पिथौरा: झोला छाप डॉक्टरों के सामने बेबस सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था

झोला छाप डॉक्टरों के सामने सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था बेबस नजर आ रही है।हालात ऐसे है कि सरकारी अस्पताल की ओपीडी में कोई आधा दर्जन डॉक्टरों एवम दर्जन भर से अधिक अमले के बीच प्रतिदिन 100 से 150 मरीज ही पहुँचते  है जबकि नगर के अलग-अलग मोहल्लों में झोला डॉक्टरों से उपचार कराने प्रतिदिन प्रत्येक डॉक्टर के पास इससे अधिक मरीज पहुँच  रहे है।जिससे स्थानीय स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रश्नचिन्ह लग रहा है।

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पिथौरा|  झोला छाप डॉक्टरों के सामने सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था बेबस नजर आ रही है।हालात ऐसे है कि सरकारी अस्पताल की ओपीडी में कोई आधा दर्जन डॉक्टरों एवम दर्जन भर से अधिक अमले के बीच प्रतिदिन 100 से 150 मरीज ही पहुँचते  है जबकि नगर के अलग-अलग मोहल्लों में झोला डॉक्टरों से उपचार कराने प्रतिदिन प्रत्येक डॉक्टर के पास इससे अधिक मरीज पहुँच  रहे है।जिससे स्थानीय स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रश्नचिन्ह लग रहा है।

नगर एवम आसपास के ग्रामो में सरकारी स्वास्थ्य सुविधा पर्याप्त है।नर्सिंग स्टाफ एवम आर एम ए भी पदस्थ है।इसके बावजूद अधिकांस नगरवासी हो या ग्रामीण सरकार द्वारा नियुक्त किये गए काबिल डॉक्टरों से उपचार करवाना पसंद नही कर रहे है।जिससे यह साबित होता है कि कहीं  न कहीं कोई गड़बड़ तो जरूर है जिससे लोग काबिल डॉक्टरों को दरकिनार कर मोटी फीस देकर झोला छाप अल्प ज्ञान रखने वाले कथित डॉक्टरों से उपचार करवाना पसंद कर रहे हैं । ज्ञात हो कि उक्त कथित डॉक्टर कुछ माह किसी काबिल डॉक्टरों पास कंपाउंडर रह कर खुद ही डॉक्टर बनकर अपना अस्पताल खोल कर बैठ जाते है।

कोई रोकटोक नहीं ,बकायदा अस्पताल चला रहे

मुहल्लों में उक्त कथित डॉक्टर बकायदा अस्पताल खोल कर खुले आम व्यवस्थित तरीके से अपने स्वास्थ्य केंद्र चला रहे है।जिसमे प्रतिदिन इनकी कोई 5 हजार से 15 हजार रुपयों तक कि प्रैक्टिस है।इस जानलेवा अवैध कार्य मे स्वास्थ्य प्रशासन भी इनका साथ देता दिख रहा है। क्योंकि बरसो से लोगो के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे फर्जी डॉक्टरों पर मात्र दिखावे के लिए ही कार्यवाही की जाती है।कार्यवाही के बाद भी खुले आम अवैध अस्पतालों का संचालन प्रशासन की कार्यवाही को ही संदेह के दायरे में खड़ा करता है।

 तत्काल इलाज के कारण लोग झोला छाप के चक्कर में फंसते है–बीएमओ
इधर सरकारी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अलावा पूरे क्षेत्र के गांव गांव में काबिल मेडिकल स्टाफ नियुक्त है।इसके बावजूद ग्रामीणों के अलावा अच्छे पढ़े लिखे लोग भी अपना उपचार करवाने के लिए झोला छाप फर्जी डॉक्टरों को ही अपनी प्राथमिकता में रखते है।आखिर ऐसी कौन सी वजह है जिसके कारण लोग काबिल स्वास्थ्य अमले पर भरोसा करने की बजाय फर्जी डॉक्टरों पर ही भरोसा करते है।

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इस प्रश्न पर स्थानीय खण्ड चिकित्सा अधिकारी डॉ तारा अग्रवाल ने इस प्रतिनिधि को बताया कि सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में मरीज की जांच के दौरान उनकी बीमारी के बारे में जांच कर उपयुक्त दवाएं ही दी जाती है। जांच हेतु लैब एवम अन्य सुविधाएं अस्पताल में मौजूद है।इसके बावजूद मरीज के उपचार में थोड़ा समय तो लगता ही है परन्तु मरीज बगैर जांच के ही उपचार चाहने लगे है। फर्जी डॉक्टरों के पास थर्मामीटर एवम बी पी ऑपरेटर ही होता है इसके अलावा कोई जांच नहीं  करते और मात्र लक्षण के आधार पर ही दवाएं दे दी जाती है जिसे मरीज स्वीकार भी कर लेते है।यही वजह है कि लोग अपना उपचार सरकारी काबिल डॉक्टरों से करवाने की बजाय फर्जी डॉक्टरों से करवाते हैं |

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सरकारी और झोला छाप डॉक्टरों के उपचार में फर्क के बारे मे डॉ अग्रवाल ने बताया कि योग्य डॉक्टर ज्यादा जोखिम वाली दवाएं देने से परहेज करते है क्योंकि उन्हें इनके साइड इफेक्ट का ज्ञान होता है जबकि फर्जी डॉक्टरों को इन सबसे कोई मतलब नही होता। किस दवा का क्या साइड इफेक्ट है इसकी जानकारी न तो उपचार कर रहे इन डॉक्टरों को होती है ना ही मरीज को लिहाजा तत्काल मरीज ठीक होते तो है परन्तु इन दवाओं के साइड इफेक्ट कुछ समय बाद दिखते है जो कि मरीज समझ नहीं पाते।

बहरहाल प्रशासन की नाक के नीचे ही फर्जी डॉक्टर खुलेआम अपना अवैध अस्पताल चला कर मजबूर बीमार लोगो की उम्र कम करने में जुटे है। वही सरकारी अमले को भी अपना पुराना ढर्रा छोड़ कर आधुनिक उपचार की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए जिससे आम लोगों  का रुझान सरकारी अस्पतालों एवम डॉक्टरों की ओर बढ़े जिससे फर्जी तरीके से डॉक्टर लिख कर उपचार करने वालो पर सरकारी बंदिश लगाई जा सके।

deshdigital के लिए रजिंदर खनूजा की रिपोर्ट

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