सामाजिक बहिष्कार: मानवता शर्मशार, जब बेटियों को देना पड़ा पिता की अर्थी को कंधा   

सामाजिक बहिष्कार के चलते गाँव का कोई भी ग्राम पटेल (मुखिया) की अर्थी को कंधा देने नहीं आया. मृतक की दोनों बेटियों ने अपने भाई के साथ अर्थी को कंधा दिया और अंतिम संस्कार किया. घटना छत्तीसगढ़ के महासमुन्द जिला मुख्यालय से कोई 40 किलोमीटर दूर खल्लारी विधानसभा के थाना बागबाहरा के ग्राम सालडबरी की है.  

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महासमुन्द| सामाजिक बहिष्कार के चलते गाँव का कोई भी ग्राम पटेल (मुखिया) की अर्थी को कंधा देने नहीं आया. मृतक की दोनों बेटियों ने अपने भाई के साथ अर्थी को कंधा दिया और अंतिम संस्कार किया. घटना छत्तीसगढ़ के महासमुन्द जिला मुख्यालय से कोई 40 किलोमीटर दूर खल्लारी विधानसभा के थाना बागबाहरा के ग्राम सालडबरी की है.  यहाँ के  ग्राम पटेल हिरन साहू उम्र 75 वर्ष की विगत 24-25 जुलाई की  दरम्यान रात मौत हो गई थी. शवयात्रा में मृतक के ग्राम का कोई भी ग्रामीण एवम ग्राम में ही रहने वाले रिश्तेदारों के भी शामिल नही होने से यह मामला प्रदेश भर में चर्चा का विषय बन गया है.

महासमुन्द जिले के दूरस्थ ग्राम सालड़बरी से मानवता को शर्मशार करने वाली एक खबर सामने आई है. विगत 24-25 जुलाई की  दरम्यान बागबाहरा विकासखण्ड के ग्राम  सालड़बरी में ग्राम पटेल हिरन साहू की 75 वर्ष की उम्र में अज्ञात कारणों से मौत हो गयी. मौत के वक्त पिता हिरन के साथ उसका पुत्र अकेला ही था.

पिता की मौत के साथ ही नाबालिग पुत्र घबरा गया और वह ग्राम में अपने रिश्तेदारों एवम अन्य ग्रामीणों को पिता की मौत की सूचना देता रहा परन्तु किसी की कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. अंततः पुत्र ने पिता के मौत की खबर अपनी दोनों विवाहित बहनों तक पहुंचाई. खबर मिलते ही दोनों बहनें एवम मृतक का एक दामाद हिरन के घर पहुच गए. इसके बाद हिरन का अंतिम संस्कार किया जाना था.

 मानवता को झकझोर देने वाली कहानी

मौत के बाद मृतक के पुत्र पुत्रियों ने ग्राम में यह प्रयास किया कि कोई कंधा उनके पिता को मिल जाये तो उनका ससम्मान अंतिम संस्कार किया जा सके. परन्तु ग्राम में एक भी ऐसा नहीं मिला जो मानवता के नाते ही वृद्ध ग्राम पटेल का अंतिम संस्कार करवा सके. ग्रामीणों की इस अनदेखी से परिवार जन भी सकते में थे. अंततः मृतक की दोनों विवाहित बेटियों यामिनी साहू पति भागवत साहू पोटापारा पिथौरा और कविता साहू पति प्रेमलाल, रायपुर  के अलावा एक दामाद एवम पुत्र तामेश्वर साहू ही पिता को कंधा देकर अंतिम संस्कार किया.

 

ग्रामवासियों ने किया था बहिष्कृत

ग्रामीणों के शवयात्रा में शामिल नहीं होने की बात पर ग्राम का कोई भी व्यक्ति मुह खोलने के लिए तैयार नहीं  है. फिर भी कुछ ग्रामीण दबी जुबान से बताने लगे कि कोई छै सात महीने पहले गांव में किसी दो पक्षों के बीच मार पीट हो रही थी, उसे मृतक जो गांव का पटेल भी है, की पत्नी वीणा बाई साहू उम्र 60 वर्ष ने बीच बचाव कर दोनों को समझाकर घर भेज दिया. विवादित पक्ष में से एक पक्ष ने वीणा बाई पर मारपीट का झूठा आरोप लगा दिया. गांव में दूसरे दिन ही उक्त मामले के फैसले के लिए बैठक बुलाई गई. बैठक में फैसले के दौरान बीच बचाव करने वाले वीणा बाई साहू के साथ मारपीट कर उसे गांव से बहिष्कृत कर दिया गया, तब से आज दिनांक तक उक्त परिवार गांव से बहिष्कृत है इसी दौरान गांव पटेल हिरन साहू का मौत हो गयी.

मूकदर्शक बनी रहे ग्रामीण

बताया जाता है कि ग्राम से बहिष्कृत ग्राम पटेल हिरन साहू की शवयात्रा उसकी पुत्रियां पुत्र एवम दामाद ग्राम के बीच से ज़ब लेकर निकले तब पूरे ग्रामीण मूकदर्शक बनी शवयात्रा जाते देखते रहे.

देखें वीडियो 

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क्या कहता है कानून

ग्रामीण क्षेत्रो में आमतौर पर सामाजिक बहिष्कार जैसे मामले अक्सर सुर्खियों में रहते हैं. मामलों की रपट भी पुलिस तक पहुंचती है. इसके बावजूद इस तरह के मामले बन्द होने की बजाय बढ़ते ही जा रहे हैं. आखिर इस तरह के मामलों में कानून क्या कर सकता है ?

थाना प्रभारी महेश साहू के मुताबिक वे इस घटना की सूचना मिलते ही गाँव पहुंचे और ग्रामीणों को समझाइस दी.जिससे गाँव में शांति व्यवस्था कायम रहे.

इस पर एक सेवानिवृत पुलिस अधिकारी से चर्चा की गई. पहचान जाहिर नहीं करने वाले उक्त सेवानिवृत पुलिस अधिकारी ने बताया कि सामाजिक बहिष्कार जैसी कोई बात संविधान में नहीं है. इस तरह की शिकायतों में ग्राम में कोई गवाह या प्रमाण जुटाना भी असम्भव होता है. लिहाजा ग्राम में शांति व्यवस्था कायम रहे इसलिए कभी अनावेदक पर और कभी दोनों पक्षो पर पुलिस प्रतिबंधात्मक धारा के तहत की कार्यवाही कर सकती है. इसके अलावा ऐसे मामलों में कुछ नहीं किया जा सकता.

बता दें महाराष्ट्र विधानसभा में सामाजिक बहिष्कार प्रतिषेध अधिनियम के संबंध में महत्वपूर्ण कानून को बिना किसी विरोध के सर्वसम्मति से11 अप्रैल 2016 को पारित कर दिया तथा 20 जून 2017 को माननीय राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी मिलने के बाद 3 जुलाई 2017 से पूरे महाराष्ट्र में लागू कर दिया गया. छत्तीसगढ़ में भी सामाजिक बहिष्कार प्रतिषेध अधिनियम की अहम जरूरत देखी जा रही है.

सामाजिक बहिष्कार, एक विडंबना

मृतक हिरन साहू ग्राम सालड़बरी का ग्राम पटेल भी था. यह ग्राम मुख्यतः साहू बहुल है इसके अलावा अजजा एवम अजा भी यहां है. आज की सामाजिक गतिविधियों की तुलना में यह ग्राम काफी पिछड़ा हुआ है. यहां देश के कानून का कम परन्तु सामाजिक  कानून ज्यादा चलता है. लिहाजा अक्सर आम ग्रामीणों की गलतियों पर उन्हें जुर्माना एवम बहिष्कार जैसे दंड भुगतने होते है.

सामाजिक बहिष्कार की सजा सबसे बड़ी सजा मानी जाती है. इस सजा को भुगतने वाला ग्राम में रहकर भी तिल तिल कर जीने के लिए मजबूर रहता है. कोई भी ग्रामीण उक्त सजा पाए परिवार से बोलचाल काम धाम एवम रोजी मजदूरी तक बन्द कर देते है. यह सब सजायें  मौखिक तौर पर ही दी जाती हैं. इसके लिए न तो कानून है और न ही कोई वकील और न ही कोई जज. इसके अलावा इसमें न ही कोई अपील की ही व्यवस्था है. बस ग्रामीणों ने एक मत कर बहिष्कार कर दिया तो कर दिया.

ग्रामीण एकता की ऐसी बानगी शायद ही देखी जाती हो. पूरे ग्रामीण सजा मिलने वालों से स्वमेव दूरी बना लेते है. कोई पूछ भी ले तो कभी कोई ग्रामीण यह नहीं कहता कि किसी को ग्राम बहिष्कार की सजा मिली है. ग्रामीणों की इस निष्ठुर एकता से न जाने अब तक कितने ग्रामीण दुनिया छोड़ चुके और कितने आज भी परेशान होकर नरकीय जीवन जीने को मजबूर हैं.

deshdigital के लिए रजिंदर खनूजा

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