शिक्षकों और भारतीय चिकित्सकों की विश्वसनीयता में दुर्भाग्यजनक गिरावट

सरकारों, मंत्रियों, मीडिया कर्मियों, शिक्षकों की विश्वसनीयता दुनियाभर में लगातार कम हुई एवं कम होती जा रही है। यद्यपि समाज के विभिन्न वर्ग के पेशेवरों की विश्वसनीयता पिछले कुछ सालों में तेजी से गिरी है, लेकिन समाज की मुख्य धारा के शिक्षकों एवं चिकित्सकों के प्रति लोगों का भरोसा कम होना बेहद चिंताजनक एवं दुर्भाग्यपूर्णं है।

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सरकारों, मंत्रियों, मीडिया कर्मियों, शिक्षकों की विश्वसनीयता दुनियाभर में लगातार कम हुई एवं कम होती जा रही है। यद्यपि समाज के विभिन्न वर्ग के पेशेवरों की विश्वसनीयता पिछले कुछ सालों में तेजी से गिरी है, लेकिन समाज की मुख्य धारा के शिक्षकों एवं चिकित्सकों के प्रति लोगों का भरोसा कम होना बेहद चिंताजनक एवं दुर्भाग्यपूर्णं है।

-डॉ. लखन चौधरी

’इप्सोस ग्लोबल ट्रस्टवर्थनेस इंडेक्स 2021’ के मुताबिक शहरी भारतीय जनमत के बेहद महत्वपूर्णं एवं रोचक सर्वेक्षण रिपोर्ट एवं परिणाम जारी हुए हैं। इस इंडेक्स के अनुसार दुनियाभर के विभिन्न शहरों में रहने वाले लोगों ने प्रसिद्ध भारतीय पेशेवरों के बारे में अपनी रॉय या अपना जनमत दिया है, जो बेहद चौंकाने वाला एवं दुर्भाग्यजनक है। इस रॉयशुमारी के अनुसार भारतीय चिकित्सकों एवं शिक्षकों ने अपनी विश्वसनीयता खोई है। यानि शहरी भारतीयों की नजर में इस पेशे के लोगों की रैंकिग सशस्त्र बलों एवं वैज्ञानिकों से कम है।

इस इंडेक्स के अनुसार शहरी भारतीय देश के सशस्त्र बलों एवं वैज्ञानिकों पर सबसे अधिक और देश के चिकित्सकों पर सबसे कम भरोसा करते हैं। शहरी भारतीय देश के सशस्त्र बलों एवं वैज्ञानिकों पर 64 फीसदी सबसे अधिक भरोसा करते हैं। इसके बाद शिक्षकों पर 61 फीसदी और चिकित्सकों यानि डॉक्टरों पर 58 फीसदी भरोसा करते हैं।

 

अनट्रस्टवर्थीनेस इंडेक्स 2021 के अनुसार दुनियाभर के लोग अब अपने राजनेताओं, सरकार के मंत्रियों एवं मीडिया विज्ञापन अधिकारियों पर सबसे कम विश्वास करते हैं, या सबसे कम भरोसा करने लगे हैं। सशस्त्र बल और वैज्ञानिक भारत में सबसे भरोसेमंद नागरिक के रूप में उभरे हैं, जबकि राजनेता और विज्ञापन अधिकारी सबसे कम भरोसेमंद हैं।

दिलचस्प बात यह है कि दो साल पहले के सर्वेक्षण में भी सशस्त्र बलों को शीर्ष स्थान मिला था, अब एकमात्र बदलाव यह है कि कोरोना काल में वैज्ञानिकों के लिए लोगों का सम्मान बढ़ा है, जिन्होंने घातक वायरस के टीके खोजने के लिए काम किया है।

उल्लेखनीय है कि इसी एजेंसी की वैश्विक सर्वेक्षण रिपोर्ट में सबसे अधिक भरोसेमंद भारतीय चिकित्सकों को छोड़कर अन्य देशों के चिकित्सक हैं। ग्लोबल ट्रस्टवर्थनेस वैश्विक भरोसेमंद सूचकांक 2021 में गैर-भारतीय चिकित्सक या डॉक्टर 64 फीसदी रैंकिग के साथ शीर्ष स्थान पर हैं। इसके बाद वैज्ञानिकों की रैंकिग 61 फीसदी और शिक्षकों की 55 फीसदी है।

इप्सोस इंडिया के मुताबिक सशस्त्र बलों पर भारतीय सबसे अधिक भरोसा करते हैं और उनका सम्मान करते हैं, क्योंकि उनके काम स्वयं से पहले बलिदान और सेवा होता है। राष्ट्र के लिए उनके योगदान को अनुशासन और समर्पण द्वारा परिभाषित किया जाता है, क्योंकि वे हमारी सीमाओं की रक्षा करते हैं। इसी तरह वैज्ञानिक भी सबसे अधिक भरोसेमंद भारतीयों में शुमार हैं, क्योंकि वैज्ञानिकों ने कोरोना योद्धा के तौर पर ओवरटाइम काम करके कोरोनावायरस के लिए वैक्सीन खोजी है।

वैज्ञानिकों को सशस्त्र बलों के बराबर रखा गया है। शिक्षक और डॉक्टर जिन्होंने भी महामारी के दौरान अपना योगदान दिया है, उन्हें सूचकांक में तीसरे और चौथे स्थान पर रखा गया है।

इप्सोस ने अपने ग्लोबल ट्रस्टवर्थनेस इंडेक्स 2021 के निष्कर्षों का खुलासा करते हुए बताया है कि इस वैश्विक सर्वेक्षण में 28 देशों  के 19,570 उत्तरदाताओं को सम्मिलित किया गया है। रिपोर्ट निष्कर्ष 23 अप्रैल और 7 मई 2021 के बीच किए गए ’इप्सोस ऑनलाइन सर्वेक्षण’ पर आधारित हैं।

यह सर्वेक्षण अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, ब्राजील, कनाडा, चिली, चीन, कोलंबिया, फ्रांस, जर्मनी, ग्रेट ब्रिटेन, हंगरी, भारत, इटली, जापान, मलेशिया, मेक्सिको, नीदरलैंड, पेरू, पोलैंड, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, स्पेन, स्वीडन, तुर्की और अमेरिका में इप्सोस ऑनलाइन पैनल प्रणाली के माध्यम से आयोजित की गई थी। सर्वेक्षण परिणामों में 16-74 आयु वर्ग के 19,570 लोगों को शामिल किया गया है।

रिपोर्ट निष्कर्षों का सार यह है कि दुनिया की तुलना में भारतीय चिकित्सकों की विश्वसनीयता कोविड कालखण्ड में अधिक गिरी है। सरकारों, मंत्रियों, मीडिया कर्मियों, शिक्षकों की विश्वसनीयता दुनियाभर में लगातार कम हुई एवं कम होती जा रही है। यद्यपि समाज के विभिन्न वर्ग के पेशेवरों की विश्वसनीयता पिछले कुछ सालों में तेजी से गिरी है, लेकिन समाज की मुख्य धारा के शिक्षकों एवं चिकित्सकों के प्रति लोगों का भरोसा कम होना बेहद चिंताजनक एवं दुर्भाग्यपूर्णं है। यदि शिक्षा एवं स्वास्थ्य के सामाजिक सूत्रधार इस तरह अपनी साख गिराने लगेंगे तो आने वाले दिनों में समाज के भीतर तेजी से अराजकताएं, अव्यवस्थाएं एवं अनैतिकताएं आना सुनिश्चित है। समय रहते इस गंभीर मसले पर सार्थक विमर्श की दरकार है।

(लेखक; प्राध्यापक, अर्थशास्त्री, मीडिया पेनलिस्ट, सामाजिक-आर्थिक विश्लेषक एवं विमर्शकार हैं)

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