अमेरिका भारत पर प्रतिपक्षीय शुल्क क्षेत्रीय या उत्पाद-विशिष्ट: विवादित नीति
यह फर्क महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे भारत के निर्यात पर प्रभाव की सीमा तय होगी. उदाहरण के लिए, यदि अमेरिका पिस्ता पर शुल्क बढ़ाकर 10 प्रतिशत करता है, तो भारत पर इसका कोई असर नहीं होगा क्योंकि भारत पिस्ता का निर्यात नहीं करता. यही स्थिति कई अन्य उत्पादों पर भी लागू होती है.
नई दिल्ली। अमेरिका द्वारा भारत पर प्रस्तावित प्रतिपक्षीय शुल्क (Reciprocal Tariffs) का असर इस बात पर निर्भर करेगा कि इसे किस तरह से लागू किया जाता है – क्षेत्रीय आधार पर या उत्पाद-विशिष्ट आधार पर.
व्यापार विशेषज्ञों का मानना है कि इस शुल्क नीति के नियम और शर्तों को लेकर अब भी स्पष्टता नहीं है. यह मुद्दा तब से चर्चा में है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहली बार इसका जिक्र किया था. प्रमुख सवाल यह है कि क्या यह शुल्क केवल उन्हीं उत्पादों पर लागू होगा जिनमें अमेरिका की दिलचस्पी है या फिर यह व्यापक द्विपक्षीय कदम होगा.
यह फर्क महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे भारत के निर्यात पर प्रभाव की सीमा तय होगी. उदाहरण के लिए, यदि अमेरिका पिस्ता पर शुल्क बढ़ाकर 10 प्रतिशत करता है, तो भारत पर इसका कोई असर नहीं होगा क्योंकि भारत पिस्ता का निर्यात नहीं करता. यही स्थिति कई अन्य उत्पादों पर भी लागू होती है. इसके अलावा, अमेरिका से भारत को निर्यात किए जाने वाले 75 प्रतिशत उत्पादों पर पहले से ही औसत शुल्क 5 प्रतिशत से कम है, जिससे चुनिंदा उत्पादों पर शुल्क बढ़ाना अमेरिका के लिए प्रभावी रणनीति साबित नहीं हो सकता.
हालांकि, यदि यह नीति पूरे क्षेत्र पर लागू होती है, तो भारत पर इसका प्रभाव अलग हो सकता है. फिलहाल अमेरिका भारतीय श्रम-प्रधान निर्यात जैसे वस्त्र, परिधान और जूते-चप्पल पर 15 से 35 प्रतिशत तक का ऊंचा शुल्क लगाता है. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भारत शुल्क कटौती समझौते पर बातचीत करता है, तो इन उत्पादों पर अमेरिकी शुल्क कम होने से भारतीय निर्यात अधिक प्रतिस्पर्धी हो सकते हैं.
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने एएनआई को बताया कि यदि अमेरिका उत्पाद-विशिष्ट शुल्क लगाता है, तो भारत को ज्यादा चुनौती नहीं होगी क्योंकि भारतीय और अमेरिकी निर्यात सीधे तौर पर प्रतिस्पर्धा में नहीं हैं. उदाहरण के तौर पर, यदि अमेरिका भारतीय एवोकाडो पर ऊंचा शुल्क लगाता है, तो भारत पर इसका असर नहीं होगा क्योंकि भारत एवोकाडो का निर्यात नहीं करता.
हालांकि, यदि शुल्क क्षेत्रीय औसत के आधार पर लगाए जाते हैं, तो भारतीय निर्यात प्रभावित हो सकते हैं. अमेरिका भले ही भारत को अधिक कृषि उत्पाद निर्यात न करता हो, लेकिन औसत गणना के आधार पर भारतीय कृषि उत्पादों पर शुल्क बढ़ाया जा सकता है. इससे भारत के कई उत्पाद प्रभावित होंगे और भारत को या तो अपने शुल्क कम करने होंगे या फिर प्रतिशोधात्मक कदम उठाने पर विचार करना होगा.
विशेषज्ञों का कहना है कि श्रम-प्रधान उद्योगों के मामले में भारत इस स्थिति से लाभ भी उठा सकता है. चूंकि इस प्रतिपक्षीय शुल्क नीति का विवरण अभी तक स्पष्ट नहीं है, व्यापार विश्लेषकों का मानना है कि भारत को अपने निर्यात में न्यूनतम व्यवधान सुनिश्चित करने और अपने व्यापारिक हितों की रक्षा के लिए सावधानीपूर्वक प्रतिक्रिया की योजना बनानी होगी.