छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने दिया मीसा बंदियों को सम्मान निधि देने का आदेश

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मीसा बंदियों को  सम्मान निधि देने का आदेश दिया है। चीफ जस्टिस अरुप कुमार गोस्वामी और जस्टिस एनके व्यास की बेंच   ने करीब दो माह पहले इस मामले में फैसला सुरक्षित रखा था।  

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बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मीसा बंदियों को  सम्मान निधि देने का आदेश दिया है। चीफ जस्टिस अरुप कुमार गोस्वामी और जस्टिस एनके व्यास की बेंच   ने करीब दो माह पहले इस मामले में फैसला सुरक्षित रखा था।

राज्य में कांग्रेस की सरकार आने के बाद 2019 में प्रदेश के मीसा बंदियों को दी जाने वाली पेंशन राशि देने के आदेश को बदल दिया था। साथ ही नया नोटिफिकेशन जारी कर भौतिक सत्यापन के नाम से राशि रोक दी गई थी। इस फैसले के खिलाफ मीसा बंदियों ने हाईकोर्ट की शरण ली थी, जिसमें सिंगल बेंच ने मीसा बंदियों के पक्ष में फैसला दिया था। इस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने डिवीजन बेंच में अपील की थी।

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मीसा बंदियों को  पेंशन योजना बंद करने के फैसले को भी किया रद्द कर दिया गया है। इस आदेश को  राज्य शासन को जोरदार झटका माना जा रहा है।

छत्तीसगढ़ सरकार के फैसले के खिलाफ मीसा बंदियों ने पेंशन भुगतान की मांग को लेकर अधिवक्ता रणवीर सिंह मरहास सहित अन्य वकीलों ने हाईकोर्ट में अलग-अलग 40 याचिकाएं दायर की थी।

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याचिकाकर्ताओं ने पेंशन रोके जाने के कारण भरण पोषण की समस्या का हवाला देते हुए पेंशन व्यवस्था को नियमित रखने की मांग की थी।

बता दें पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा देश में आपातकाल की घोषणा के बाद जेल में बंद किए गए राजनीतिक बंदियों को लोकतंत्र सेनानी का दर्जा देते हुए वर्ष 2008 से पेंशन व्यवस्था (सम्मान निधि) लागू की थी। मीसा बंदियों को पेंशन के लिए दो श्रेणी बनाई गई।

6 महीने से कम जेल में रहने वाले बंदियों को प्रति महीने 15 हजार रुपए व छह महीने से ज्यादा जेल में बंद रहने वाले बंदियों को प्रति महीने 25 हजार रुपये  पेंशन की व्यवस्था शुरू की थी। ऐसे मीसा बंदी जिनकी मृत्यु हो गई है, उनकी पत्नी को जीविकोपार्जन के लिए आधी राशि का भुगतान किया जा रहा था।

वर्ष 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी तो मीसा बंदियों को दी जा रही पेंशन राशि रोक दिया था। साथ ही कहा था कि मीसा बंदियों के सम्मान निधि की पहले भौतिक सत्यापन और समीक्षा कराई जाएगी, फिर बाद में शासन ने नोटिफिकेशन जारी कर सम्मान निधि नहीं देने का फैसला किया। शासन के इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अलग-अलग याचिकाएं दायर की गई थी ।

 

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