पावरलूम को टक्कर देता छत्तीसगढ़ का संबलपुरी साड़ी बुनकर परिवार: देखें वीडियो  

पावरलूम के दौर में भी छत्तीसगढ़ का हैंडलूम बचे खुचे सांसों के साथ पावरलूम  को टक्कर दे रहा है. अपनी पुरखों से मिली संबलपुरी साड़ी बुनने के शिल्प और हुनर को बनाये रखते हुये छत्तीसगढ़ के इस गाँव का समूचा परिवार, बिना शासकीय सहायता के आजादी के बाद से ही अपने पूर्वजों के इस व्यवसाय को थामे हुए है.  

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पिथौरा| पावरलूम के दौर में भी छत्तीसगढ़ का हैंडलूम बचे खुचे सांसों के साथ पावरलूम  को टक्कर दे रहा है. अपनी पुरखों से मिली संबलपुरी साड़ी बुनने के शिल्प और हुनर को बनाये रखते हुये छत्तीसगढ़ के इस गाँव का समूचा परिवार, बिना शासकीय सहायता के आजादी के बाद से ही अपने पूर्वजों के इस व्यवसाय को थामे हुए है.

छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के पिथौरा   के समीप ग्राम चिखली का एक पूरा परिवार संबलपुरी हैंडलूम साड़ी निर्माण कर रहा है.  आज के इस मशीनी युग मे पूरा परिवार दिन रात मेहनत कर एक हैंडलूम से दो दिनों में एक साड़ी तैयार करता है.

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मिट्टी का घर टीन लगी छत, अंदर एक अल्प रोशनी वाले कमरे में साड़ी बुनती एक नाबालिग बालिका को देख कर पहले तो ऐसा लगा कि उक्त किशोर वय की बालिका सोशल मीडिया में अपना फोटो अपलोड करने इस तरह का काम दिखाने बैठी है. परन्तु कुछ ही देर देखने पर रंग बिरंगे उलझे धागों को संवारती लड़की के बारे में समझ आया कि यह सोशल मीडिया पर अपना वीडियो अपलोड नहीं करना चाहती बल्कि यह तो अपने पेट की उलझी लड़ाई को सुलझाने के लिए मेहनत कर रही है.

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यह दास्तान कोई कहानी का हिस्सा नहीं  पिथौरा से महज 10 किलोमीटर दूर विकासखण्ड के ग्राम चिखली निवासी सफेद मेहेर के घर के एक कमरे में साड़ी बुन रही एक नाबालिग बालिका की है.

इस नाबालिग बालिका से चर्चा करने पर उसने अपना नाम गीता मेहेर बताया. 10 वी कक्षा में अध्ययनरत गीता पढ़ाई के साथ अपने पेट की लड़ाई भी लड़ती है. परिवार जनों के साथ उसे भी प्रतिदिन कुछ घण्टे साड़ी बुनाई कार्य मे हाथ बंटाना पड़ता है.

 4 परिवार – 14 हथकरघा

सफेद मेहेर के 4 परिवार के लोग ग्राम चिखली में रहते हैं. सभी परिवार में 2 से 4 मशीनें है. कुल मिलाकर सभी परिवारों में कुल 14 मशीनों है. जिसमे वे साड़ी बुनने का काम करते हैं.  परिवार के मुखिया सुफ़ेद ने इस प्रतिनिधि को बताया कि उसके 2 पुत्र ,2 बहु एवम 4 नाती हैं. सभी साड़ी बुनाई सीख चुके है अब सभी बारी बारी से दिनभर साड़ी बुनने का काम करते हैं. दो दिन में पूरा परिवार एक हथकरघे में एक साड़ी बना लेता है.

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 मार्केटिंग बेहराबाजार बरगढ़

संबलपुरी साड़ी आम दुकानों में आमतौर पर 6 से 8 हजार रुपयों तक बेची जाती है. परन्तु चिखली के बुनकर परिवार साड़ियों को बना कर इसे ओडिशा  के बरगढ़ के समीप स्थित बेहरा बाजार में बेचने ले जाते है जहां थोक में  प्रतिसाडी 3000 रुपये में बेची जाती है. जबकि साड़ी की वास्तविक कीमत इन बुनकरों को मात्र 1000 रुपये मिलती है. इन बुनकरों को साड़ी बुनने के लिए 2000 रुपये के सूत और रंग भी दिए जाते हैं, या यूं कहें कि बरगढ़ के व्यवसायी उक्त बुनकरों को प्रति साड़ी एक हजार रुपयों की मजदूरी ही देते है.

सफेद सूत में रंग करने के बाद बुनाई

बुनकरों के अनुसार इन्हें बरगढ़ से सफेद रंग का सूत ही दिया जाता है. जिसे इनके परिवार के सदस्य ही रंगते है और डिजाइन के साथ इससे साड़ी बुनाई करते हैं. साड़ियों में रंग और डिजाइन खरीदार दुकानदार के अनुसार रखा जाता है, और दुकानदार मांग के अनुसार साड़ी बनवाते हैं.

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शासन की अनदेखी से कर्ज बढ़ रहा

बुनकर परिवार के सदस्यों ने शासन की किसी भी योजना का लाभ उन्हें नहीं मिलने की बात कही है. इनका कहना है कि घर में आपात या मांगलिक कार्यो एवम अन्य जरूरी काम के लिए उन्हें कर्ज लेकर काम करना पड़ता है. किसी भी परिवार को प्रधानमंत्री आवास तक उपलब्ध नहीं मिल सका है जिसके कारण आज भी ये परिवार अपने कच्चे मकानों में ही पारंपरिक बुनाई का कार्य कर अपनी जीविका चला रहे हैं.  यह कार्य उनका पुरखोती कार्य है. इसमें अल्प आय होती है परन्तु पीढ़ी दर पीढ़ी यह कार्य हम लोग कर रहे है और करते रहेंगे.

 बचपन से ही सिखाते हैं यह हुनर

बुनकर परिवार के युवक खेमराज ने इस प्रतिनिधी से चर्चा करते हुए बताया कि वे जाति के अनुसार अन्य पिछड़ा वर्ग में आते हैं. घर मे बच्चे पढ़ लिख रहे है परन्तु सरकार द्वारा रोजगार नहीं देने के कारण वे अपना पुस्तैनी हैंडलूम संबलपुरी साड़ी का काम कर रहे हैं. इसके लिए बच्चे के होश संभालते ही उसे हथकरघा का हुनर सिखाया जाता है जिससे वे अपने हुनर से कम से कम अपनी जीविका तो कमा ही ले. ये परिवार चाहते है कि उनके पढ़े लिखे बच्चों को रोजगार दे एवम हाथ से साड़ी निर्माण की मशीन लगाने हेतु भवन एवम कच्चा समान सुत आदि खरीदने हेतु आर्थिक सहायता भी मुहैया कराए.

deshdigital के लिए रजिंदर खनूजा 

 

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