मजदूरों का पलायन शुरू, चुनाव पर भी असर

त्तीसगढ़  प्रदेश में अंतिम चरण के मतदान के लिए मात्र पखवाड़े भर का समय ही शेष है. इसके बावजूद क्षेत्र से प्रतिदिन सैकड़ो की संख्या में मजदूरों का पलायन ईंट भट्ठा दलाल करवा रहे हैं. इस बार भी पुलिस एवम प्रशासन मौन है. अत्यधिक पलायन के कारण इस बार के चुनाव भी प्रभावित होंगे.

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महासमुन्द| छत्तीसगढ़  प्रदेश में अंतिम चरण के मतदान के लिए मात्र पखवाड़े भर का समय ही शेष है. इसके बावजूद क्षेत्र से प्रतिदिन सैकड़ो की संख्या में मजदूरों का पलायन ईंट भट्ठा दलाल करवा रहे हैं. इस बार भी पुलिस एवम प्रशासन मौन है. अत्यधिक पलायन के कारण इस बार के चुनाव भी प्रभावित होंगे.
ईंट भट्ठों में काम करने मजदूर इस वर्ष भी बगैर पंजीयन के ही मज़दूरो को प्रतिदिन सैकड़ो की संख्या में उत्तर प्रदेश के ईंट भट्ठा ले जा रहे है।दशहरा मनाने के बाद क्षेत्र में भी पलायन का दौर तेजी से प्रारम्भ हो चुका है. हालात इतने खराब है कि प्रशासन द्वारा मतदान के लिए लगातार जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है. परन्तु प्रतिदिन मजदूरों को भट्ठा दलालों द्वारा चुनाव पूर्व ही पलायन करवाते देख भी रहे है. ज्ञात हो कि प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी शासन के पलायन नही होने देने के वायदे के बावजूद प्रतिदिन सैकड़ो मजदूर क्षेत्र से अन्य प्रांतों में पलायन कर रहे हैं.

कर्ज से लदकर कंगाल होकर घर लौटने लगे भट्ठा मजदूर, दलाल मालामाल 
फ़ाइल फोटो

एडवांस के जाल में फंस कर मजबूर होते मजदूर 

क्षेत्र से प्रतिवर्ष ईंट भट्ठा जाने वाले अधिकांश मजदूर मजबूरी में ही पलायन करते हैं. पलायन के बाद रथयात्रा के समय वापस लौटते मजदूरों की हालत दयनीय होती है. अपने ग्राम पहुचते ही अधिकांस मजदूर थोड़ा नगद धन और ज्यादा कर्ज लेकर ही लौटते हैं. मजदूर परिवारों पर भट्ठा दलालों का कर्ज होने से वे अगले वर्ष पुनः पलायन के लिए मजबूर होते हैं. यह सिलसिला लगातार चलता आ रहा है. घर वापसी के बाद मजदूर इतने कमजोर और लाचार हो जाते है कि वे यहां और मेहनत कर कमाने के लायक नही रहते. लिहाज वे भट्ठा दलालों से ही उधर रुपये लेकर पुनः भट्ठा जाने की स्वीकृति दे देते हैं.

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जितना पसीना मजदूरों का उतना धन दलालों का

भट्ठा पलायन मामले में एक बात महत्वपूर्ण है।वह यह कि भट्ठा पलायन करने वाले मजदूरों से ही कमीशन के रूप में भट्ठा दलाल कमाते है. कुछ मजदूरों के अनुसार अन्य प्रांतों में मजदूरों को मिलने वाली प्रति हजार ईंट बनाने की राशि मे से मात्र आधी राशि ही मजदूरों को नसीब होती है और आधी राशि भट्ठा दलालों के जेब मे जाती है. भट्ठा में मजदूर परिवार जितनी ज्यादा मेहनत करते है दलालों की कमाई भी उतनी ही बढ़ती जाती है.

मजदूर कर्ज में दलालों की पूंजी करोड़ो में

पलायन करने वाले मजदूर वास्तव में अपने ग्राम में शासन की योजनाओं से ही अपना पेट भरते हैं.  इनके पास रहने के लिए न तो पक्की छत होती है और न ही इनके परिवार के बुजुर्ग एवम बच्चों की ठीक से देख रेख ही कर पाते हैं. जबकि इन्ही मजदूरों की मेहनत के पसीने की कमाई से प्रायः सभी भट्ठा दलाल करोड़पति बन चुके हैं.

सैंया भये कोतवाल तो भय काहे का

मजदूरों के गैरकानूनी रूप से पलायन की जानकारी शासन प्रशासन को होती है परन्तु  सैया भये कोतवाल तो भय काहे का की तर्ज पर इनकी शिकायतों के बाद भी न तो कभी इनके विरुद्ध कोई ठोस कार्यवाही हुई और न ही इन्हें रोकने के कोई प्रयास ही होते है. लिहाजा शासन के लाख दावों के बाद भी मजदूरों की हालत जस की तस ही है.

deshdigital के लिए रजिंदर खनूजा 

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