शिक्षा, शिक्षण संस्थानों के बाद परीक्षाएं राजनीति की भेंट चढ़ रहीं

शिक्षा, शिक्षण संस्थानों के बाद अब परीक्षाएं राजनीति की भेंट चढ़ने लगीं हैं।  स्कूली बच्चों की परीक्षाएं ऑफलाईन मोड में हो चुकी हैं, और ऑफलाईन मोड में हो रही हैं, इधर विविश्वविद्यालयों की परीक्षाएं ऑनलाईन होंगी।

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शिक्षा, शिक्षण संस्थानों के बाद अब परीक्षाएं राजनीति की भेंट चढ़ने लगीं हैं।  स्कूली बच्चों की परीक्षाएं ऑफलाईन मोड में हो चुकी हैं, और ऑफलाईन मोड में हो रही हैं, इधर विविश्वविद्यालयों की परीक्षाएं ऑनलाईन होंगी। तात्पर्य यह है कि सरकार ने अपने छात्र संगठन के चंद लोगों के आगे घुटने टेक दिये हैं। सरकार के इस निर्णय के लिए राज्य की विपक्ष में बैठी राजनीतिक दल के नेतागण भी उतने ही जिम्मेदार हैं, जितनी की सरकार चलाने वाले जवाबदेह हैं।

-डॉ. लखन चौधरी

छत्तीसगढ़ की विश्वविद्यालयीन परीक्षाएं इस साल भी ऑनलाइन ही होंगी। जहां एक ओर राज्य सरकार का यह निर्णय बहुत ही गैर जिम्मेदाराना एवं गैर जवाबदेही भरा है, वहीं यह निर्णय उन विद्यार्थियों के लिए भी बहुत ही दुर्भाग्यपूर्णं है जो आगे चलकर कॅरियर के लिए कुछ करना चाहते हैं। अपनी काबिलियत के दम पर जीवन में कुछ बनना चाहते हैं। अपनी योग्यता, हुनर, दक्षता के बल पर जीवन में एक मुकाम बनाना चाहते हैं।

शिक्षण सत्र 2021-22 की वार्षिक परीक्षाओं के संबंध में सरकार का यह निर्णय हालाकि चौंकाने वाला नहीं है, लेकिन सरकार के इस निर्णय के लिए राज्य की विपक्ष में बैठी राजनीतिक दल के नेतागण भी उतने ही जिम्मेदार हैं, जितनी की सरकार चलाने वाले जवाबदेह हैं। साथ ही इस निर्णय के लिए राज्य के राजकीय विश्वविद्यालयों के मुखिया गण भी कम जिम्मेदार नहीं हैं।

शिक्षा, शिक्षण संस्थानों के बाद अब परीक्षाएं राजनीति की भेंट चढ़ने लगीं हैं। 2021-22 की बची परीक्षाएं ऑनलाईन मोड में करने के सरकार के निर्णय से केवल शिक्षक समुदाय हतप्रभ नहीं है, अपितु राज्य के बहुसंख्यक विद्यार्थी वर्ग भी सरकार के निर्णय से असहमत नजर आ रहे हैं। इसके बावजूद सरकार ने जो निर्णय दिया है, वह किसी भी हालात में विद्यार्थियों के हित में नहीं है।

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कहा जाता है कि राजनीति में सब कुछ जायज होता है, और हर परिस्थिति में जायज होता है। इस समय भारतीय राजनीति इसे चरितार्थ करने में लगी है। वोट बैंक की राजनीति इस वक्त अर्थव्यवस्था, समाज, स्वास्थ्य, शिक्षा सब कुछ तबाह करने में लगी है। शिक्षण संस्थानों को राजनीति से दूषित करने के बाद अब परीक्षाओं को भी नहीं छोड़ा जा रहा है। वोटबैंक के लिए परीक्षाओं तक की बलि दी जाने लगी है।

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स्कूली बच्चों की परीक्षाएं ऑफलाईन मोड में हो चुकी हैं, और हो रही हैं, इधर विश्वविद्यालयों की परीक्षाएं ऑनलाईन होंगी। तात्पर्य यह है कि सरकार ने अपने छात्र संगठन के चंद लोगों के आगे घुटने टेक दिये। इस बात की तनिक भी बगैर परवाह किये कि सरकार के इस निर्णय से पढ़ने-लिखने वाले तीन-चौथाई विद्यार्थियों का कतई भला होने वाला नहीं है।

शिक्षा, शिक्षा संस्थान के बाद अब परीक्षाएं भी राजनीति से नियंत्रित होने लगीं हैं। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्णं है, जिसकी जितनी निंदा एवं भर्त्सना की जाये कम है। छत्तीसगढ़ की विश्वविद्यालयीन परीक्षाएं ऑनलाइन होंगी। जहां यह राज्य के विश्वविद्यालयों और सरकार का बहुत ही गैर जिम्मेदाराना निर्णय है, वहीं यह निर्णय उन विद्यार्थियों के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्णं है जो आगे चलकर कॅरियर के लिए कुछ करना चाहते हैं। अपनी काबिलियत के दम पर जीवन में कुछ बनना चाहते हैं।

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सरकार का यह निर्णय राज्य को कई साल पीछे ले जा सकता है। सरकार ने जल्दबाजी एवं दबाव में आकर इस तरह का निर्णय लेकर जहां अपरिपक्वता एवं शिक्षा जैसे महत्वपूर्णं मसले की अनदेखी का परिचय दिया है, वहीं भविष्य में इस निर्णय के दूरगामी घातक परिणाम सामने आने वाले हैं। पिछले दो-ढाई सालों में शिक्षा की जो स्थिति है, उससे सभी वाकिफ हैं, इसके बावजूद इस तरह के निर्णय का तात्पर्य है कि सरकार अपने युवाओं की शिक्षा, कॅरियर, रोजगार को लेकर कितनी चिंतित है ? साफ है।

(लेखक; प्राध्यापक, अर्थशास्त्री, मीडिया पेनलिस्ट, सामाजिक-आर्थिक विश्लेषक एवं विमर्शकार हैं)

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