1 अगस्त संबलपुरी दिवस:संबलपुरी वस्त्र शिल्प ,जो एक जीवन शैली बन चुकी

इन वस्त्र शिल्पियों ने इसे सिर्फ वस्त्र के रूप में ही ग्रहण नहीं किया बल्कि भारत की विशिष्टता के रूप में विश्व में स्थापित किया है | यह सिर्फ एक कपड़ा नहीं है । ओडिशा व छत्तीसगढ़ ( खासकर फुलझर अंचलजो संबलपुर की सीमा से सटे हैं ) में जीवन की एक शैली है।जो जन्म से लेकर मृत्यु तक साथ चलती है।

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ओडिशा का संबलपुरी वस्त्र शिल्प भारत ही नहीं पूरी दुनिया को आकर्षित कर रखा है | रुमाल से लेकर साड़ी विशिष्ट सवरूप समेटे हुए है | संबलपुरी वस्त्र शिल्पियों के हाथों ने  इसमें जातीय ,संस्कृति ,पर्व,आचार-विचार ,व्यक्तित्व को जीवंत बनाये रखा है | संबलपुरी कपड़े जितने धुलते है उसमें रंग और भी उभरता है।  भारत में संबलपुरी अमर गीत रंगोबती की धुन की तरह , जिस पर थिरके  बिना शायद ही कोई बारात पहुँचती हो,  बस इसी तरह संबलपुरी वस्त्र शिल्प है जो एक जीवन शैली बन चुकी है |

-सीमा प्रधान

आज 1 अगस्त संबलपुरी दिवस पर संबलपुरी वस्त्र शिल्पियों को नमन करते फेसबुक पर पोस्ट सीमा प्रधान का यह लेख उस जीवन शैली के ताने-बाने को हमारे सामने रखती है जो जीवन से किस तरह मृत्युपर्यंत साथ रहती है |

सीमा प्रधान पेशे से हिंदी की सहायक प्राध्यापिका हैं

सीमा प्रधान लिखती हैं – इन वस्त्र शिल्पियों ने इसे सिर्फ वस्त्र के रूप में ही ग्रहण नहीं किया बल्कि भारत की विशिष्टता के रूप में विश्व में स्थापित किया है | यह सिर्फ एक कपड़ा नहीं है । ओडिशा व छत्तीसगढ़ ( खासकर फुलझर अंचलजो संबलपुर की सीमा से सटे हैं ) में जीवन की एक शैली है।जो जन्म से लेकर मृत्यु तक साथ चलती है।

ससुर प्रथम बार बहू को संबलपुरी साड़ी देकर समाज में उसे सम्मान देते हैं।विविध फलों के साथ श्रीफल दान देते हैं। ससुर व बहू का यह प्रथम सामाजिक संबंध फलदान कहा जाता है।।

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पिता अपनी बेटी को सुनहरी सिल्क या सबलपूरी साड़ी पहनाकर ससुराल भेजते हैं कि मेरी बेटी लक्ष्मी के रूप में आपके घर जा रही है।असीम वरदान के साथ ।आपके घर को गोपलक्ष्मी ,धनलक्ष्मी,जनलक्ष्मी से परिपूर्ण करेगी।

बहू जब प्रथम बार ससुराल में पाँव रखती है तो गुलाबी रंग की संबलपुरी साड़ी का पहले गृह प्रवेश होता है।जिसे बांस की बड़ी टोकनी के उपर रखकर रावत महिला अपने सिर में रखती है , उस साड़ी को अनछी और टोकनी को सिग भुगली कहा जाता है रावत महिला को चरण धुलाकर प्रवेश कराया जाता है।

pics fb

आंगन में बहु पूरे गांव के सामने सास के साथ सभी बड़े जैसे दादी सास,काकी सास,बुआ सास के कंधे पर यही साड़ी रखकर आशीर्वाद लेती है। यह मुंह दिखाई भी है और एक परिचय व्यवहार भी।

इस प्रकार जीवन भर यह साड़ी अपनी विभिन्न भूमिकायें  निभाती रहती है।  संबलपुरी कपड़े जितने धुलते है उसमें रंग और भी उभरता है।  नवजात बच्चों के लिए पुराने कपड़े बहुत ही आरामदायक होते हैं। टुकड़े टुकड़े होते तक रंग और नरमी के कारण उपयोग में लाये जाते हैं  ये तो सिर्फ साड़ी की चर्चा हुई जबकि इनके विविध प्रयोग हैं।

एक बार किसी रुप मे आप उपयोग करके आनन्द जरुर लिजिये।

 

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