आज की चुनौतियां और भगत सिंह
भगत सिंह को 23 मार्च 1931 को फांसी दी गई थी और अपनी शहादत के बाद वे हमारे देश के उन बेहतरीन स्वाधीनता संग्राम सेनानियों में शामिल हो गये, जिन्होने देश और अवाम को निःस्वार्थ भाव से अपनी सेवाएं दी. उन्होंने अंगेजी साम्राज्यवाद को ललकारा. मात्र 23 साल की उम्र में उन्होनें शहादत पाई,
![](https://www.deshdigital.in/wp-content/uploads/2021/03/bhagat-shingh-1-300x224.jpg)
भगतसिंह का संघर्ष भारत की एकता के लिए इसी विविधता की रक्षा करने का संघर्ष था. इस संघर्ष के क्रम में वे सांप्रदायिक-जातिवादी संगठनों व उसके नेताओं की तीखी आलोचना भी करते है. भगतसिंह गांधीजी और कांगेस की आलोचना भी इसी प्ररिप्रेक्ष्य में करते हैं कि उनकी नीतियां अंग्रेजी साम्राज्यवाद से समझौता करके गोरे शोषकों की जगह काले शोषकों को तो बैठा सकती है, लेकिन एक समतामूलक समाज की स्थापना नहीं कर सकती.
![](https://www.deshdigital.in/wp-content/uploads/2023/09/IMG_20230927_065132-300x185.jpg)
![](https://www.deshdigital.in/wp-content/uploads/2023/09/IMG_20230927_065330-198x300.jpg)
विश्व स्तर पर समाजवाद की ताकतों के कमजोर होने और इस देश में वामपंथ की संसदीय ताकत में कमी आने के कारण कार्पोरेट मीडिया को पूंजीवाद के अमरत्व का प्रचार करने का मौका मिल गया. इस प्रकार आज के समय में भगतसिंह के विचारों और समाजवादी क्रांति की प्रासंगगिकता तो बढ़ी है, लेकिन इस रास्ते पर अमल की दुश्वारियां तो कई गुना ज्यादा बढ़ गई है.
![खरीफ धान का रकबा 5 लाख 35 हजार हेक्टेयर कम करने का लक्ष्य](https://www.deshdigital.in/wp-content/uploads/2021/03/kheti-dhan-02-dd-300x160.jpg)
![](https://www.deshdigital.in/wp-content/uploads/2022/11/AADIVASI-BASNA.2-300x197.jpg)
भगतसिंह के समय अंग्रेजो की जो ‘‘बांटो और राज करो” की नीति थी, वही नीति आज भी चल रही है. सांप्रदायिक और धार्मिक तत्ववादी ताकतें अपना खुला खेल खेल रही है. सवर्णो का अवर्णो पर जातीय उत्पीड़न जारी है. सामाजिक न्याय की लड़ाई को कुचलनें के लिए ‘‘कमंडल में कमल” खिलाया जा रहा है.
![](https://www.deshdigital.in/wp-content/uploads/2023/09/IMG_20230621_225147-289x300.jpg)
वर्तमान अन्यायकारी राजसत्ता से लड़ने और समाज को बदलने के लिए भगतसिंह के आव्हान पर ऐसे ही राजनैतिक कार्यकर्ता और वैज्ञानिक समाजवाद के दर्शन की समझ को विकसित करने की जरूरत है. समाजवाद के सिद्धान्त को भगतसिंह की व्यवहारिक समझ से जोड़कर ही इस संघर्ष को आगे बढ़ाया जा सकता है. आइए, शोषणमुक्त समाज की स्थापना के लिए हम सब वामपंथ के साथ एकजुट हों.
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति .deshdigital.in उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार deshdigital.in के नहीं हैं, तथा उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.