बोरे-बासी’ : एक नया छत्तीसगढ़िया जुमला

बोरे-बासी भी एक तरह का जुमला है, या एक जुमला बन रहा है, या इसे एक जुमला बनाया जा रहा है, या एक जुमला बन गया है। जब मोदी और केजरीवाल के जुमलों की आलोचना की जाती है, तो इस तरह के जुमलों की भी आलोचना की जानी या होनी चाहिए

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राज्य में एक महत्वपूर्णं खबर चल रही है कि सरकार के नये-नवेले विधायकों का रिपोर्ट कार्ड बहुत खराब यानि बद से बदतर है। इस समय यदि राज्य में चुनाव कराये जाये तो बमुश्किल 25-30 सत्तारूढ़ कांग्रेस विधायक ही अपनी सीट बचा सकते हैं। इन तमाम असली मुद्दों से जनमानस का ध्यान हटाने के लिए बघेल सरकार भी अब जुमलों का सहारा लेने लगी है। बोरे-बासी भी इसी कड़ी में एक नया जुमला है।

-डॉ. लखन चौधरी

‘बोरे-बासी’ को लेकर सोशल मीडिया पर जिस तरह से फ़ोटो, तस्वीर, छायाचित्र एवं वीडियो इत्यादि के साथ फ़ोटोग्राफी एवं वीडियोग्राफी आ रही है, वह हैरान करनेवाला है। क्या आम छत्तीसगढ़िया इस तरह के यानि इस तरह से ‘बोरे-बासी’ खाता है या खा सकता है ? मतलब, सोशल मीडिया पर बोरे-बासी के साथ जिस तरह से, जिस तरह की, जितनी सब्जियां और आचार, चटनी, बिजोरी बरी इत्यादि की बातें हो रही या दिखाई जा रहीं हैं, क्या यह सच है ? क्या एक आम छत्तीसगढ़ी की इतनी हैसियत है ?

यह सरासर झूठ और अतिरेक के सिवा कुछ नहीं है। दरअसल  बोरे-बासी भी एक तरह का जुमला है, या एक जुमला बन रहा है, या इसे एक जुमला बनाया जा रहा है, या एक जुमला बन गया है। जब मोदी और केजरीवाल के जुमलों की आलोचना की जाती है, तो इस तरह के जुमलों की भी आलोचना की जानी या होनी चाहिए जिसका मकसद केवल वोटबैंक की राजनीति है।

पिछले कुछ समय से देश में जुमलों की राजनीति का एक दौर चल पड़ा है, जहां जनमानस की तमाम चिंताओं, समस्याओं एवं कइिनाईयों को एक तरफ ताक पर रख कर जनता को ऐसे सुनहरे सपने दिखाये जा रहे हैं मानो देश में सब कुछ ठीकठाक है, सब कुछ ठीकठाक चल रहा है, जबकि ऐसा कुछ नहीं है।

देश में महंगाई, बेरोजगारी, बिजली कटौती, बढ़ते तापमान यानि ग्लोबल वार्निंग को लेकर घमासान मचा हुआ है। जनता त्राहित्राहि कर रही है, लेकिन सरकार ऐसा व्यवहार कर रही है जैसे देश में कोई समस्याएं नहीं हैं। आम जनता मजे में है।

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इधर छत्तीसगढ़ सरकार भी पिछले कुछ समय से स्थानीय स्वशासन यथा ग्राम, जनपद एवं जिला पंचायत और नगरपालिका, नगरनिगम तथा विधानसभा उपचुनावों में लगातार जीत के बाद अति आत्मविश्वास में दिखती है। जिसकी वजह से सरकार का आत्मविश्वास उच्च स्तर पर दिखता है। यह ठीक है, लेकिन पिछले दिनों कोयला उत्खनन को लेकर सरकार द्वारा अडानी समूह को जिस तरह से एनओसी दी गई, उसे लेकर सरकार की मंशा एवं कार्यप्रणाली को लेकर आशंकाएं व्यक्त की जाने लगी हैं, जो सरकार के लिए कतई ठीक नहीं है।

दूसरी ओर इन दिनों राज्य में एक महत्वपूर्णं खबर चल रही है कि सरकार के नये-नवेले विधायकों का रिपोर्ट कार्ड बहुत खराब यानि बद से बदतर है। इस समय यदि राज्य में चुनाव कराये जाये तो बमुश्किल 25-30 सत्तारूढ़ कांग्रेस विधायक ही अपनी सीट बचा सकते हैं। इन तमाम असली मुद्दों से जनमानस का ध्यान हटाने के लिए बघेल सरकार भी अब जुमलों का सहारा लेने लगी है। बोरे-बासी भी इसी कड़ी में एक नया जुमला है।

बोरे-बासी भी जनता एवं जनमानस को असली मुद्दों और समस्याओं से उलझाने, उलझाकर रखने का ढोंग, पाखंड, प्रपंच है। संस्कृति से इसका कोई लेनादेना कतई नहीं है। यही सही है, और यही सच है कि :
बोरे-बासी खा के छत्तीसगढ़िया उतान-भसेड़ा सूतही।
तभे तो सरकार मन यहाँ के जंगल-जमींन ला लूटही।।

(लेखक; प्राध्यापक, अर्थशास्त्री, मीडिया पेनलिस्ट, सामाजिक-आर्थिक विश्लेषक एवं विमर्शकार हैं)

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