व्यंग्य : मूर्खता का स्वाद
मूर्खता का जायका ही अलग है , जिसकी जीभ में एक बार लग जाता है वह कई तरह की मूर्खतायें करता जाता है | इसका आनंद ही कुछ और है | वे तमाम विद्वान् मूर्ख के आगे फेल हो जाते हैं जो मूर्खता की देहरी लांघकर विद्वता की पायदान तक नहीं पहुंचे हैं |
मूर्खता का जायका ही अलग है , जिसकी जीभ में एक बार लग जाता है वह कई तरह की मूर्खतायें करता जाता है | इसका आनंद ही कुछ और है | वे तमाम विद्वान् मूर्ख के आगे फेल हो जाते हैं जो मूर्खता की देहरी लांघकर विद्वता की पायदान तक नहीं पहुंचे हैं |
-डॉ. निर्मल कुमार साहू
अलसुबह सैर पर, बाबू से अफसर बने किस्म के एक प्राणी से मुठभेड़ हो गई | अपने दफ्तर के किस्से शुरू किये और बताया कि इन दिनों देर शाम तक ( यानि दफ्तर के समय 5.30 तक ) रहना पड़ रहा है | विधानसभा के कायं -कायं का जवाब देने | इतने अहम् कार्य के लिए उसे पद्म सम्मान तो दिया जाना चाहिए पता नहीं इस केटेगरी में उनको क्यों शामिल नहीं किया गया है | सरकार भी अजीब है |
बाबू से अफसर बने इस किस्म की, बातें जब सब्र से बाहर हो गईं तो कहा , अजीब तर्क देते हो यार | दोपहर में ही घर आकर आराम करते अब जब कुछ दिनों के लिए काम करना पड़ रहा है तो हाय तोबा क्यों ? कुछ ही दिनों पर फिर अपनी पटरी पर आ जाओगे | और दिनों से बस तोड़ी मेहनत ही तो हो रही है ?
अरे यार, हम तर्क कहाँ कर रहे हैं | हम तो मूर्खता कर रहे हैं | बड़े अफसर के सामने मूर्खता ही काम आती है , ज्ञान पेलोगे तो वह इतनी मूर्खताएं बघारेगा कि तुम्हारा सारा ज्ञान धरा का धरा रह जायेगा |
वैसे मूर्खता ज्ञान की पहली सीडी है | इससे गुजरकर ही कोई विद्वान बनता है | कलिदास की मूर्खता जब मेघदूत में परिवर्तित हो गई तो वह अजर अमर हो गया | सोचो जरा बाल्मीकि गुंडई नहीं करता तो आदिकवि बनने का सौभाग्य कहाँ पाता| देखते नहीं गुंडई करते कितने. नेता से मंत्री संत्री बन गये |
मूर्खता का जायका ही अलग है , जिसकी जीभ में एक बार लग जाता है वह कई तरह की मूर्खतायें करता जाता है | इसका आनंद ही कुछ और है | वे तमाम विद्वान् मूर्ख के आगे फेल हो जाते हैं जो मूर्खता की देहरी लांघकर विद्वता की पायदान तक नहीं पहुंचे हैं |
मूर्ख सर्वज्ञ होता है, वह ये नहीं जानता की कि वह क्या नहीं जानता है | वह इस दुनिया का महान मेहनती जीव है , बर्र की तरह | इसके छत्ते को कभी नहीं छेड़ना चाहिए |
मूर्खता का सामूहिक प्रदर्शन करने वालों को भक्त कहा जाता है | बाबा -बैरागी , साधू-महात्मा, संत-महंत, नेता –मंत्री के भक्त उनके हाथों लुट-पिटकर भी अपनी भक्ति कायम रखकर हँसते-मुस्कराते जय-जयकार में लगे रहते हैं | पर मंदिर में मैं मूर्ख तुम स्वामी गाकर स्व घोषित भक्तों को कभी मूर्ख कहने की गलती मत करना| क्योंकि इतना हौसला भगवान में भी शायद हो | वह भी इनके आगे नतमस्तक रहता है |
मूर्खता महात्म्य सुनते-सुनते जब अपने घर के करीब पहुंचा तो चाय पीने का आग्रह किया | वे बोले, फिर कभी | अभी तो मैं चाय ठेले पर हर दिन की तरह चुस्कियां लूँगा | वह मेरा स्वाद पूरी तरह जानता है | मैंने कहा, यानि वहां अब जाकर अपना ज्ञान वितरित करोगे |
अरे यार नहीं, ज्ञान नहीं हर दिन की तरह मूर्खता का आनंद लूँगा | मूर्खताएं करूँगा, उनके जैसा ही मूर्ख बनकर मूर्खता बघारते चाय की चुस्कियां लाजवाब हो जाती हैं | कभी मेरे इस ठीये पर आना किसिम किसिम की मूर्खताएं देख इन पर पर गर्व करोगे, सीना 56 इंच का हो जायेगा |