ऑनलाईन परीक्षाओं के लिए छात्र संगठनों की लामबंदी, दुर्भाग्यपूर्णं

इस सत्र की महाविद्यालयीन परीक्षाओं को भी ऑनलाईन करने की मांग पर सरकार की चुप्पी समझ से परे है। सरकार के इस कदम से जहां एक ओर होनहार विद्यार्थियों का हौसला पस्त हो रहा है, वहीं दूसरी ओर ’सब कुछ मुफ्त पाने वाले वोटरों’ की तरह बिना परीक्षा दिये यानि बगैर मेहनत किये डिग्री पाने वाले विद्यार्थियों की एक फौज खड़ी हो रही है

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इस सत्र की महाविद्यालयीन परीक्षाओं को भी ऑनलाईन करने की मांग पर सरकार की चुप्पी समझ से परे है। सरकार के इस कदम से जहां एक ओर होनहार विद्यार्थियों का हौसला पस्त हो रहा है, वहीं दूसरी ओर ’सब कुछ मुफ्त पाने वाले वोटरों’ की तरह बिना परीक्षा दिये यानि बगैर मेहनत किये डिग्री पाने वाले विद्यार्थियों की एक फौज खड़ी हो रही है, जो शैक्षणिक संस्थानों के इर्दगिर्द रहकर माहौल खराब करने के काम में लगे रहते हैं –

-डॉ. लखन चौधरी

छत्तीसगढ़ के विश्वविद्यालयों में ऑनलाईन परीक्षाओं के लिए छात्र संगठनों की लामबंदी एक बार फिर आरंभ हो गई है। इस बार ऑफलाईन परीक्षाएं समय पर आरंभ करने के लिए सारी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं, लेकिन ऐन वक्त छात्र संगठनों के इस तरह के विरोध के चलते सारा मामला पेशोपेश में पड़ गया है। सरकार अनिर्णय की स्थिति में है, जिसके चलते इस सत्र की परीक्षाओं में अनावश्यक विलंब होता जा रहा है। जबकि अब कोरोना के मामले पूरी तरह खात्मे की ओर हैं।

जब 10वीं एवं 12वीं की स्कूली परीक्षाएं पूरी तरह ऑफलाईन मोड में अच्छी तरह चल रही हैं, ऐसे में महाविद्यालयों के लिए ऑनलाईन परीक्षाओं की मांग करना एवं इस पर सरकार की चुप्पी समझ से परे है। सरकार के इस तरह के निर्णयों से जहां एक ओर होनहार विद्यार्थियों का हौसला पस्त होता जा रहा है|

वहीं दूसरी ओर ’सब कुछ मुफ्त पाने वाले वोटरों’ की तरह बिना परीक्षा दिये यानि बगैर मेहनत किये डिग्री पाने वाले विद्यार्थियों की एक फौज खड़ी होती जा रही है, जो शैक्षणिक संस्थानों के इर्दगिर्द रहकर माहौल खराब करने के काम में लगे रहते हैं।

कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर को बड़ी वजह मानकर छत्तीसगढ़ सहित तमाम सरकारें फरवरी महिने तक ऑनलाईन परीक्षाओं को बढ़ावा देती रहीं हैं। कभी चुनींदा विद्यार्थियों की मांग को लेकर, तो कभी कुछेक पालकों की मांग को लेकर सरकारें इसे गंभीर मसला न मानते हुए टालती रही हैं। कभी छात्र संगठनों की मांग को लेकर सरकारों ने परीक्षाओं को टालने में देरी नहीं की, जिसका नतीजा यह हो रहा है कि अब विद्यार्थियों का एक समूह तैयार हो गया है जो अभी भी ऑफलाईन परीक्षा देने के लिए तैयार नहीं हो रहा है।

अब जब तीसरी लहर भी खत्म हो चुकी है उसके बावजूद छात्र संगठनों का एक समूह ऑनलाईन परीक्षाओं के लिए अड़ा हुआ है, और जगह-जगह प्रदर्शन कर रहा है। ऑनलाईन परीक्षाओं की वजह से पिछले दो सालों में उच्चशिक्षित बेरोजगारों की बड़ी फौज खड़ी हो चुकी है।

उच्चशिक्षित बेरोजगारों की यह फौज भविष्य में सरकार के लिए ही मुसीबत बनने वाली है। इस वक्त सरकारें कोई जोखिम ना लेते हुए सबको डिग्री बांटने का जो उपक्रम कर रहीं हैं, यह ना तो सरकारों के लिए सही है, और ना ही स्वयं विद्यार्थियों या युवाओं के लिए उचित है। इसके बावजूद कोरोना की आड़ में धड़ल्ले से डिग्री बांटने का काम चल रहा है।

उच्चशिक्षा में ऑनलाईन परीक्षाएं उन विद्यार्थियों के लिए वरदान साबित हो रहीं हैं, जिन्हें ज्ञान, अनुभव नहीं चाहिए; या कहा जाये कि इनकी तुलना में जिनके लिए डिग्रियां अधिक महत्व रखती हैं। सरकार के ऑनलाईन परीक्षाओं के इस निर्णय से बहुत से विद्यार्थी खुश एवं संतुष्ट हैं, लेकिन विद्यार्थियों का ही एक वर्ग है जो इस निर्णय से इत्तफाक नहीं रखता है। जो पढ़ने-लिखने वाला समूह है, वह सरकार के इस निर्णय से बिल्कुल सहमत नहीं है। इसकी वजह यह है कि इस पद्धति से हासिल उपाधि या प्राप्त डिग्री कॅरियर अथवा जीवन के लिए कतई सहायक नहीं है, और ना ही रोजगार, स्वरोजगार के लिए मददगार है।

ऑनलाईन परीक्षाओं के लिए छात्र संगठनों की लामबंदी, दुर्भाग्यपूर्णं
प्रतीकात्मक तस्वीर

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गलाकाट प्रतियोगिता के युग में ऑनलाईन पद्धति से हासिल डिग्री का क्या मोल या मतलब है ? एक-एक पदों की नौकरियों के लिए हजारों-हजार की तादाद में बेरोजगारों की फौज खड़ी है, ऐसे में डिग्रियों की कितनी कीमत है ? जहां सारी भर्तियां प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं के माध्यम से होने लगीं हैं, वहां प्राप्तांकों की क्या कीमत है ?

इस पद्धति से जहां एक ओर समाज में बेतहाशा शिक्षित बेरोजगारी बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर उच्चशिक्षा की लगातार गिरती गुणवत्ता एवं गुणात्मकता दूसरा मसला है, जो इससे अधिक महत्वपूर्णं है। दरअसल  उच्चशिक्षा की महत्ता कॅरियर या रोजगार या स्वरोजगार के लिए जितनी महत्वपूर्णं होती है; उससे कहीं अधिक उपयोगी जीवन की समस्याओं एवं चुनौतियों के निपटने के लिए होती है।

सरकारों को यह गंभीरता से सोचना चाहिए कि आखिरकार ऑनलाईन पद्धति से थोक में डिग्रियां बांटकर उच्चशिक्षित बेरोजगारों की बड़ी फौज खड़ी करने के अतिरिक्त सरकारें कर क्या रहीं है ? इस तरह की फौज खड़ी करके सरकारें किसका भला कर रही हैं ?

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तात्पर्य यह है कि ऑनलाईन परीक्षाओं के लिए छात्र संगठनों की एक बार फिर लामबंदी जहां एक ओर गैर जरूरी है, वहीं दूसरी तरफ यह निरर्थक और अनुपयोगी भी है। सरकार को इस पर तत्काल निर्णय लेते हुए सारी परीक्षाओं को ऑफलाईन करने के लिए आदेश जारी करना चाहिए, जिससे समय पर परीक्षाएं पूरी हो सकें एवं अगला शिक्षण सत्र समय पर आरंभ हो सके।

(लेखक; प्राध्यापक, अर्थशास्त्री, मीडिया पेनलिस्ट, सामाजिक-आर्थिक विश्लेषक एवं विमर्शकार हैं)

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