समझ….
अनायास ही सही उसके हाथों से निकले इस निदान को क्या पतिदेव समझ पाएंगे? रात तो है ही उन्हें समझाने के लिए., मन ही मन खुश होकर कौर हलक में उतारने लगी...
समझ….
अनायास ही सही उसके हाथों से निकले इस निदान को क्या पतिदेव समझ पाएंगे? रात तो है ही उन्हें समझाने के लिए., मन ही मन खुश होकर कौर हलक में उतारने लगी…
छोटे से साधारण परिवार की लाडली एक बड़े भरे पूरे घर में ब्याही गई। खाना परोसने के बाद उसके हिस्से में कभी सब्जी मिल पाती तो कभी दाल, फिर बनाना न पड़े इसलिए रूखा-सूखा खा लेती।
मायके में कभी मछली देख सब्जी की कल्पना में लार टपकजाने वाली इस ब्याहता के हिस्से जब कभी-कभार मछली मिल भी जाती तो पूंछवाला हिस्सा, कांटे निकालते खाने का मन चला जाए।
उसकी यह इच्छा कहें या पीड़ा बांटे कैसे?
मछली की सब्जी बनी, पतिदेव को एकसाथ खूब परोस दिया। पति का नियम, थाली में वे दाना नहीं छोड़ते। नाराज हो गए, व्रत तो तोडऩा ही पड़ेगा। पहली बार थाली में जूठा छोड़ा। पत्नी ने मछली की जूठी तरकारी अलग रख बाकी बर्तन मांजने के लिए रख दिया।
इस बार भरपूर रसे के साथ मछली के दो बड़े टुकड़े।
मायका सहसा याद गया, कभी मां को भी तो पिता के जूठे सब्जी खाते देखा था। मछली कभी-कभार आती तो उन तीनों भाई-बहनों के खाने के बाद मां तक शायद ही बचता था।
अल्पभोजी पिता की जूठी थाली में मां अक्सर खातीं, अब समझ में आया पिता क्यों जूठा छोड़ देते थे, जबकि सब्जी उस दिन सब्जी-तरकारी स्वादिष्ट बनी रहती।
अनायास ही सही उसके हाथों से निकले इस निदान को क्या पतिदेव समझ पाएंगे? रात तो है ही उन्हें समझाने के लिए., मन ही मन खुश होकर कौर हलक में उतारने लगी…
-डॉ. निर्मल कुमार साहू