छत्तीसगढ़ : किसानों के नुकसान की चिंता किसे ?

छत्तीसगढ़ chhattisgarh में धान खरीदी और मण्डी शुल्क वृद्धि पर राजनीति के बीच किसानों के नुकसान की चिंता किसे है?   बारदाना संकट के बाद धान खरीदी को लेकर राज्य में एक बार फिर विवाद, नाराजगी एवं आरोप-प्रत्यारोप का दौर आरंभ हो गया है।

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छत्तीसगढ़ chhattisgarh की  मण्डियों में किसानों के साथ हो रहा अन्याय न केवल किसान आदोलन की सार्थकता सिद्ध करता है, अपितु किसानों के साथ सदियों से हो रहे या किये जा रहे अन्याय की पुष्टि भी करता है कि जब तक सरकार इसके लिए कठोर कानूनी प्रावधान नहीं करती है, तब तक किसानों का अन्याय एवं शोषण जारी रहेगा।- डॉ. लखन चौधरी

छत्तीसगढ़ chhattisgarh में धान खरीदी और मण्डी शुल्क वृद्धि पर राजनीति के बीच किसानों के नुकसान की चिंता किसे है?   बारदाना संकट के बाद धान खरीदी को लेकर राज्य में एक बार फिर विवाद, नाराजगी एवं आरोप-प्रत्यारोप का दौर आरंभ हो गया है। सत्तापक्ष और विपक्ष एक दूसरे पर जमकर आरोप लगा रहे हैं। दोनों राजनीतिक दल अपनी पार्टियों को किसान हितैषी बताने में लगे हैं।

इस बीच बड़ा सवाल यह उठता है कि मण्डी शुल्क वृद्धि और धान खरीदी को लेकर हो रही गहमा-गहमी एवं राजनीति के बीच किसानों को हो रही नुकसान की भरपाई कौन करेगा ? प्रति क्विंटल 200-300 रूपये की हो रही नुकसान की भरपाई कैसी होगी ?

बड़ा सवाल यह भी उठता है कि इस विवाद या समस्या के लिए जिम्मेदार कौन है ?

प्रतीकात्मक तस्वीर

पहली नजर में विवाद एवं समस्या के लिए सरकार जिम्मेदार है, जिसने बगैर सोचे समझे मण्डी शुल्क में एक रूपये एवं किसान कल्याण के नाम पर दो रूपये यानि कुल तीन रूपये का मण्डी शुल्क बढ़ा दिया। मण्डी शुल्क पहले दो रूपये लगता था, जिसे किसान देता था।

अब सरकार ने अपने घोषणा पत्र में किये गये वादे के मुताबिक किसानों से मण्डी शुल्क समाप्त करते हुए इसे धान खरीदी करने व्यापारियों पर लाद दिया।

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इतना ही नहीं, इस शुल्क में तीन रूपये की और बढ़ोतरी कर दी। यानि अब पूरे पांच रूपये का मण्डी शुल्क व्यापारी या धान खरीदार को देना पड़ रहा है। विवाद एवं समस्या की यही जड़ है।

चूंकि मण्डी शुल्क की इस बढ़ी हुए राशि को धान खरीदी करने वाले व्यापारी को देना है, देना पड़ रहा है। इसलिए व्यापारियों एवं राईस मिल मालिकों ने मण्डी में होने वाली धान खरीदी का रेट गिरा दिया है।

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पांच रूपये की मण्डी शुल्क वृद्धि का विरोध और धान की खरीदी कीमत में 200 से 300 रूपये की कमी या गिरावट।

दुर्भाग्यजनक पहलू यह है कि इसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है। साफ है कि सरकार की मण्डी शुल्क वृद्धि का विरोध करने के लिए राज्य के व्यापारी मंडियों में धान की खरीदी नहीं कर रहे हैं, और औने-पौने दाम पर बोलियां लगा रहे हैं या लग रही हैं। इससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।

इन दिनों छत्तीसगढ़ chhattisgarh में नगरीय निकायों के चुनाव प्रचार का दौर चल रहा है, लिहाजा धान खरीदी और मण्डी शुल्क वृद्धि के मसले को लेकर जमकर राजनीति जारी है। इस राजनीति में नुकसान किसानों को हो रहा है। लगातार बदलते मौसम के कारण किसान धान को रख भी नहीं सकते या इसे सुरक्षित रखने के लिए किसानों के पास जगह भी नहीं है। यानि धान को बेचना किसानों की मजबूरी भी है। यही वजह है कि किसानों को नुकसान उठाकर भी धान बेचना पड़ रहा है।

इस मसले का दुर्भाग्यपूर्णं पहलू यह है कि देश में आजादी के सात दशक बाद भी कृषि उत्पादों का एमआरपी यानि न्यूनतम बाजार मूल्य या न्यूनतम खरीदी-बिक्री मूल्य नहीं है। कृषि कानूनों की वापसी के बावजूद किसान आन्दोलन खत्म हो गया है। सरकार ने एमएसपी यानि  न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए गारंटी देने वाली कानून बनाने का आश्वासन तो दिया है, लेकिन इसके लिए कोई समय सीमा तय नहीं है।

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छत्तीसगढ़ chhattisgarh की  मण्डियों में किसानों के साथ हो रहा अन्याय न केवल किसान आदोलन की सार्थकता सिद्ध करता है, अपितु किसानों के साथ सदियों से हो रहे या किये जा रहे अन्याय की पुष्टि भी करता है कि जब तक सरकार इसके लिए कठोर कानूनी प्रावधान नहीं करती है, तब तक किसानों का अन्याय एवं शोषण जारी रहेगा।

दरअसल एमएसपी यानि न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी इसलिये जरुरी है क्योंकि मंडियों में किसानों को उपज का सही मूल्य नहीं मिलता है, और बगैर कानूनी गारंटी के कभी भी उत्पादों का उचित दाम किसानों को नहीं मिलेगा। देखना है कि सरकार इसके लिए कितनी तत्पर या संकल्पित है, और कब तक इसके लिए कानून लाती है।

(लेखक; प्राध्यापक, अर्थशास्त्री, मीडिया पेनलिस्ट, सामाजिक-आर्थिक विश्लेषक एवं विमर्शकार हैं)

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