आखिर हाथी बार नवापारा अभ्यारण्य में आते क्यों हैं ?

आखिर हाथी  बार नवापारा अभ्यारण्य में आते क्यों हैं ? एक आदिवासी ग्रामीण ने जो जानकारी दी मुझे हैरान कर गई | अकूत बलशाली हाथी भी यहाँ दवाई खाने आते हैं | जी हाँ, कंद मूल के रूप में मौजूद यह दवाई उनका पसंदीदा आहार होता है |

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आखिर हाथी  बार नवापारा अभ्यारण्य में आते क्यों हैं ? एक आदिवासी ग्रामीण ने जो जानकारी दी मुझे हैरान कर गई | अकूत बलशाली हाथी भी यहाँ दवाई खाने आते हैं | जी हाँ, कंद मूल के रूप में मौजूद यह दवाई उनका पसंदीदा आहार होता है |

-डॉ. निर्मल कुमार साहू

अथाह वन सम्पदाओं को समेटे छत्तीसगढ़ के जंगलों में वन औषधियों की भरमार है | पारम्परिक बैद्य इन्ही जड़ी बूटियों से इलाज  करते आ रहे हैं | आदिवासी, जंगल जिनका जीवन है वे इस तरह के औषधियों का उपयोग अपने दैनिक जीवन में करते हैं, वे इनके अच्छे जानकार होते हैं | बैगा, गुनिया भी इनके बताए या दिए गये जड़ी-बूटियों से इलाज करते हैं |

छत्तीसगढ़ के इन्ही जंगलों में से एक है महासमुंद जिले की पिथौरा से सटे बलौदाबाजार जिले में स्थित बार नवापारा अभ्यारण्य | वन्य जीवों के साथ यहाँ के जंगल जहाँ अथाह वन औषधियों को समेटे हुए हैं यहाँ के प्राकृतिक नदी-नाले भी भरपूर वन औषधियों  से समृद्ध हैं|

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 85 किलोमीटर दूर महासमुंद जिले की सीमा से सटा बारनवापारा वन्यजीव अभयारण्य 245 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला एक छोटे सा वन्यजीव अभयारण्य है। तेंदुए और हरे भरे वन की अपनी विशाल आबादी के लिए यह लोकप्रिय है| इस अभयारण्य में भालू, उड़न गिलहरी, गीदड़ों, चार सींग वाले हिरण, तेंदुए, चिंकारा, काला बाघ, जंगली बिल्ली, बार्किंग डीयर, बंदर, बाइसन, धारीदार हाइना, जंगली कुत्ते, चीतल के साथ साथ वन्य जीव सांभर, नीलगाय, जंगली सूअर, कोबरा, पायथन पाए जाते हैं । प्रमुख पक्षी तोते, बुलबुल, उल्लू, गिद्धो, मोर इत्यादि हैं |

दाना-पानी से भरपूर बार नवापारा अभ्यारण्य शायद इसीलिए हाथियों की पसंदीदा जगह बन चुका है | ओडिशा से हर बरस उनका आगमन इसे साबित करता है | कुनबा बढ़ाकर लौटते हैं |

आखिर हाथी  बार नवापारा अभ्यारण्य में आते क्यों हैं ? सीधा सा जवाब होगा – दाना-पानी के लिए |

पर एक आदिवासी ग्रामीण ने जो जानकारी दी मुझे हैरान कर गई |

बार नवापारा अभ्यारण्य से सटे गाँव पाटनदादर के आदिवासी ग्रामीण बरातू  बताते है | उन्हें विरासत में पुरखों से  जड़ी बूटी, कंद मूल पहचान की जानकारियां मिली हैं |

हमारे पुरखे वन्य जीवों –  प्राणियों के क्रियाकलापों की बारीकी से नजर रखते थे | वन्य जीवों की गतिविधियों का उन्हें सहज अंदाज था इसलिए कभी भी इन वन्य जीवों से हमले की नौबत नहीं आई |

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बरातू

बरातू की मानें तो अकूत बलशाली हाथी भी यहाँ दवाई खाने आते हैं | जी हाँ, कंद मूल के रूप में मौजूद यह दवाई उनका पसंदीदा आहार होता है |

हाथियों की सूंघने की क्षमता इतनी तेज होती है कि वे इस कंद मूल को ढूंढ निकालते हैं | चाहे क्यों न वह जमीन के नीचे दबा हुआ हो|

बरातू  कहते हैं, बलसाय नामक इस कंद को वे पहचानते हैं | इसकी लताएँ होती हैं और जमीन में कंद | हाथी इसी कंद को खाने आते हैं | बलसाय कान की लताओं पर अगर कोई पत्थर गिर जाता है तो कुछ देर में लताएँ इसे पलट देती हैं | जब लता में इतनी ताकत तो कंद में कितना ताकत होगा जाना जा सकता है |

प्रतीकात्मक तस्वीर

वे बताते है यह कंद लाल होता है | इसे तोड़ें तो लाल रस निकलता है , जिस तरह लाल चाय  का रंग होता है उसी तरह |

अगर कोई बीमारी के बाद अशक्त महसूस करता है , या कमजोरी महसूस करता है तो इसके रस का सेवन कुछ ही दिनों में उसे तरोताजा कर देता है | इसलिए हमारे पुरखे इसका उपयोग करते थे | खासकर,  शिशु जन्म के बाद प्रसूता को इस कंद को पीने दिया जाता था |

हाथी इसे खाकर और ताकत पाते होगे तभी तो वे इसे ढूंढ निकालते हैं| बार नवापारा अभ्यारण्य में बलसाय कंद है|  इन दिनों इस इलाके में हाथी हैं | इस कंद को पाने यहाँ जाना खतरे से खाली नहीं है |

वे कहते हैं , किसी वन्य जीव को नहीं छेड़ें, उसकी गतिविधियों को देखें –जानें और वे हमें साथी की तरह नजर आयेंगे | जाने, वे किस तरह आपके जीवन की रक्षा कर रहे हैं |

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