विधानसभा चुनाव: महासमुंद जिले में जातिगत समीकरण में कांग्रेस फिट

महासमुंद जिले की चार विधानसभा क्षेत्रों में जातिगत समीकरण के लिहाज से कांग्रेस तीन सीटों महासमुंद, सरायपाली और बसना; पर फिट बैठती दिखती है, वहीं इन्हीं तीनों सीट में भाजपा का जातिगत गणित अनफिट दिखता है.

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महासमुंद जिले की चार विधानसभा क्षेत्रों में जातिगत समीकरण के लिहाज से कांग्रेस तीन सीटों महासमुंद, सरायपाली और बसना; पर फिट बैठती दिखती है, वहीं इन्हीं तीनों सीट में भाजपा का जातिगत गणित अनफिट दिखता है. लगता तो यही है कि भाजपा अपने पिछले ट्रैक-रिकॉर्ड यानि बारी-बारी से जीतने के आधार उम्मीद लगाई है, तो कांग्रेस पिछड़े वर्ग की सियासी समझ के साथ किसानों के भरोसे चुनावी समर में दांव लगा रही है.

महासमुंद और सरायपाली में टिकट फायनल होने के बाद जिले में विधानसभा चुनाव की ज़मीनी स्थिति स्पष्ट होने लगी है. बसना और खल्लारी-बागबाहरा विधानसभा में टिकट वितरण बहुत पहले ही हो चुका था, लिहाजा इन दोनों विधानसभाओं में चुनाव प्रचार जोरों पर है. लेकिन अब महासमुंद और सरायपाली में भी चुनाव प्रचार जोर पकड़ने लगा है. यद्यपि यह सच है कि टिकट वितरण की स्थितियां साफ होने के साथ-साथ चुनाव प्रचार में गति आने लगती है, लेकिन मतदाताओं का मन कई बार टिकट वितरण के पहले से ही साफ रहता है कि इस बार किसे जीताना है या जीता कर भेजना है, इससे अंदाजा लगाना कठिन हो जाता है.

महासमुंद जिला के चारों विधानसभा क्षेत्रों में 2018 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने महासमुंद जिले में शानदार प्रदर्शन किया और सभी चार सीटें जीतकर क्लीन स्वीप किया था. इसके पहले 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस चारों सीट हार चुकी थी. 2008 में महासमुंद जिला के चारों सीट पर कांग्रेस और 2003 में जिले के चारों सीट पर भारतीय जनता पार्टी अपनी जीत का परचम लहरा चुकी है.

2023 में देखना दिलचस्प होगा कि जिले के मतदाता इस बार क्या करते हैं ? तात्पर्य यह है कि नये राज्य बनने के बाद जिले में जिस तरह से सियासी समीकरण बनते रहे हैं, इस लिहाज से तो इस बार चारों सीट पर भाजपा के आने की संभावनाएं बनती या दिखती हैं.

महासमुंद जिले की चारों सीटें पिछड़ा वर्ग बाहुल्य हैं. महासमुंद जिले में कुर्मी, साहू, कोलता, अघरिया वर्ग का वर्चस्व है, लिहाजा टिकट वितरण में पार्टियां जातिगत समीकरणों का ध्यान रखती रहीं हैं. ओबीसी के बाद जिले में आदिवासियों की बहुलता है. सरायपाली विधानसभा के कुछ क्षेत्र में अनुसूचित जाति वर्ग की बहुलता है, जिसके आधार पर सीट को आरक्षित कर दिया गया है.

महासमुंद जिले की जीत-हार के पिछले ट्रैक-रिकॉर्ड के आधार पर तो जिले की चारों सीट पर भाजपा की जीत की संभावनाएं प्रबल लगती हैं, लेकिन टिकट वितरण के विश्लेषण से कहना मुश्किल लगता है कि इस बार पुराने रिकॉर्ड की पुनरावृत्ति हो पाएगी ?

जैसे कि महासमुंद जिला कुर्मी-साहू बाहुल्य है, वहां भाजपा ने कलार समाज के अभ्यर्थी को टिकट दिया है. खल्लारी-बागबाहरा के आदिवासी-साहू-अघरिया बाहुल्य क्षेत्र में कुर्मी उम्मीदवार को मैदान में उतारा है. बसना के कोलता-अघरिया एवं आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में अग्रवाल अभ्यर्थी को टिकट दिया है, तो सरायपाली के गांड़ा बाहुल्य आरक्षित सीट पर सतनामी समाज के अभ्यर्थी को चुनावी मैदान में उतारा है.

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इधर जातिगत समीकरण की बात की जाये तो कांग्रेस ने महासमुंद से कुर्मी, बसना के कोलता-अघरिया एवं आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में आदिवासी-महल, सरायपाली के गांड़ा बाहुल्य आरक्षित सीट पर इसी गांड़ा समाज के अभ्यर्थी को चुनावी मैदान में उतारा है. एक सीट पर कांग्रेस का समीकरण उलट है, खल्लारी-बागबाहरा के आदिवासी-साहू-अघरिया बाहुल्य क्षेत्र में यादव समाज के उम्मीदवार को टिकट दिया है.

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इस तरह महासमुंद जिले की चार विधानसभा क्षेत्रों में जातिगत समीकरण के लिहाज से कांग्रेस तीन सीटों महासमुंद, सरायपाली और बसना; पर फिट बैठती दिखती है, वहीं इन्हीं तीनों सीट में भाजपा का जातिगत गणित अनफिट दिखता है. लगता तो यही है कि भाजपा अपने पिछले ट्रैक-रिकॉर्ड यानि बारी-बारी से जीतने के आधार उम्मीद लगाई है, तो कांग्रेस पिछड़े वर्ग की सियासी समझ के साथ किसानों के भरोसे चुनावी समर में दांव लगा रही है.

 

बारी-बारी से अभ्यर्थी बदलने की कला में माहिर लगती जिले की मतदाता को इस बार साधने में कौन कितना माहिर साबित होगा, यह तो 3 दिसम्बर को पता लगेगा लेकिन देखना दिलचस्च है कि मतदाता इस बार किस पर अपना भरोसा दिखाते हैं।

-डॉ. लखन चौधरी

(लेखक; प्राध्यापक, अर्थशास्त्री, मीडिया पेनलिस्ट, सामाजिक-आर्थिक विश्लेषक एवं विमर्शकार हैं)

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