मानव संसाधन विकास के केन्द्र हैं विश्वविद्यालय ?

किसी भी क्षेत्र, राज्य, समाज एवं देश की विकास, प्रगति एवं संवृद्धि की दशा एवं दिशा उच्च कोटि के मानव संसाधनों के विकास पर निर्भर करती है। उच्च कोटि के मानव संसाधनों का विकास गुणात्मक उच्चशिक्षा पर निर्भर करता है।

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किसी भी क्षेत्र, राज्य, समाज एवं देश की विकास, प्रगति एवं संवृद्धि की दशा एवं दिशा उच्च कोटि के मानव संसाधनों के विकास पर निर्भर करती है। उच्च कोटि के मानव संसाधनों का विकास गुणात्मक उच्चशिक्षा पर निर्भर करता है।

उच्च कोटि के मानव संसाधन और गुणात्मक उच्चशिक्षा दोनों विश्वविद्यालयों पर निर्भर करते हैं, और विश्वविद्यालय उसके कुलपति पर निर्भर होता है। चूंकि कुलपति विश्वविद्यालय का मुखिया होता है, इसलिए कुलपति मानव संसाधन विकास का सूत्रधार होता है|

-डॉ. लखन चौधरी

 

कुलपति चयन पर जारी घमासान, जिम्मेदार कौन ? 

समापन किश्त

पिछले कुछ सालों में देशभर के तमाम विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्तियों में इस कदर सियासत होने लगी है कि कई बार विश्वविद्यालयों की पहचान एवं प्रतिष्ठा पर ही सवाल खड़े होने लगते हैं। अन्तरराष्ट्रीय स्तर के ख्यातिप्राप्त विश्वविद्यालयों को भी राजनीति ने नहीं बख्शा, जिससे विश्वविद्यालयों के साथ कुलपति जैसे गरिमापूर्णं पदों की सामाजिक पहचान एवं प्रतिष्ठा धूमिल हुई है।

मेरिट के नाम पर पिछले दरवाजों से होने वाली नियुक्तियों की वजह से विश्वविद्यालयों की साख तो गिरी है, साथ ही साथ देशभर में उच्चशिक्षा में भारी गिरावट का दौर देखने को मिल रहा है। जिसकी वजह से देश के नौजवान बड़ी संख्या में विदेशों की ओर जाने लगे हैं। राज्यों के नवयुवक दूसरे राज्यों की ओर रूख करने लगे हैं।

छत्तीसगढ़ से भी अब भारी तादाद में युवाओं की फौज दूसरे राज्यों एवं विदेशों की ओर रूख करने लगा है। महाराष्ट्र एवं कर्नाटक जैसे दक्षिणी राज्यों में हर साल हजारों की संख्या में राज्य के युवक जा रहे हैं। जबकि तमाम तरह की डिग्रियों के लिए राज्य में उच्चशिक्षण संस्थानों यथा विश्वविद्यालय, एनआईटी, ट्रिपल आईटी, आईआईटी, आईआईएम, एम्स, एचएनएलयु, कृषि विवि, पत्रकारिता विवि, संगीत विवि सहित दूरवर्ती विवि की सुविधा एवं उपलब्धता है।

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असल में विश्वविद्यालय में सुयोग्य कुलपति का चयन इसलिए महत्वपूर्णं होता है, क्योंकि विश्वविद्यालय उच्चशिक्षा के केन्द्र तो होते हैं, जो उच्चशिक्षा की गुणवत्ता को नियंत्रित करती है। साथ में इससे अधिक महत्वपूर्णं यह है कि विश्वविद्यालय शोध एवं अनुसंधान के केन्द्र होते हैं।

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स्तरीय शोध एवं अनुसंधान के माध्यम से उच्चशिक्षा की न केवल गुणवत्ता सुधरती है, बल्कि तमाम तरह की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का समाधान एवं निराकरण भी निकाला जाता है। इससे समाज एवं देश के विकास की प्रक्रियाओं को दिशा एवं गति मिलती है। समाज को वैज्ञानिक सोच मिलती है। उत्पादकता बढ़ती है, एवं बदलाव तथा सुधार की नीतियों को दशा एवं दिशा मिलती है।

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विश्वविद्यालयों की इससे भी और अधिक महत्वपूर्णं भूमिका समाज एवं देश के लिए यह होती है कि विश्वविद्यालय मानव संसाधन विकास के केन्द्र होते हैं। एक इंसान को या लोगों को एक संसाधन के रूप में तब्दील करने या बदलने का काम उच्चशिक्षा एवं उच्चशिक्षण संस्थान करते हैं, जो विश्वविद्यालय के अंतर्गत संचालित होते हैं। विश्वविद्यालयों की नीतियों, कार्यशैलियों से यह तय होता है कि उसके महाविद्यालयों एवं उच्चशिक्षण संस्थानों से किस तरह की गुणवत्ता की अपेक्षा की जा सकती है।

दरअसल   किसी भी क्षेत्र, राज्य, समाज एवं देश की विकास, प्रगति एवं संवृद्धि की दशा एवं दिशा उच्च कोटि के मानव संसाधनों के विकास पर निर्भर करती है। उच्च कोटि के मानव संसाधनों का विकास गुणात्मक उच्चशिक्षा पर निर्भर करता है। उच्च कोटि के मानव संसाधन और गुणात्मक उच्चशिक्षा दोनों विश्वविद्यालयों पर निर्भर करते हैं, और विश्वविद्यालय उसके कुलपति पर निर्भर होता है।

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निष्कर्ष यह है कि जहां विश्वविद्यालय मानव संसाधन विकास के केन्द्र होते हैं, वहां कुलपति उसका सूत्रधार होता है। इसलिए कुलपति जैसे पदों की गरिमा का ख्याल सरकार को हर हाल में रखना चाहिए। इसलिए कुलपतियों की नियुक्तियों में तमाम तरह की सावधानियां बरतने की जरूरत होती है, क्योंकि यदि सूत्रधार सही नहीं होगा तो पूरे क्षेत्र, राज्य एवं समाज का विकास अवरूद्ध एवं बाधित होता है। इससे प्रगति, बदलाव एवं परिवर्तन की सारी प्रक्रियाएं प्रभावित होती है, जो पूरी एक नई पीढ़ी को प्रभावित करती है।

(लेखक; प्राध्यापक, अर्थशास्त्री, मीडिया पेनलिस्ट, सामाजिक-आर्थिक विश्लेषक एवं विमर्शकार हैं)

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