ओडिशा का पखाल और छत्तीसगढ़ का बोरे

हर बरस की तरह आज 20 मार्च को ओडिशा आज पखाल दिवस मना रहा है | बढ़ती गर्मी के साथ पखाल स्वादिष्ट तो होता ही है , लू से बचाव भी करता है | ओडिशा के पखाल के करीब छत्तीसगढ़ का बोरे है | 

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-प्रभाती 

हर बरस की तरह आज 20 मार्च को ओडिशा आज पखाल दिवस मना रहा है | बढ़ती गर्मी के साथ पखाल स्वादिष्ट तो होता ही है , लू से बचाव भी करता है | ओडिशा के पखाल के करीब छत्तीसगढ़ का बोरे है |

पखाल  विविध रूपों में सामने आता है | पके हुए चावल में पानी जिसे गर्म अवस्था में ही खाया जाता है पखाल कहलाता है | इसे रुचिकर बनाने के लिए  दही, खीरा, जीरा, तले हुए प्याज और करी पत्ते का छोंक भी डाला जाता है |

पारंपरिक उड़िया व्यंजन  पखाल की तैयारी अमूमन तड़के शुरू हो जाती है | हलके गर्म अवस्था में इसमें दही, नींबू का रस, अदरक  हरी मिर्च, चुटकी नमक मिलाया जाता है | यदि यह न हो तो बासी का पसिया भी मिलाया जाता है जिससे इसका खट्टापन बढ़ जाता है |

पखाल के साथ तला हुआ आलू (आलू भजा), तला हुआ बैंगन (बैगना भजा), तला हुआ बड़ी (बड़ी चुरा), भाजी, तली मछली आदि  से  इसे राजसी  ठाठ बाठ मिल जाता है।

ओडिशा में पखाल के लिए उसना चावल का इस्तेमाल किया जाता है |  उसना होने के कारण इसमें खट्टापन जल्दी होता है |

पखाल , ऊर्जा बचत के साथ ही समय की भी बचत करता है | एक बार बनने  के बाद दिन भर खाया जा सकता है | केवल नमक या मिर्च के सहारे  खाया जा सकता है इसलिए गरीब वर्ग के लिए ज्यादा सुविधाजनक रहता है |  सेहतमंद  भोजन तो है ही |

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छत्तीसगढ़ का बोरे, पखाल से मिलता-जुलता है | ओडिशा में पसिया (माड़) के साथ पखाल होता है जबकि छत्तीसगढ़ में चावल को पानी में भिगोया जाता है जिसे बोरे कहा जाता है |

छत्तीसगढ़ में अरवा चावल खाया जाता है लिहाजा अरवा चावल का उपयोग किया जाता है | खट्टापन (अमटाहा ) के लिए ज्यादातर मही का उपयोग किया जाता है ,  वैसे दही का भी उपयोग किया जाता है |

एक रात पानी या पसिया में भीगने के बाद यह बासी बन जाता है |

छत्तीसगढ़ में- बटकी म बासी औउ चुटकी म नून , लोकगीत यहाँ के लोकजीवन में बासी की महत्ता को साबित करता है |

पखाल हो या बासी , चावल से बना यह व्यंजन गर्मी में राहत देता प्रमुख आहार है | गरीब हो या अमीर हर कोई इसका जयका जरुर लेता है | कभी गरीबों का भोजन कहा और माने जाने वाला यह  प्रमुख आहार आजकल होटलों में भी उपलब्ध है |

कहा जाता है – जगन्नाथ के भात को जगत पसरे हाथ| पर भगवान भी पखाल के मुरीद हैं उन्हें भी इसका भोग लगता है |

इस गर्मी आप भी इस भोग का जायका लेकर देखें |

 

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