झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठ के अपने ही दावे को भाजपा ने हाईकोर्ट में नकारा  

झारखंड के संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ के अपने ही दावे को भाजपा ने हाईकोर्ट में नकार दिया. ये खेल सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का है.

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झारखंड के संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ के अपने ही दावे को भाजपा ने हाईकोर्ट में नकार दिया. ये खेल सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का है.
झारखंड के गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने संसद में यह बात कहकर सनसनी फैला दी थी कि राज्य में संथाल परगना क्षेत्र में बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण आदिवासियों की आबादी गिर रही है और उनकी जनसंख्या 16% कम हो गई है. उन्होंने आरोप लगाया था कि झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार के संरक्षण में ये घुसपैठिए आदिवासियों की जमीन पर कब्जा कर रहे हैं और इसलिए राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा देना चाहिए.
निशिकांत दुबे के इस आरोप को गोदी मीडिया ने हाथों-हाथ लिया और बड़े पैमाने पर आदिवासियों पर मुस्लिमों के अत्याचार और खास तौर पर बांग्लादेशी घुसपैठियों के अत्याचार की कहानियां परोसी जाने लगी. आरएसएस-भाजपा के आईटी सेल ने जमीन संबंधी स्थानीय विवादों को कथित बंगलादेशी घुसपैठियों के साथ जोड़कर पेश किया और इसमें रोहिंग्या मुस्लिमों का तड़का भी लगाया. भाजपाई प्रचार माध्यमों द्वारा गढ़ी गई कहानियों को ‘विश्वसनीय’ बनाकर पेश किया गया, ताकि उन्हें आम जनता के गले उतारकर आगामी विधानसभा चुनाव में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का खेल खेला जा सके.
भाजपा के मुस्लिम विरोधी प्रचार अभियान को और गाढ़ा करने के लिए अनुसूचित जनजाति आयोग की सदस्य व भाजपा नेता आशा लकड़ा ने 28 जुलाई को एक पत्रकार वार्ता में संथाल परगना क्षेत्र की उन 10 आदिवासी महिला जन प्रतिनिधियों की एक सूची जारी की, जिनके पति मुस्लिम थे. उन्होंने आरोप लगाया कि ये सभी  रोहिंग्या मुसलमान व बंगलादेशी घुसपैठिये हैं, जिन्होंने  आदिवासी महिलाओं को फंसाया हैं. इस प्रकार, इस सूची को भाजपा के कथित दावों के ‘प्रमाण’ के रूप में प्रचारित किया गया.
इसी बीच, एक खांटी भाजपा कार्यकर्ता ने झारखंड उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की, जिसमें दावा किया गया था कि बंगलादेशी घुसपैठियों द्वारा आदिवासियों से शादी कर ज़मीन लूटी जा रही है व घुसपैठ हो रही है. इस याचिका पर हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया.
इस नोटिस के जवाब में 12 सितम्बर, 2024 को दिए हलफ़नामा में भाजपा गठबंधन की केंद्र सरकार ने माना है कि हाल के ज़मीन विवाद के मामलों में बंगलादेशी घुसपैठियों का कोई जुड़ाव स्थापित नहीं हुआ है. अपने हलफनामा में उसने आदिवासी की जनसंख्या वृद्धि दर में कमी आने की बात भी स्वीकार की है. इस प्रकार, भाजपा गठबंधन की सरकार ने ही भाजपा द्वारा इन स्थानीय विवादों को बंगलादेशी घुसपैठ का रंग देने के खेल को उजागर कर दिया है, यही है, भाजपा का “चाल, चरित्र और चेहरा.” लेकिन मीडिया में अब भी बांग्लादेशी घुसपैठियों के नाम पर भाजपा का दुष्प्रचार अभियान जारी है, जो बताता है कि नफरत की राजनीति करके और समाज को बांटकर चुनाव जीतने के लिए भाजपा कितनी लालायित है.
भाजपा के इस दुष्प्रचार पर झारखंड जनाधिकार महासभा व लोकतंत्र बचाओ अभियान ने एक फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट जारी की है, जो भाजपा के इस दुष्प्रचार को पूरी तरह बेनकाब कर देता है.
जनगणना के आंकड़ों की छानबीन करते हुए इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 1951 से 2011 के बीच हिन्दुओं की आबादी 24 लाख, मुस्लिमों की 13.6 लाख और आदिवासियों की 8.7 लाख बढ़ी है. अतः भाजपा का यह दावा कि हिंदुओं और आदिवासियों की आबादी घट रही है, पूरी तरह झूठा प्रचार है.
अपने दावे को विश्वसनीय बनाने के लिए भाजपा का प्रचार है कि 1951 में संथाल परगना क्षेत्र में हिन्दुओं की आबादी 90.37% थी, जो 2011 में घटकर 67.95% रह गई है. रिपोर्ट में इस दावे की भी पोल खोली गई है और बताया गया है कि 1951 की जनगणना में केवल 6 धर्म कोड (हिंदू, इस्लाम, सिख, ईसाई, जैन व बौद्ध) में जनगणना की गयी थी और आदिवासी समुदाय को हिंदू ही मान लिया गया था. लेकिन 2011 में अनेक आदिवासियों ने अपने को ‘अन्य या सरना’ में लिखित रूप में दर्ज कराया था.
इस प्रकार, 1951 में इस क्षेत्र की कुल जनसंख्या 23.22 लाख में आदिवासियों और हिंदुओं की संयुक्त आबादी 20.99 लाख थी, तो 2011 में यहां की कुल जनसंख्या 69.68 लाख में हिंदुओं की जनसंख्या (आदिवासी हिंदू सहित) बढ़कर, भाजपा के दावे के अनुसार ही, 47.35 लाख हो गई है और इसमें गैर-हिन्दू आदिवासी शामिल नहीं है. जनसंख्या के इन आंकड़ों और इसके विश्लेषण से स्पष्ट है कि इस क्षेत्र में  हिंदुओं की आबादी घटी नहीं है.

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तो क्या आदिवासियों की आबादी घटी है? जी नहीं, उनकी भी आबादी 1951 के 10.87 लाख से बढ़कर 2011 में 19.59 लाख हो गई है. आबादी बढ़ी है, लेकिन कुल जनसंख्या के अनुपात में उनका प्रतिशत 46.8% से गिरकर 28.11% रह गया हैं. आदिवासी आबादी की वृद्धि दर में आई इस गिरावट की भी फैक्ट फाइंडिंग टीम ने छानबीन की है और अपर्याप्त पोषण, स्वास्थ्य व्यवस्था में कमी, आर्थिक तंगी, जमीन से उनका अलगाव और रोजगार की खोज और बेहतर जीवन की आशा में पलायन को इसका कारण बताया है. ये ऐसे कारण हैं, जिनके लिए केंद्र और राज्य सरकारों की नीतियां ही जिम्मेदार है और इसलिए आदिवासी आबादी में कम वृद्धि दर के लिए भी सीधे-सीधे सरकार ही जिम्मेदार है.
इसी अवधि में मुस्लिमों की आबादी में इस क्षेत्र में वृद्धि दर्ज की गई है, जिनका कुल आबादी में अनुपात 9.44% से बढ़कर 22.73% हो गया है. लेकिन इसका कारण बंगलादेशी मुस्लिमों की घुसपैठ नहीं है, बल्कि झारखंड के अन्य ज़िलों, बंगाल व बिहार से आए मुस्लिम हैं, जो यहां आकर बस गए हैं। केंद्र सरकार ने भी हाई कोर्ट में इस तथ्य को स्वीकार किया है. इनमें से कुछ मुस्लिमों का स्थानीय आदिवासियों से जमीन संबंधी विवाद चल रहा है, जिन्होंने आदिवासियों से ज़मीन अनौपचारिक दान-पत्र की व्यवस्था के जरिए खरीद लिया है. इन्हीं विवादों को भाजपा द्वारा आदिवासी बनाम बंगला देशी घुसपैठियों का रंग देकर प्रचारित किया जा रहा है. स्पष्ट है कि संथाल परगना टेनेंसी एक्ट का कड़ाई से पालन नहीं किया गया है, जो आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासी के हाथ में जाने से रोकता है. इसके लिए भी सरकार ही जिम्मेदार है.
संथाल परगना के जिन गांवों में हिंसा की घटनाएं घटी हैं और जिन्हें भाजपा ने जोर शोर से उछाला है, वहां का दौरा करने पर फैक्ट फाइंडिंग टीम ने पाया कि इन गांवों में सांप्रदायिक हिंसा का कोई इतिहास नहीं है और जमीन संबंधी जो भी विवाद हुए हैं, वे स्थानीय नागरिकों के बीच ही हुए हैं.
भाजपा ने किसी भी मुस्लिम के साथ हुए विवाद को बंगलादेशी घुसपैठिए के रूप में उछालने का घृणित काम किया है. फैक्ट फाइंडिंग टीम को इन गांवों के किसी भी व्यक्ति ने एक भी बंगलादेशी घुसपैठिये के बारे में कोई भी जानकारी नहीं दी. सबने बताया कि उन्हें घुसपैठ की बात सोशल मीडिया से ही मालूम हुई है. यहां तक कि तारानगर-इलामी में रहने वाले भाजपा के मंडल अध्यक्ष ने भी इस टीम को बताया कि उनके क्षेत्र में रहने वाले सभी मुस्लिम वहीं के निवासी हैं.
रिपोर्ट में बताया गया है कि फैक्ट फाइंडिंग टीम को संथाल परगना क्षेत्र में आदिवासी महिलाओं द्वारा हिंदू या  मुस्लिम या गैर–आदिवासी पुरुष से शादी करने के कई उदाहरण मिले हैं, लेकिन इन सभी महिलाओं ने अपनी सहमति और आपसी पसंद से शादी की है. टीम को ऐसा एक भी मामला नहीं मिला, जिसमें किसी आदिवासी महिला की बंगलादेशी घुसपैठिये से शादी हुई हो और न ही स्थानीय ग्रामीणों को ऐसे किसी मामले की जानकारी है.
टीम ने पाया कि अनुसूचित जनजाति आयोग की सदस्य आशा लकड़ा ने जिन 10 महिलाओं की सूची जारी की थी, उनमें से 6 महिलाओं ने स्थानीय मुस्लिमों से शादी की है और तीन के पति तो आदिवासी ही हैं. इससे भाजपा का यह दावा भी ध्वस्त हो जाता है कि आदिवासियों की जमीन हथियाने के लिए बंगलादेशी घुसपैठिये आदिवासी महिलाओं से शादियां कर रहे हैं, जिसके कारण आदिवासियों की जनसंख्या में गिरावट आ रही है.
स्थानीय प्रशासन ने उच्च न्यायालय में कहा है कि क्षेत्र में बांग्लादेशी घुसपैठिये नहीं हैं. चुनाव आयोग द्वारा बनाई टीम (जिसमें भाजपा के सदस्य भी थे) ने भी अपनी जांच में कुछ नहीं पाया है. इसके बावजूद भाजपा लगातार बांग्लादेशी घुसपैठिये, लैंड जिहाद, लव जिहाद आदि के नाम पर साम्प्रदायिकता व झूठ फैला रही है, तो इसका बहुत ही खुला एजेंडा है. और वह एजेंडा है : झारखंड में हिंदुओं, मुस्लिमों और आदिवासियों के बीच सांप्रदायिक विभाजन करके, उनमें दरार पैदा करके चुनावी वैतरणी पार करना. अपने इसी दुष्प्रचार को विश्वसनीय बनाने के लिए अब भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को इस काम में लगा दिया है, लेकिन जनता सब समझ रही है और लोकसभा चुनाव से शुरू हुआ भाजपा की हार का सिलसिला झारखंड में रुकने वाला नहीं है.
 -संजय पराते
(लेखक अ. भा. किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य उपाध्यक्ष हैं)
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