पुरी की परंपराओं पर सवाल: दिघा मंदिर को लेकर SJTA की जांच

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पुरी: पश्चिम बंगाल के दिघा में नवनिर्मित जगन्नाथ मंदिर को लेकर छिड़ा विवाद अब तूल पकड़ रहा है. ओडिशा के पुरी स्थित विश्व प्रसिद्ध श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (SJTA) ने सभी सेवायत निजोगों (सेवक समितियों) को नोटिस जारी कर दिघा मंदिर के उद्घाटन और वहां की रीति-रिवाजों पर सवाल उठाए हैं. इस विवाद ने न केवल धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा किया है कि क्या पुरी के पवित्र मंदिर की परंपराओं का अनुकरण अन्यत्र करना उचित है. जैसा कि कहावत है, “परंपरा पत्थर की लकीर है, उसे मिटाना आसान नहीं,” फिर भी दिघा मंदिर के निर्माण और नामकरण ने ओडिशा में आक्रोश को जन्म दिया है.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 30 अप्रैल को अक्षय तृतीया के अवसर पर दिघा में 250 करोड़ रुपये की लागत से बने जगन्नाथ मंदिर का उद्घाटन किया था. इस मंदिर को पुरी के 12वीं सदी के श्रीमंदिर की प्रतिकृति के रूप में बनाया गया है और इसे “जगन्नाथ धाम” नाम दिया गया. लेकिन यही नामकरण विवाद का प्रमुख कारण बना. पुरी के सेवायतों और भक्तों का कहना है कि “जगन्नाथ धाम” का दर्जा केवल पुरी मंदिर को प्राप्त है, जो चार धामों में से एक है. इसके अलावा, मंदिर में मूर्तियों के लिए कथित तौर पर पुरी के 2015 के नबकालेबार अनुष्ठान से बचे नीम की लकड़ी (दरु) के उपयोग की खबरों ने विवाद को और भड़काया.

नोटिस का मकसद और जांच का दायरा

SJTA के नITI प्रशासक की ओर से जारी नोटिस में सभी निजोगों के अध्यक्ष और सचिवों से दिघा मंदिर को लेकर भ्रामक मीडिया खबरों पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने को कहा गया है. नोटिस में 4 मई की शाम 5 बजे तक लिखित जवाब मांगा गया है. ओडिशा के कानून मंत्री पृथ्वीराज हरिचंदन ने SJTA के मुख्य प्रशासक अरविंद कुमार पाढ़ी को पत्र लिखकर इस मामले की आंतरिक जांच के आदेश दिए. उन्होंने कहा कि दिघा मंदिर को “जगन्नाथ धाम” कहना, पुरी के सेवायतों का उद्घाटन समारोह में हिस्सा लेना, और नबकालेबार की पवित्र लकड़ी का उपयोग “पूरी तरह अस्वीकार्य” है. यह विवाद 4.5 करोड़ ओडिया लोगों और जगन्नाथ भक्तों की भावनाओं को आहत करने वाला है.

दैतापति सेवायत पर सवाल

विवाद का केंद्र पुरी के दैतापति निजोग के सचिव रामकृष्ण दासमोहपात्रा हैं, जिन्होंने दिघा मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में हिस्सा लिया. बंगाली मीडिया में उनके हवाले से कहा गया कि उन्होंने 2015 के नबकालेबार की बची लकड़ी से दिघा की मूर्तियां बनवाईं. हालांकि, बाद में पुरी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दासमोहपात्रा ने इन दावों का खंडन किया. उन्होंने स्पष्ट किया कि चार महीने पहले दिघा मंदिर में पत्थर की मूर्तियां थीं, लेकिन चूंकि जगन्नाथ की पूजा केवल नीम की लकड़ी की मूर्तियों से होती है, उन्होंने सामान्य नीम की लकड़ी से 2.5 से 3 फीट ऊंची मूर्तियां पुरी में बनवाईं और दिघा ले गए. उन्होंने जोर देकर कहा कि नबकालेबार की पवित्र दरु का उपयोग नहीं हुआ.

निजोगों का विरोध और बहिष्कार की चेतावनी

पुरी के सुवर्ण महासुवर निजोग और पुष्पालक निजोग ने पहले ही अपने सदस्यों को दिघा मंदिर के उद्घाटन में भाग न लेने की चेतावनी दी थी. सुवर्ण महासुवर निजोग, जो पुरी में महाप्रसाद तैयार करता है, ने कहा कि दिघा में भोग तैयार करना परंपराओं का उल्लंघन है. निजोग के सचिव नारायण महासुवर ने कहा, “हम पुरी के अनूठे रसोई परंपराओं को बनाए रखना चाहते हैं. हमारे सेवायत व्यापारिक रसोइए नहीं हैं.” नोटिस चस्पा किए गए और सदस्यों को सूचित किया गया कि उल्लंघन करने वालों को निजोग से निष्कासित कर पुरी मंदिर में महाप्रसाद बनाने से रोक दिया जाएगा. SJTA ने भी इस रुख का समर्थन किया.

धार्मिक और पर्यटन प्रभाव

पुरी के सेवायतों को डर है कि दिघा मंदिर बंगाली पर्यटकों और भक्तों के लिए एक नया केंद्र बन सकता है, जिससे पुरी में पर्यटकों की संख्या कम हो सकती है. ओडिशा सरकार के 2023 के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 97.25 लाख घरेलू पर्यटकों में से 13.59 लाख (14%) पश्चिम बंगाल से थे. दिघा के मंदिर के प्रचार में “पुरी जाने की जरूरत नहीं” जैसे नारे ओडिशा में भारी नाराजगी का कारण बने. साथ ही, दिघा मंदिर में गैर-हिंदुओं और विदेशियों को प्रवेश की अनुमति देने की घोषणा ने भी पुरी की परंपराओं से विचलन का मुद्दा उठाया, जहां केवल हिंदुओं को ही गर्भगृह तक पहुंच की अनुमति है.

जांच और कार्रवाई की मांग

कानून मंत्री हरिचंदन ने कहा कि जांच में दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी. उन्होंने मुख्यमंत्री मोहन माझी से अनुरोध किया कि वह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ इस मुद्दे को उठाएं. प्रसिद्ध रेत कलाकार और पद्म श्री पुरस्कार विजेता सुदर्शन पटनायक ने भी ममता बनर्जी से स्पष्टीकरण मांगा और माफी की मांग की, क्योंकि इस विवाद ने विश्व भर के जगन्नाथ भक्तों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है.

पुरी में SJTA के मुख्य प्रशासक अरविंद पाढ़ी की अध्यक्षता में शनिवार को सभी सेवायत निजोगों के साथ एक बैठक होने वाली है, जहां इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा होगी. यह विवाद न केवल धार्मिक परंपराओं की रक्षा का सवाल है, बल्कि यह भी तय करेगा कि भविष्य में पुरी के श्रीमंदिर की पवित्रता और विशिष्टता को कैसे संरक्षित किया जाए.

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