राजेश खन्ना: वे आंखों से बोल रहे थे

राजेश खन्ना ने बहुत देर तक मेरा हाथ अपनी हथेलियों में दबा रखा। वे आंखों से बोल रहे थे। मैं उनकी वाचाल आंखों की भाषा को अपनी मौन आंखों से सुन रहा था। अद्भुत कलाकार था। शब्दों की मदद के बिना वह आसानी से बात करता था।

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राजेश खन्ना ने बहुत देर तक मेरा हाथ अपनी हथेलियों में दबा रखा। वे आंखों से बोल रहे थे। मैं उनकी वाचाल आंखों की भाषा को अपनी मौन आंखों से सुन रहा था। अद्भुत कलाकार था। शब्दों की मदद के बिना वह आसानी से बात करता था। उसकी भाव भंगिमाओं में उसका पूरा मन अभिव्यक्त हो जाता था। कलाकार वह होता है जो सामने बैठे किसी व्यक्ति या पात्र द्वारा ठीक से कुछ अभिव्यक्त नहीं कर पाने को भी अपनी संवेदनाओं में समझ लेता है। राजेश खन्ना खुद को अभिव्यक्त करते और मेरी अभिव्यक्तियों को अपनी संवेदनाओं में समेटकर समझने वाले बहुआयामी कलाकार थे।

-कनक तिवारी

29 दिसंबर: जन्म दिन

काका दिल तोड़ दिया यार!

अक्टूबर 1995 में मैं राज्य के सबसे बड़़े सरकारी उपक्रम मध्यप्रदेश गृह निर्माण मंडल का अध्यक्ष बना दिया गया था। सैकड़ों करोड़ के बजट के मंडल में उजागर हुआ कि खंडवा में मंडल के बहुत से मकान बना दिए गए हैं। वे बिक नहीं रहे हैं। अपने साहित्यिक सांस्कृतिक झुकाव के कारण अपने एक निज सचिव के रूप में मैंने फिल्म विकास निगम के अधिकारी सुनील मिश्र को डेपुटेशन पर बुला रखा था।एक दिन सुनील ने अनायास सुझाव दिया कि खंडवा किशोर कुमार की नगरी है। वहां किशोर कुमार की स्मृति में कोई आवासीय योजना लाई जा सके तो गृह निर्माण मंडल की वाहवाही हो जाएगी। किशोर कुमार मेरे बहुत पसंदीदा गायक रहे हैं। यह उनके प्रति प्रेम के कर्ज की अदायगी तो नहीं ब्याज की अदायगी हो सकती है।खंडवा के पत्रकार योजना के विचार से उछल पड़े। जय ने यह भी बताया किशोर कुमार का पैतृक निवास ‘गौरी कुंज‘ अच्छी हालत में नहीं है। गौरी किशोर कुमार की मां का नाम था।

उन्हीं दिनों मैंने मंडल के लिए एक नारा ईजाद किया था। वह नारा हिट हो गया था। इतना कि जब कभी मैं मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से मिलता तो वे मुझे देखकर मसखरेपन के अंदाज में बुदबुदाते, ‘हम मकान नहीं घर बनाते हैं।‘ खंडवा की असफल आवासीय कालोनी जिस दिन ‘किशोर नगर‘ कहलाएगी, उस दिन वहां हम किशोर कुमार की आत्मा का आह्वान कर सकेंगे।, मुख्य अतिथि के रूप में राजेश खन्ना को लाना चाहिए।‘ राजेश दिल्ली में थे। मैंने उन्हें अपनी याद दिलाकर पूरी योजना बताई। वे उछल पड़े, ‘बोले यार। कमाल के आदमी हो। तुमने मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया है। किशोर दा की याद करना और वह भी खंडवा में। वह तो मेरी किसी कामयाब फिल्म से भी ज्यादा हिट होने वाली बात होगी। मैं जरूर आऊंगा। यह भी करो कि उनके परिवार को ही बुला लो।‘ फिर मैंने श्रीमती किशोर कुमार अर्थात लीना चंदावकर और बेटों अमित और सुमित से भी बात कर आमंत्रण भेजा। सब कुछ तय हो गया।

दिग्विजय सिंह ने गौरी कुंज के जीर्णोद्धार के प्रयत्न के कारण मेरी पीठ ठोंकी। आवासीय योजना का नामकरण मुख्यमंत्री ने किशोर नगर के रूप में किया। हजारों की भीड़ ने तालियों की गड़गड़ाहट से आयोजन को आसमान तक उठा दिया। पूरे माहौल में उल्लास, जोश और ‘किशोर दा अमर रहें‘ के नारे का आलम था। मंच पर लोग राजनेताओं के बदले राजेश खन्ना को सुनना देखना चाहते थे। वह भीड़ भी किशोर कुमार और राजेश खन्ना की युति के कारण आई थी। चेहरे पर मुस्कराहट, आवाज में वही कातिलाना उतार चढ़ाव और आंखों में सतरंगी भाव लाते राजेश खन्ना ने किशोर कुमार की भावभीनी याद की। किशोर दा को अपनी सफलता का श्रेय दिया। उनके असामयिक निधन को लेकर वे गंभीर भी हुए।

मैंने अचानक माहौल को किशोरमय बनाने के लिए राजेश खन्ना से अनुरोध किया कि वे ‘आपकी कसम‘ फिल्म के गीत ‘जय जय शिवशंकर‘ पर यहीं नृत्य कर किशोर कुमार से हमारा आत्मसाक्षात्कार कराएं। बेहद खुशनुमा अंदाज में राजेश खन्ना ने अमित को गाने के लिए मंच पर अपने साथ खड़ा किया। उसके बाद तो अमित कुमार की आवाज राजेश खन्ना का थिरकना और उन दोनों के माध्यम से एक के बाद एक नृत्य गीत की झलकें पेश की गईं। सबको ऐसा लगा कि हम इन दोनों किरदारों को नहीं किशोर दा को देख सुन रहे हैं। वह अद्भुत समय यदि बहुत लंबा हो जाता तो कितना अच्छा होता। राजेश खन्ना के कान में मैंने कहा कि दो काम तो हो गए। एक गौरी कुंज का और एक किशोर नगर का। एक काम और करूंगा। उन्होंने मुझे चुटकी काटी। बोले, ‘क्या आज सिक्सर मारने का इरादा है?‘

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मुख्यमंत्री के भाषण के पहले उठकर मैंने फिर अपनी एक मांग सार्वजनिक तौर पर रखी। किशोर दा के कारण मुझे ऐसा लगने लगा था मानो मैं खंडवा का निवासी हूं। उस शहर के प्रतिनिधि के रूप में ही मैंने मुख्यमंत्री से अनुरोध किया कि सुगम संगीत के क्षेत्र में अपने मध्यप्रदेश के सभी दिवंगत कलाकारों के बीच किशोर कुमार की सर्वोच्च स्थिति है। इसलिए यह मध्यप्रदेश शासन का दायित्व है कि उनकी स्मृति में राज्य का सबसे बड़ा किशोर सम्मान स्थापित करे। यह सम्मान प्रतिवर्ष एक चुने हुए कलाकार को दिया जाए। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच दिग्विजय सिंह ने ऐलान किया कि राज्य का सुगम संगीत का सबसे बड़ा सम्मान पांच लाख रुपयों का किशोर दा की स्मृति में स्थापित किया जाएगा। राजेश खन्ना उछल पड़े और खड़े होकर उत्साह में तालियां बजाने लगे। पूरा खंडवा किशोरमय हो गया। खंडवा की धरती के बेटे का एक तरह से पुनर्जन्म हो रहा था।

राजेश खन्ना और देवआनंद की कुछ फिल्मों में नायिका का नाम पुष्पा रहा है। राजेश ने चुहल में मुझसे यह भी कहा था कि पुष्पा संबोधन वाले जितने भी हमारे फिल्मी डायलाग हैं। उन्हें याद कर लो। उसी तरह अपनी पत्नी को बोलोगे तो तुम्हारा जीवन बेहद रोमांटिक हो जाएगा।चाहे कुछ भी हो।

देश के करोड़ों दर्शक राजेश खन्ना को अपनी यादों में आज भी उसी तरह कहीं न कहीं झकझोर रहे होंगे।लौटकर राजेश खन्ना ने बहुत देर तक मेरा हाथ अपनी हथेलियों में दबा रखा। वे आंखों से बोल रहे थे। मैं उनकी वाचाल आंखों की भाषा को अपनी मौन आंखों से सुन रहा था। अद्भुत कलाकार था। शब्दों की मदद के बिना वह आसानी से बात करता था। उसकी भाव भंगिमाओं में उसका पूरा मन अभिव्यक्त हो जाता था। कलाकार वह होता है जो सामने बैठे किसी व्यक्ति या पात्र द्वारा ठीक से कुछ अभिव्यक्त नहीं कर पाने को भी अपनी संवेदनाओं में समझ लेता है। राजेश खन्ना खुद को अभिव्यक्त करते और मेरी अभिव्यक्तियों को अपनी संवेदनाओं में समेटकर समझने वाले बहुआयामी कलाकार थे।

आयोजन के बाद चले जाने से हमारी दो छोटी मुलाकातों के दोहरे युग का अंत हो रहा । वहां यादों के युग की शुरुआत हो रही थी। मुझे उम्मीद थी कि शायद मैं फिर कभी इसी तरह उनके साथ रूबरू हो सकूंगा। एक मध्यवर्ग के सामाजिक, राजनीतिक, बौद्धिक कार्यकर्ता को संयोगवश कोई पद मिल जाने से कुछ लाभ हुए। उनमें राजेश खन्ना के साथ बिताए गए क्षण अब तक अपनी कौंध में जीवित हैं। सब कुछ किसी ऐसे सपने जैसा लगता है जो बार बार आता है लेकिन यादों का धुंधलका घना क्यों हो रहा है? (fecebook post साभार)

(लेखक संविधान मर्मज्ञ,गांधीवादी चिन्तक और छत्तीसगढ़ के पूर्व महाधिवक्ता हैं |  यह उनका निजी विचार है|  deshdigital.in  असहमतियों का भी स्वागत करता है)

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