एडसमेटा मुठभेड़: न्यायिक जांच की रिपोर्ट विधानसभा में पेश, मुठभेड़ फर्जी

बीजापुर के एडसमेटा में हुई कथित मुठभेड़ फर्जी थी। सुरक्षाबलों ने बीज पंडुम का त्योहार मना रहे आदिवासियों पर घबराहट में गोली चलाई थी। इसमें 8 ग्रामीणों समेत crpf के एक जवान की मौत हुई थी।  9 बरस  पहले बीजापुर के एडसमेटा में मुठभेड़ प्रकरण की न्यायिक जांच आयोग का प्रतिवेदन सोमवार को विधानसभा में पेश किया गया।

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रायपुर| बीजापुर के एडसमेटा में हुई कथित मुठभेड़ फर्जी थी। सुरक्षाबलों ने बीज पंडुम का त्योहार मना रहे आदिवासियों पर घबराहट में गोली चलाई थी। इसमें 8 ग्रामीणों समेत crpf के एक जवान की मौत हुई थी।  9 बरस  पहले बीजापुर के एडसमेटा में मुठभेड़ प्रकरण की न्यायिक जांच आयोग का प्रतिवेदन सोमवार को विधानसभा में पेश किया गया।

जस्टिस वीके अग्रवाल की एक सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग का प्रतिवेदन सीएम भूपेश बघेल ने  सोमवार को विधानसभा के पटल पर रखा । इसके साथ ही यह रिपोर्ट सार्वजनिक हो गई। रिपोर्ट में बताया गया कि 17-18 मई 2013 की रात एडसमेटा गांव के पास से गुजरते हुए सुरक्षाबलों ने आग के पास लोगों का जमावड़ा देखा।

संभवत: उन लोगों ने ग्रामीणों को नक्सली मान लिया, जिसके परिणामस्वरूप उन लोगों ने आड़ ली और भीड़ की ओर फायर करना शुरू कर दिया। इस घटना में सुरक्षा बल की गोली से 8 व्यक्तियों की मृत्यु हो गई। 5 व्यक्ति घायल हो गए, और घायल हुए व्यक्तियों में से एक की बाद में मृत्यु हो गई। घटना में सीआरपीएफ के एक सदस्य की भी मृत्यु हुई।

रिपोर्ट में स्पष्ट   कहा गया है, यह गोलीबारी आत्मरक्षा में नहीं की गई थी। कोई भी तथ्य नहीं मिले हैं, जिससे पता चलता हो कि ग्रामीणों की ओर से सुरक्षाबलों पर गोली चलाई गई हो अथवा किसी तरह का हमला किया गया हो। आयोग ने माना है कि यह गोलीबारी ग्रामीणों को पहचानने में गलती और सुरक्षाबलों की घबराहट की वजह से हुई है। आयोग ने माना है कि सुरक्षाबलों के पास पर्याप्त सुरक्षा उपकरण, आधुनिक संचार के साधन और बेहतर प्रशिक्षण होता तो इस तरह की घटना को रोका भी जा सकता था।

गृह विभाग के पालन प्रतिवेदन में यह बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 6 सितंबर 2019 को प्रकरण सीबीआई जबलपुर को सौंप दिया गया। सीबीआई प्रकरण की विवेचना कर रही है।

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आयोग ने जांच के बिंदु तय किए थे उनमें नक्सलियों के साथ मुठभेड़ हुई थी? घटना कब और किन परिस्थितियों में घटित हुई? सहित आयोग ने 7 बिन्दुओं पर जांच की, और भविष्य को लेकर सुझाव भी दिए।

99 पेज के प्रतिवेदन में यह उल्लेखित है कि सुरक्षा बलों ने आग के आसपास लोगों के जमाव को देखा, संभवत: उन्होंने उन्हें नक्सल संगठन का सदस्य मान लिया। जिसके परिणाम स्वरूप उन्होंने और तथाकथित आत्मरक्षा में गोलियां चलानी शुरू कर दी। यद्यपि जैसा कि पहले भी विचार किया जा चुका है। प्रस्तुता सुरक्षा बलों के सदस्यों की जान को कोई खतरा नहीं था, क्योंकि यह संतोषजनक रूप से सुस्थापित नहीं किया गया है कि जनाव के सदस्यों ने सुरक्षा बलों के संचालन दल पर हमला किया या उन पर गोलियां चलाना प्रारंभ किया।

प्रतिवेदन में आगे कहा गया है कि जैसा कि पहले भी गौर किया गया है तथा माना गया है कि सुरक्षा बलों द्वारा की गई गोलीबारी आत्मरक्षा में नहीं की गई थी। बल्कि ऐसा प्रतीत होता है कि उनके द्वारा गोलीबारी उनसे पहचानने में हुई गलती तथा बबराहट के कारण हुई थी। जैसा की पहले इस बात पर गौर किया जा चुका है. कि यदि सुरक्षा बल आत्मरक्षा के पर्याप्त उपकरणों से सुसज्जित होते तथा उन्हें बेहतर यह जानकारी दी गई होती तो तथा यदि वे सावधानी बरतते, तो गोलीबारी को डाला जा सकता था।

आयोग ने अपने प्रतिवेदन में सुझाव दिए हैं कि सुरक्षा बलों को ऐसे मोड्यूल निर्मित तथा निरूचित कर बेहतर प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए कि सुरक्षा कर्मी न केवल बस्तर की सामाजिक स्थितियों तथा धार्मिक त्योहारों से परिचित हो, बल्कि वहा के पहाड़ी तथा अन्य वन क्षेत्रों से भी परिचित हो।

अन्य सुझावों में यह भी कहा गया है कि इलाके में ऐसी घटनाओं की तीव्रता को देखते हुए खुफिया तंत्र को और अधिक मजबूत और विश्वसनीय बनाया जाना चाहिए। जिसके पास सुरक्षा बलों द्वारा संपूर्ण प्रस्तावित अभियान के संबंध में जानकारी समय से पहले एकत्रित कर प्रदान करने के लिए बेहतर ढंग से तैयार रहे। ऐसी खुफिया जानकारी सभवतः समय पूर्व किए गए बृहद सर्वेक्षण से एकत्रित की जा सकती है। बस्तर के ग्रामीण और अनी इलाकों में सामान्य विकास, और विशेषकर सड़कों की संयोजकता में युद्ध स्तर में सुझाव किया जाना चाहिए। पालन प्रतिवेदन में गृहविभाग ने सरकार द्वारा सुरक्षा बलों के प्रशिक्षण और खुफिया तंत्र को मजबूत बनाने की दिशा में उठाए गए कदमों की जानकारी दी।

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