जलेंगे 2100 दीप

प्रतीकात्मक तस्वीर

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जब 1991-92 में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन की शुरुआत हुई तो कोलता समाज के लोग भी इस आंदोलन से जुड़ गए. अपने इष्ट देवी मां रामचंडी को फुलझर क्षेत्र में स्थापित करने का संकल्प ले कर फुलझर की प्राचीन गढ़ में रामचंडी का भव्य मंदिर का निर्माण कार्य सन् 1994 ई. में प्रारम्भ हुआ. जिसकी प्राण प्रतिष्ठा सन् 2004 ई. को सम्पन्न हुई. यह मंदिर फुलझर ही नहीं पूरे छत्तीसगढ़ का एकमात्र राम चंडी देवी का मंदिर है जहां प्रतिवर्ष आश्विन मास के चतुर्दशी तिथि को रामचंडी दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस बार श्रीराम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर भी इस पर भव्य रूप से मनाया जायेगा. जिसकी तैयारी में पूरे समाज के लोग लगे हुए हैं. (कोलता जाति से संबंधित कई तथ्य डॉ. निर्मल कुमार साहू लिखित कोलता जाति का इतिहास से उद्धृत है. इसे उनके ब्लाग viviksha पर भी पढ़ सकते हैं) 

-कमलेश साहू

लेखक, शा. हाई स्कूल रोहिना में व्याख्याता और  बाबा बिशासहे कुल कोलता समाज रायपुर संभाग के मीडिया प्रभारी हैं

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