छत्तीसगढ़ के बोरे-बासी को ओडिशा के पखाल सा पहचान मिले

क्या छत्तीसगढ़ में आज का यह आयोजन महज औपचारिकता बनकर खत्म हो जायेगा ? क्या इसे भी ओडिशा के पखाल की तरह प्रचारित और स्थापित नही किया जा सकता | बस और रेल्वे स्टेशन में जब यात्री पहुंचें तो यहाँ की इस जीवनशैली से परिचित हो जाये |

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क्या छत्तीसगढ़ में आज का यह आयोजन महज औपचारिकता बनकर खत्म हो जायेगा ? क्या इसे भी ओडिशा के पखाल की तरह प्रचारित और स्थापित नही किया जा सकता | बस और रेल्वे स्टेशन में जब यात्री पहुंचें तो यहाँ की इस जीवनशैली से परिचित हो जाये |

छत्तीसगढ़ आज 1 मई मजदूर दिवस पर बोरे-बासी खाकर मजदूरों के प्रति सम्मान व्यक्त कर रहा है | सीएम भूपेश बघेल की अपील के बाद बोरे-बासी आज मीडिया और सोशल मीडिया में तस्वीरों और संदेशों के साथ खूब वायरल हो रहा है | छत्तीसगढ़ की जीवनशैली में शामिल बोरे-बासी में यहाँ की संस्कृति, दैनिक क्रियाकलाप प्रतिबिम्बित होते हैं |

छत्तीसगढ़ का पड़ोसी ओडिशा हर 20 मार्च को पखाल दिवस मनाता है , उसे देश-विदेश में पहचान दिलाई गई है| नतीजा आज यह   होटलों-रेस्तराओं में परोसा जाता है | ओडिशा कालाहांडी के दौरे में जब राजीव गाँधी और सोनिया गाँधी गए थे तो उनको पखाल परोसा गया था | छत्तीसगढ़ के पेज ओडिशा के पखाल जैसा ही है | पखाल जब रात भर रखा जाता है तो वह भी बासी कहलाता है |

बोरे –बासी से अपरिचित लोगों को बताने की जरूरत है कि यह व्यंजन (dish) है, बासी भोजन नहीं | जिस तरह ढूध से दही की प्रक्रिया होती है, उसी तरह|  दही की तरह ढूध से भी ज्यादा गुणकारी और सेहत से भरा हुआ |

क्या छत्तीसगढ़ में आज का यह आयोजन महज औपचारिकता बनकर खत्म हो जायेगा ? क्या इसे भी ओडिशा के पखाल की तरह प्रचारित और स्थापित नही किया जा सकता | बस और रेल्वे स्टेशन में जब यात्री पहुंचें तो यहाँ की इस जीवनशैली से परिचित हो जाये |

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ओडिशा का पखाल और छत्तीसगढ़ का बोरे

सुप्रशिद्ध भाषाविज्ञानी स्व.डॉ रमेशचन्द्र महरोत्रा ने छत्तीसगढिया की पहचान बताई थी कि अगर दुनिया में कहीं भी भयंकर ,भयानक और ठोक शब्द का इस्तेमाल करता व्यक्ति दिखे तो वह छत्तीसगढिया होगा | जैसे –भयानक सुंदर,(अतिशय सुंदर ) भयानक (अतिशय) मजा, एक ठोक (एक नग ) देना |

उसी तरह  छत्तीसगढिया जहाँ भी रहे गरीब हो या अमीर, बोरे –बासी  उसके जायके में जरुर शामिल होता है |

छत्तीसगढ़ियों के जीवन में ‘बासी’ इतना घुला-मिला है कि समय बताने के लिए भी सांकेतिक रूप से इसका उपयोग किया जाता है। जब सुबह कहीं जाने की बात होती है तो बासी खाकर निकलने का जवाब मिलता है, इससे पता चल जाता है कि व्यक्ति सुबह 8 बजे के बाद घर से निकलेगा। वहीं दोपहर के वक्त बासी खाने के समय की बात हो तो मान लिया जाता है कि लगभग 1 बजे का समय है। ‘

बासी खाय के बेरा’, से पता चल जाता है कि यह लंच का समय है। छत्तीसगढ़ में बासी को मुख्य आहार माना गया है। बासी का सेवन समाज के हर तबके के लोग करते हैं। रात के बचे भात को पानी में डूबाकर रख देना और उसे नाश्ता के तौर पर या दोपहर के खाने के समय इसका सेवन आसानी से किया जा सकता है। इसलिए इसे सुलभ व्यंजन भी माना गया है। विशेषकर गर्मी के मौसम में बोरे और बासी को  बहुतायत लोग खाना पसंद करते हैं।

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बोरे और बासी बनाने की विधि
बोरे और बासी बनाने की विधि बहुत ही सरल है।   बोरे और बासी बनाने के लिए पका हुआ चावल (भात) और सादे पानी की जरूरत है। यहां बोरे और बासी इसलिए लिखा जा रहा है मूल रूप से दोनों की प्रकृति में अंतर है।
बोरे से अर्थ, जहां तत्काल चुरे हुए भात (चावल) को पानी में डूबाकर खाना है। वहीं बासी एक पूरी रात या दिनभर भात (चावल) को पानी में डूबाकर रखा जाना होता है।

कई लोग भात के पसिया (माड़) को भी भात और पानी के साथ मिलाने में इस्तेमाल करते हैं। यह पौष्टिक भी होता है और स्वादिष्ट भी। बोरे और बासी को खाने के वक्त उसमें लोग स्वादानुसार नमक का उपयोग करते हैं। ओडिशा का पखाल पसिया में डूबा रहता है पानी में नहीं |

प्याज, अचार और भाजी बढ़ा देते हैं स्वाद  
बासी के साथ आमतौर पर प्याज खाने की परम्परा सी रही है। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचल में प्याज को गोंदली के नाम से जाना जाता है। वहीं बोरे या बासी के साथ आम के अचार, भाजी जैसी सहायक चीजें बोरे और बासी के स्वाद को बढ़ा देते हैं। दरअसल गर्मी के दिनों में छत्तीसगढ़ में भाजी की बहुतायत होती है। इन भाजियों में प्रमुख रूप से चेंच भाजी, कांदा भाजी, पटवा भाजी, बोहार भाजी, लाखड़ी भाजी बहुतायत में उपजती है। इन भाजियों के साथ बासी का स्वाद दुगुना हो जाता है।

इधर बोरे को दही में डूबाकर भी खाया जाता है। गांव-देहातों में मसूर की सब्जी के साथ बासी का सेवन करने की भी परंपरा है। कुछ लोग बोरे-बासी के साथ में बड़ी-बिजौरी भी स्वाद के लिए खाते हैं।

बोरे-बासी खाने से लाभ  

बोरे-बासी के सेवन से नुकसान तो नहीं लाभ कई हैं। इसमें पानी की भरपूर मात्रा होती है, जिसके कारण गर्मी के दिनों में शरीर को शीतलता मिलती है। पानी की ज्यादा मात्रा होने के कारण मूत्र उत्सर्जन क्रिया नियंत्रित रहती है। इससे उच्च रक्तचाप नियंत्रण करने में मदद मिलती है। बासी पाचन क्रिया को सुधारने के साथ पाचन को नियंत्रित भी रखता है। गैस या कब्ज की समस्या वाले लोगों के लिए यह रामबाण खाद्य है। बासी एक प्रकार से डाइयूरेटिक का काम करता है|

अर्थ यह है कि बासी में पानी की भरपूर मात्रा होने के कारण पेशाब ज्यादा लगती है, यही कारण है कि नियमित रूप से बासी का सेवन किया जाए तो मूत्र संस्थान में होने वाली बीमारियों से बचा जा सकता है। पथरी की समस्या होने से भी बचा जा सकता है। चेहरे में ताजगी, शरीर में स्फूर्ति रहती है।

बासी के साथ माड़ और पानी से मांसपेशियों को पोषण भी मिलता है। बासी खाने से मोटापा भी दूर भागता है। बासी का सेवन अनिद्रा की बीमारी से भी बचाता है। ऐसा माना जाता है कि बासी खाने से होंठ नहीं फटते हैं। मुंह में छाले की समस्या नहीं होती है।

बासी का पोषक मूल्य  
बासी में मुख्य रूप से संपूर्ण पोषक तत्वों का समावेश मिलता है। बासी में कार्बोहाइड्रेट, आयरन, पोटेशियम, कैल्शियम, विटामिन्स, मुख्य रूप से विटामिन बी-12, खनिज लवण और जल की बहुतायत होती है। ताजे बने चावल (भात) की अपेक्षा इसमें करीब 60 फीसदी कैलोरी ज्यादा होती है।

बासी को संतुलित आहार कहा जा सकता है। दूसरी ओर बासी के साथ हमेशा भाजी खाया जाता है। पोषक मूल्यों के लिहाज से भाजी में लौह तत्व प्रचुर मात्रा में विद्यमान रहते हैं। इसके अलावा बासी के साथ दही या मही सेवन किया जाता है। दही या मही में भारी मात्रा में कैल्शियम मौजूद रहते हैं। इस तरह से सामान्य रूप से बात की जाए तो बासी किसी व्यक्ति के पेट भरने के साथ उसे संतुलित पोषक मूल्य भी प्रदान करता है। (इनपुट dprcg  के साथ deshdesk )

 

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