छत्तीसगढ़िया बनाम भारतीयता, कांग्रेस-भाजपा फिर आमने-सामने

राज्य में स्थानीयता या छत्तीसगढ़िया, वाद का मसला 2018 में भूपेश बघेल सरकार के सत्ता में आने के पहले से ही सुर्खियों में रहा है। राज्य के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने इस अवधारणा को जमकर भुनाया था, यह अलग बात है कि इसके बावजूद राज्य में सत्ता की बागडोर कथित छत्तीसगढ़ियों के हाथ से निकल गई थी, और एक बहुत लंबे अरसे तक कुर्सी की सत्ता भाजपा के हाथ में रही।

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राज्य में स्थानीयता या छत्तीसगढ़िया, वाद का मसला 2018 में भूपेश बघेल सरकार के सत्ता में आने के पहले से ही सुर्खियों में रहा है। राज्य के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने इस अवधारणा को जमकर भुनाया था, यह अलग बात है कि इसके बावजूद राज्य में सत्ता की बागडोर कथित छत्तीसगढ़ियों के हाथ से निकल गई थी, और एक बहुत लंबे अरसे तक कुर्सी की सत्ता भाजपा के हाथ में रही।

डॉ. लखन चौधरी

आसन्न विधानसभा चुनाव 2023 के मद्देनजर छत्तीसगढ़ में मतदाताओं को रिझाने की कवायद एक बार फिर जोरों पर है। छत्तीसगढ़िया और भारतीयता वाद को लेकर दोनों पार्टियां एक.दूसरे पर निशाना साध रहीं हैं। छत्तीसगढ़िया बनाम भारतीयता वाद की यह नोकझोंक दरअसल में एक ऐसी निरर्थक बहस है, जिससे दोनों पार्टियों को कोई खास लेना.देना नहीं है। इससे यहां के जनमानस को भी कोई खास मतलब नहीं है, न ही इससे किसी को कोई खास नफा.नुकसान है, लेकिन जनमानस को गुमराह करके रखना है कि उनकी ही पार्टी सच्ची जन हितैशी पार्टी है ?

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वैसे तो राज्य में स्थानीयता या छत्तीसगढ़िया, वाद का मसला 2018 में भूपेश बघेल सरकार के सत्ता में आने के पहले से ही सुर्खियों में रहा है। राज्य के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने इस अवधारणा को जमकर भुनाया था, यह अलग बात है कि इसके बावजूद राज्य में सत्ता की बागडोर कथित छत्तीसगढ़ियों के हाथ से निकल गई थी, और एक बहुत लंबे अरसे तक कुर्सी की सत्ता भाजपा के हाथ में रही।

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हालांकि इसमें दो राय नहीं है कि भूपेश बघेल सरकार के सत्तारूढ़ होने के बाद से ही राज्य में छत्तीसगढ़िया संस्कृति या छत्तीसगढ़ियावाद तेजी से फला.फूला है। पिछले लगभग चार साल के कार्यकाल में बाकायदा सरकारी प्रयासों से छत्तीसगढ़िया संस्कृति, छत्तीसगढ़िया रहन.सहन एवं छत्तीसगढ़िया खान.पान का भारी भरकम प्रचार.प्रसार होता रहा है। अक्षय तृतीया, हरेली, पोला, तीजा, देवउठनी, छेर.छेरा पूनी यानि पूस तिहार जैसे स्थानीय त्यौहारों का जमकर प्रचार.प्रसार किया गया है।

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इसके बावजूद पिछले कुछ दिनों से सरकार छत्तीसगढ़ियावाद को लेकर मुखरता के साथ भाजपा पर छत्तीसगढ़ियों के असम्मान या अहितैशी होने का आरोप लगा रही है। इसके मायने क्या हैं ? यह समझने की बात है। क्या राज्य में छत्तीसगढ़ियों के सम्मान को लेकर सियासत का नया दौर आरंभ हो चुका है ? छत्तीसगढ़ियों का असली हितैषी होने को लेकर सियासत का जो नया दौर चलने लगा है, यह 2023 के विधानसभा में कितना असरकारक होगा ? यह देखने लायक है।

सवाल यह भी उठना स्वाभाविक है कि क्या भाजपा के 15 साल के कार्यकाल में छत्तीसगढ़िया संस्कृति या छत्तीसगढ़ियावाद हाशिए पर था ? क्या डेढ़ दशक के लंबे कार्यकाल में छत्तीसगढ़ियों की अनदेखी या उपेक्षा हुई थी या है ? क्या इस अवधि में छत्तीसगढ़ियों के सम्मान या भावनाओं के साथ भाजपा सरकार द्वारा खिलवाड़ किया गया था ? क्या छत्तीसगढ़िया अस्मिता और सम्मान के पैरोकार कांग्रेस या कांग्रेसी ही हैं ? क्या भाजपा के 15 साल के कार्यकाल में गैर. छत्तीसगढ़ियों की ही चली है ?

दरअसल में छत्तीसगढ़ियावाद को लेकर छत्तीसगढ़ में हो रही सियासत के बीच यह समझने की दरकार है कि क्या छत्तीसगढ़ियावाद केवल कांग्रेस या कांग्रेसियों के लिए ही है ? क्या केवल कांग्रेसी ही असली छत्तीसगढ़िया हैं ? सवाल यह भी उठता है या उठना लाजिमी है कि क्या भाजपा के नेता या कार्यकर्ता यानि भाजपायी छत्तीसगढ़िया नहीं हैं ? जबकि हकीकत यह है कि भाजपा सरकार के कार्यकाल में सबले बढ़िया.छत्तीसगढ़िया नारे के साथ छत्तीसगढ़िया अस्मिता की सोच को पंख मिली थी।

 

बहरहाल देखना है कि छत्तीसगढ़ियावाद का नारा 2023 के आगामी विधानसभा चुनाव में कितना रंग लाएगा ? 2023 में कांग्रेस के छत्तीसगढ़ियावाद को जनता कितना समर्थन देगी या कितना समर्थन करेगी ? सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या छत्तीसगढ़िया वाद की आड़ में ’विकास का एजेंडा’ पीछे छूटता जा रहा है या पीछे छूट जाएगा ? देखना दिलचस्प होगा कि असली छत्तीसगढ़िया वाद के लिए कितने लोग किसका समर्थन करते हैं ? जनता जनार्दन किसको असली छत्तीसगढ़िया मानती है ? कौन असली छत्तीसगढ़िया है और कौन नकली ? राज्य की तरक्की और विकास के लिए वाद अधिक जरूरी है ? छत्तीसगढ़ महतारी की मूर्ति स्थापना अधिक जरूरी है ? अंततः कहावत तो है ही कि यह पब्लिक है, सब जानती है।

(लेखक; प्राध्यापक, अर्थशास्त्री, मीडिया पेनलिस्ट, सामाजिक-आर्थिक विश्लेषक एवं विमर्शकार हैं)

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