आत्महत्या का अमरबेल: जीवन जीने के ’एप्रोच’ बदलिए

एक जापानी कहावत है कि ’जो कुछ भी ऐसा है जो आपको लगता है कि आपके पास होना चाहिए, तय मानिए कि वह आसान कभी नहीं होगा,’ इसलिए जीवन जीने के ’एप्रोच’ बदलिए।

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एक जापानी कहावत है कि ’जो कुछ भी ऐसा है जो आपको लगता है कि आपके पास होना चाहिए, तय मानिए कि वह आसान कभी नहीं होगा,’ इसलिए जीवन जीने के ’एप्रोच’ बदलिए।

मनुष्य का जीवन इतना निरर्थक एवं सारहीन नहीं है, और जीवन को इतना सस्ता, सरल एवं भावुक बना लेना भी जरूरी नहीं है। जीवन में भावनाओं की कद्र होनी चाहिए लेकिन इतनी भावनात्मकता भी ठीक नहीं है जिससे अपनी ही जिंदगी, अपने ही लोगों एवं अपने ही परिवार को हमारे बाद अवसाद, हताशा , निराशा  एवं कुण्ठाओं का सामना करना पड़े।

-डॉ. लखन चौधरी

आत्महत्या का अमरबेल: विवेचना एवं पड़ताल की दरकार (समापन )

आत्महत्या का अमरबेल’ नामक इस श्रृंखला की पिछली चार कड़ियों में एक डिग्री कॉलेज के प्राचार्य जो क्लास-वन अधिकारी थे, की आत्महत्या के कारणों पर विस्तार से चर्चा एवं विवेचना करते हुए यह समझने का प्रयास किया गया है कि घर-परिवार का माहौल शांतिपूर्णं, खुशनुमा एवं सौहार्द्रपूर्णं होते हुए भी कार्यस्थल का  अशांत, उलझा हुआ एवं खराब वातावरण किस तरह एक ईमानदार एवं सीधे-सरल व्यक्ति को किस कदर तक विचलित कर सकता है कि वह अपनी जिंदगी को ही दांव पर लगा देता है।

कार्यस्थल की घटनाएं एक व्यक्ति को इस कदर बेचैन कर देते हैं कि वह आत्महत्या तक के लिए उतारू हो सकता है। अपनी संतानों तक की जिंदगी के लिए वह सोच नहीं पाता है, और ऐसा आत्मघाती कदम उठा लेता है जिससे उसकी जिंदगी तो खत्म होती ही है, साथ ही साथ उसके परिवार एवं उससे जुड़े लोगों की जिंदगी भी निराशा , हताशा , कुण्ठा एवं अवसाद से भर जाती है।

कोरोना के तनाव ने बढ़ाए आत्मघाती विचार  

चिंता एवं चिंतन की बात यह है कि बेहद विचलित करने वाले इस तरह के प्रकरण अब समाज में दिनोंदिन बढ़ते जा रहे हैं। रोज अखबारों में इस तरह की घटनाओं के समाचार छप रहे हैं। सवाल उठता है कि क्या यह जीवन इतना सस्ता, आसान एवं निरर्थक है ? जिसके लिए व्यक्ति इतना संघर्ष करता है ? यदि ऐसा है तो फिर इतना संघर्ष क्यों ? और नहीं तो फिर इस तरह का आत्मघाती कदम क्यों ?

माना कि जीवन का संघर्ष एवं जीवन की परेशानियां, कठिनाईयां ’तकनीकी विकास’ के साथ लगातार बढ़ते जा रहे हैं, लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं होना चाहिए कि जीवन में यदि कुछ समय के लिए कुछ समस्याएं एवं चिंताएं आ रही हैं तो जीवन को ही समाप्त कर दिया जाये।

मनुष्य का जीवन इतना निरर्थक एवं सारहीन नहीं है, और जीवन को इतना सस्ता, सरल एवं भावुक बना लेना भी जरूरी नहीं है। जीवन में भावनाओं की कद्र होनी चाहिए लेकिन इतनी भावनात्मकता भी ठीक नहीं है जिससे अपनी ही जिंदगी, अपने ही लोगों एवं अपने ही परिवार को हमारे बाद अवसाद, हताशा , निराशा  एवं कुण्ठाओं का सामना करना पड़े।

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विचारणीय मसला यह है कि यदि पढ़े-लिखे लोग इस तरह अवसाद के जाल में फंसते चले जायेंगे तो फिर शिक्षा, ज्ञान, बुद्धि, विवेक की मनुष्य जीवन में क्या उपयोगिता रह जायेगी ? फिर जीवन की सकारात्मकता, सर्जनात्मकता, रचनात्मकता का क्या होगा ? फिर जीवन के उद्देश्यों  के क्या होंगे जो जन्म लेने के साथ उसके प्रारब्ध के तौर पर उसके साथ जुड़कर आते हैं ? फिर मनुष्यता का क्या होगा ? क्या इस तरह से मनुष्यता लांछित, अपमानित नहीं होगी ? नहीं होती रहेगी ? अंततः जीवन की सार्थकता पर सवाल तो उठते रहेंगे। इसलिए जिंदगी को दांव पर लगाने के बजाय जीवन की चिंताओं, चुनौतियों, कठिनाईयों, समस्याओं का समाना करना सीखना होगा।

तकनीकी विकास की चिंताओं एवं चुनौतियों के साथ जिंदगी को जीने की तरकीबें निकालनी होगी। जीवन के झंझावातों के साथ जीने का समायोजन करना सीखना होगा। हर हाल में, हर हालात में जीवन की चुनौतियों का डटकर मुकाबला करना होगा, इस उम्मीद एवं विश्वास  के साथ कि एक दिन समय बदलेगा, जरूर बदलेगा। एक दिन अंधेरा दूर होगा और उजाले की एक किरण से जिंदगी की सारी उलझने एक झटके में समाप्त हो जायेंगी। यही जिंदगी है।

जीवन जीने के ढ़ंग बदलने की जरूरत है। ऐसे लोगों के साथ रहने, साथ चलने एवं ऐसे लोगों का सामना करने के तरीके बदलने की जरूरत है जो आस्तिन के सांप की तरह खतरनाक एवं घातक होते हैं। ऐसे लोगों को पहचानने की आवश्यकता है, जो हमारे साथ, हमारे आसपास रहते हैं, और मौका मिलते ही छूरा घोंपने से बाज नहीं आते हैं। ऐसे लोगों से हमें सचेत रहना है और हमारे साथ जुड़े लोगों को भी आगाह करना है कि इस तरह के लोगों से बचकर रहें, दूर रहें। जीवन जीने के ढ़ंग बदलिए। जीवन जीने के तरीके बदलिए, जीवन जीने के तरकीब बदलिए। जीवने जीने के दृष्टिकोण बदलिए।

 

एक जापानी कहावत है कि ’जो कुछ भी ऐसा है जो आपको लगता है कि आपके पास होना चाहिए, तय मानिए कि वह आसान कभी नहीं होगा,’ इसलिए जीवन जीने के ’एप्रोच’ बदलिए। अपने हक एवं अधिकारों के लिए लड़िए, संघर्ष कीजिए। आगे आइए और उन लोगों को समाज के सामने लाइए जो समाज एवं नई पीढ़ी के लिए घुन की तरह ’व्यवस्था’ को खोखला करने में लगे हैं।

अपने ही जीवन को दांव पर मत लगाईए, क्योंकि अपनी ही जिंदगी को खत्म करने या चुनौतियों का सामना किये बगैर मौत को गले लगाने का मतलब जिंदगी और मौत दोनों की तौहीन है। अपनी नई पीढ़ी को यह बताने, समझाने एवं सिखाने की इस वक्त सर्वाधिक दरकार है। तभी इस दीप पर्व के मायने हैं, तभी इस दीवाली की महत्ता है, तभी इस दीपावली की सार्थकता है। शुभकामनाएं ……

 

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