छत्तीसगढ़: शेड्यूल1वन्य प्राणियों का शिकार, दोषी अफसरों पर कार्रवाई नहीं, पारदर्शिता पर सवाल

छत्तीसगढ़ में वन विभाग की लापरवाही से मारे जा रहे शेड्यूल 01 के वन्य प्राणियों की जानकारी शासन प्रशासन तक पहुँचने के बाद भी दोषी अफसरों पर कोई कार्यवाही नहीं किये जाने से अब प्रदेश में वन्य प्राणियों की सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह लग गया है. ज्ञात हो कि बलौदाबाजार वन मंडल में विगत दिनों शेड्यूल वन के तीन वन्य प्राणी मारे गए परन्तु इनका खुलासा तब हुआ जब इनके शव सड़ कर दुर्गंध फैला रहे थे.

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विशेष रिपोर्ट रजिंदर खनूजा 

बलौदाबाजार/ रायपुर| छत्तीसगढ़ में वन विभाग की लापरवाही से मारे जा रहे शेड्यूल 01 के वन्य प्राणियों की जानकारी शासन प्रशासन तक पहुँचने के बाद भी दोषी अफसरों पर कोई कार्यवाही नहीं किये जाने से अब प्रदेश में वन्य प्राणियों की सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह लग गया है. ज्ञात हो कि बलौदाबाजार वन मंडल में विगत दिनों शेड्यूल वन के तीन वन्य प्राणी मारे गए परन्तु इनका खुलासा तब हुआ जब इनके शव सड़ कर दुर्गंध फैला रहे थे.

प्रदेश के बलौदाबाजार वन मंडल में वन विभाग की लचर कार्यशैली से वन्य प्राणियों की लगातार मारे जा रहे है. खास बात यह है कि वन्य प्राणियों की मौतों की जांच कर दोषियों पर कार्यवाही करने की बजाए वन विभाग आरोपी अफसरों की तरक्की करता दिखता है. जिससे अब ईमानदारी से कार्य करने वाले अफसर कर्मी भी मेहनत को व्यर्थ समझने लगे हैं, लिहाजा शासन प्रशासन के उक्त रवैये से शिकारियों की सक्रियता बढ़ गयी है.

 एक डिप्टी रेंजर दो गार्ड फिर भी 50 मीटर दूर हाथी का शव नहीं दिखा

ग्रामीण सूत्र बताते हैं कि देवपुर वन परिक्षेत्र में जिस स्थान पर हाथी शिकारियों की विद्युत करन्तयुक्त तार में फंस कर मारा गया था. वह वन ग्राम पकरीद के विश्राम गृह से महज 50 मीटर की दूरी पर स्थित है.गौरतलब है कि इस विश्राम गृह में बार अभ्यारण्य में पदस्थ एक डिप्टी रेंजर का आवास इसी विश्रामगृह कैम्प्स में है. इसके अलावा देवपुर वन परिक्षेत्र के दो वन रक्षक भी इसी परिक्षेत्र में ही निवास करते है.इसके बावजूद हाथी के मारे जाने की खबर कोई सप्ताह भर बाद ही वन कर्मियों को मिली.

हाथी की करंट से मौत के बाद सात गांवों में रात 8 बजे से बिजली लापता

इसका मतलब साफ है कि वन कर्मी अनेक दिन मुख्यालय से बाहर रहते हैं या उनको पता भी था तो उसे चोरी छिपे निपटाने के लिए प्रयासरत थे. परन्तु ग्रामीणों द्वारा मीडिया को जानकारी दिए जाने के बाद मामला सामने आ ही गया. घटना की जानकारी मिलने के बाद जब मीडिया घटनास्थल पहुचा तब मृत हाथी के समीप एक जेसीबी भी खड़ी दिखी. माना जा रहा है कि संभवतः इसे गुपचुप तरीके से दफनाने की तैयारी कर ली गयी थी परन्तु मीडिया ने वन विभाग की मंशा पर पानी फेर दिया था.

यहाँ प्रश्न यह उठता है कि हाथी की मौत के बाद उच्च अधिकारियों के पहुचने के पहले ही जे सी बी कैसे पहुंचा. उच्च अधिकारियों के पहुंचते ही स्थानीय अधिकारियों ने तत्काल आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के बाद खोजी प्रशिक्षित कुत्ता बुला कर आरोपियों तक पहुचने का नाटक बखूबी किया गया. जब आरोपी पकड़े जा चुके थे. सभी ने अपराध कबूल लिये थे तब खोजी कुत्ते का उपयोग आश्चर्यजनक है.

जानकर बताते हैं कि हाथी की मौत का सबसे बड़ा कारण वन अधिकारियों की लापरवाही है. क्योंकि जानकारों  के अनुसार हाथी को ज़ब करंट लगा होगा तो हाथी चिंघाड़ा जरूर होगा चूंकि घटना रात की है लिहाजा चिंघाड़ की आवाज कई किलोमीटर गयी होगी. इसके बावजूद मात्र 50 मीटर की दूरी पर मुख्यालय होने के बावजूद पदस्थ कर्मी इसे नही सुन पाए इसका मतलब स्पस्ट है कि कोई भी वन कर्मी मुख्यालय में नहीं थे.

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वन रक्षक निलम्बित डिप्टी रेंजर पदोन्नत

हाथी के शिकार मामले में वन अफसर काफी गम्भीर दिख रहे थे और एक वन रक्षक को इसका दोषी मान कर उसे निलंबित कर दिया गया जबकि देवपुर के प्रभारी रेंजर को पद से प्रभार वापस ले लिया गया था. इसके बावजूद जानकर लगातार यह बता रहे थे कि हाथी की मौत का मुख्य जिम्मेदार देवपुर वन स्टाफ के साथ बार अभ्यारण्य का वह डिप्टी रेंजर भी था जिसे मात्र वन्य प्राणियों की सुरक्षा हेतु ही पकरीद में पदस्थ कर मुख्यालय भी पकरीद विश्राम गृह कैम्प्स में रखा गया था. परन्तु इस डिप्टी रेंजर को जांच की आंच तक नहीं आई.

दूसरी ओर इस पूरे घटनाक्रम की विडंबना यह रही की स्वयम को रेंजर पद से मुक्त करने के बाद उक्त डिप्टी रेंजर ने स्वयम के पदोन्नति का दावा किया था और घटना के मात्र एक माह के भीतर ही उक्त डिप्टी रेंजर प्रभार छीने जाने की सजा से मुक्त होकर अब रेंजर पद पर पदोन्नत किया गया है.

लोगों की मानें तो उक्त अधिकारी की राज्य के एक मंत्री से खासी नजदीकियां हैं. उक्त अधिकारी को आर टी आई में जानकारी नहीं देने की तीन अपीलों पर 25 – 25 हजार का जुर्माना भी लग चुका है. इसके बाद भी शेड्यूल 01 प्राणी के शिकार होने के बाद उसे निलंबित करने की बजाय पदोन्नत करने की घटना  शासन की पारदर्शिता पर सवाल करता है.

दो तेंदुआ की मौत , दोषी कोई नहीं 

इधर हाथी की मौत के पखवाड़े भर के भीतर ही बार अभ्यारण्य से लगे लवन वन परिक्षेत्र में दो तेंदुआ की सड़े गले शव मिले. वन विभाग ने तेंदुआ के सभी आर्गन सुरक्षित देख कर यह अनुमान लगाकर सुनिश्चित कर लिया कि इन तेंदुआ का शिकार नही किया गया बल्कि ये खुद ही लड़ कर मारे गए हैं. इसमें वन विभाग का कोई दोष ही नहीं है. वह अफसर अपनी जांच में यह बात क्यों भूल गए कि मृत दोनों तेन्दुओ के शव सड़ गल चुके थे. मतलब साफ था कि तेन्दुओ की मौत कोई माह भर पहले हो चुकी थी, जिसका  विभाग को अभी पता चला.

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इस संबंध में जानकारों का कहना है कि मृत तेंदुए यदि नर-मादा थे तब उनके बीच संघर्ष सम्भव नही है. यदि दोनों नर थे और उन्होंने संघर्ष किया भी तो उनकी आवाज दूर दूर तक जाती है और ग्रामीण सहित समीप के अलदा मुख्यालय में निवास करने वाले वन रक्षक को तो अवश्य पता चल ही गया होगा. परन्तु अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाह वन कर्मी उक्त घटना के बाद शव मिलते तक कभी जंगल गस्त में गए ही नहीं होंगे लिहाजा उन्हें  इसकी जानकारी नहीं मिल पाई.

जानकारों के अनुसार यदि उक्त घटना के बाद गस्त होती रहती तो आपसी लड़ाई में भी पहले घायल हो चुके तेन्दुओ को उपचार मिलता और उन्हें बचाया जा सकता था. उक्त दोनों घटनाएं शेड्यूल एक के वन्य प्राणियों की मौत से जुड़ी है. इस मामले में जिम्मेदारी वन मण्डलाधिकारी तक मानी जाती है लिहाजा मामले को जल्द से जल्द ठंडे बस्ते में डालने के लिए मात्र एक वन रक्षक को निलंबित कर मामला बिसारने का प्रयास किया गया है.

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